लेख
19-Jul-2024
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भारत की आजादी के बाद से ही उत्तरप्रदेश केन्द्रीय सत्ता तक पहुंचने का ‘पहुंच मार्ग’ रहा है, प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू उनकी बेटी इंदिरा जी उनके नाती राजीव गांधी सभी उत्तरप्रदेश की राजनीति की देन रहे है। आज इसी खानदान के मौजूदा वारिस राहुल गांधी भी उत्तरप्रदेश की ही राजनीति से जाने जाते है। इस राजनायिक प्रदेश की पहचान अब कांग्रेस तक सीमित नही रहकर भारतीय जनता पार्टी पर भी केन्द्रीत हो गई है। आज इसीलिए यह प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के लिए भी वरदान सिद्ध हो रहा है और इसी कारण मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी को अपनी मातृभूमि गुजरात को छोड़कर उत्तरप्रदेश आना पड़ा। इस प्रकार यह राज्य आजादी के बाद से आज तक केन्द्रीय सत्ता का ‘पहुंच मार्ग’ बना हुआ है। किंतु अब राजनीति की इस परिपाटी ने करवट लेना शुरू कर दिया है, इसी कारण अब यहां की पारम्परिक राजनीति में भी कुछ बदलाव सा नजर आने लगा है और धीरे-धीरे यह प्रदेश केन्द्रीय सत्ता के ‘गतिरोधक’ के रूप में उभरने लगा है। इसका मुख्य कारण राज्य की स्थानीय राजनीति में मौजूदा प्रदेश नेतृत्व के प्रति असंतोष है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी को ही इसका मूल प्रासंगिक व्यक्तित्व कहा जाए तो गलत नही होगा, उन्होंने राजनेताओं और उनकी राजनीति के लिए विख्यात इस प्रदेश में एक ऐसे बाहरी (उत्तराखण्ड) राजनेता को लाकर यहां की सत्ता सौंप दी, जिसका यहां कोई वजूद नही रहा, आज जो इस प्रदेश में राजनीतिक तूफान के पूर्व की शांति दिखाई दे रही है, यह इसी कारण से है। यहां के वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने अब तक तो सब कुछ झेल लिया, किंतु अब उन्हें यह महसूस होने लगा है कि राजनीति का पानी उनके सिर के ऊपर से निकलने की तैयारी में है और इस राजनीति की घुटन में वे अपना राजनीतिक अस्तित्व कायम नही रख पाएगें, तब राज्य के एक वरिष्ठतम नेता और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन को वरियता देते हुए सत्ता को उसकी ‘दासी’ बता दिया और बगावत का ध्वज लहरा दिया, श्री केशव प्रसाद मौर्य राज्य की खास बुनियाद व उसके आधार वाले नेता है, वे न सिर्फ प्रदेश के भाजपा प्रमुख रहे है, बल्कि 2017 से मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार है, राज्य में उनके समर्थकों की भी संख्या कम नही है, जो उनके पीछे खड़े है, उन्होंने संगठन को सत्ता से बड़ा बताकर अपरोक्ष रूप से सत्ता प्रमुख योगी आदित्य नाथ को आईना दिखा दिया। यद्यपि उन्हें दिल्ली बुलाकर भाजपाध्यक्ष जगत प्रकाश नड्ड़ा ने समझाने का प्रयास किया है, किंतु इस भेंट के बाद भी केशव प्रसाद जी अपने ही कथन पर अडिग है और इस तरह उन्होंने योगी विरोधी पताका लहराना जारी रखा है और प्रदेश के असंख्य भाजपा कार्यकर्ता उनके पीछे खड़े दिखाई दे रहे है। इस प्रकार यदि यह कहा जाए कि मोदी विरोध की शुरूआत मोदी के अपने ही गोद लिए प्रदेश से हो रही है तो कतई गलत नही होगा। क्योंकि देश की राजनीति के इस प्रमुख केन्द्र प्रदेश से ही मोदी जी के विरोध की शुरूआत हो गई है। वैसे यह परिदृष्य मोदी जी के लिए कोई नया नही है, पिछले लोकसभा चुनावों के उत्तरप्रदेशीय परिणामों ने इसकी झलक पहले ही दिखाई दी थी, जब उत्तरप्रदेश की आधी सीटों पर भी भाजपा कब्जा नही कर पाई थी और मुख्य प्रतिपक्षी दल समाजवादी पार्टी को सत्तारूढ़ दल भाजपा से अधिक सीटें प्राप्त हो गई थी। इन परिणामों के बाद ही मोदी जी ने पार्टी के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में योगी जी की पीठ थपथपाई थी, जिस पर राजनीतिक स्तर पर काफी आश्चर्य व्यक्त किया गया था। अब योगी जी के प्रति विरोध की भावना उत्तरप्रदेश भाजपा में काफी गहराई तक पहुंच गई है, जिसकी झलक वरिष्ठ नेता केशव प्रसाद मौर्य ने दिखाई है, अब यदि वे प्रदेश की योगी विरोधी लॉबी का नेतृत्व भी संभाल लें तो आश्चर्य नही होगा। अब इस पूरे राजनीतिक नाटक का पटाक्षेप कैसे होता है? इसका सभी को इंतजार है। फिर भी आमतौर पर आशंका यही है कि केन्द्रीय सत्ता का यह ‘पहुंच मार्ग’ कहीं ‘गतिरोधक’ न बन जाए? ईएमएस / 19 जुलाई 24