दूध में कैल्शियम, मैग्नीशियम, ज़िंक, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम, फोलेट्स, विटामिन ए, विटामिन डी, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी-12, प्रोटीन आदि मौजूद होते हैं। गाय के वसा रहित दूध (स्किम्ड मिल्क) में कोलेस्ट्रॉल 2-5 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होता है। पूर्ण वसा (फुल क्रीम) वाले दूध में कोलेस्ट्रॉल 10-15 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होता है। आंकड़ों के अनुसार एक स्वस्थ्य व्यक्ति 300 मिलीग्राम कोलेस्ट्रॉल प्रतिदिन ले सकता है। अतएव दूध पीने से हृदयघात होने की संभावना नगण्य होती है। दूध में मुख्यतः केसिन और व्हेय नामक दो प्रोटीन पाए जाते हैं। दूध में प्रोटीन का 80 प्रतिशत हिस्सा केसिन के रूप में होता है और बाकी 20 प्रतिशत हिस्सा व्हे का होता है। दूध में व्याप्त केसिन प्रोटीन, कैल्शियम और फॉस्फेट के साथ मिलकर छोटे छोटे कण बनाते हैं जिन्हें मिसेल्स कहा जाता है। जब प्रकाश इन मिसेल्स से टकराता है तो यह प्रकाश अपरिवर्तित होकर फ़ैल जाता है। दूध में पाए जाने वाला वसा के कण (फैट ग्लोबुल्स) भी प्रकाश के प्रकीर्णन का कारण बनते हैं। अतएव दूध का रंग सफ़ेद दिखाई देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस दूध में जितना ज्यादा वसा (फैट) होगा उसका रंग उतना ही सफ़ेद दिखाई देगा। गाय के दूध में भैंस के दूध की अपेक्षा वसा (फैट) कम होता है और केसिन नामक प्रोटीन भी कम होता है। इसलिए गाय का दूध हल्का पीला दिखाई देता है। दूध में कैरोटीन और कैसिन नामक दो वर्णक (पिगमेंट) होते हैं जो उसके रंग को प्रभावित करते हैं। अतएव कैरोटीन की वजह से गाय के दूध में हल्का पीला रंग होता है, जबकि कैसिन की वजह से दूध का रंग सफेद होता है। भैंस के दूध में केरोटीन कम होता है और फैट ज्यादा। जबकि गाय के दूध में केरोटीन ज्यादा और फैट अपेक्षाकृत कम होता है। अतएव हम कह सकते हैं कि दूध एक अपारदर्शी, सफेद तरल उत्पाद है। डेयरी शब्द को दुग्ध उद्योग से जोड़ कर देख सकते हैं। दूध को विभिन्न डेरी उत्पादों में परिवर्तन के लिए प्रसंस्करण किया जाता है। दूध के विभिन्न उप उत्पाद भी होते हैं जिन्हे तकनीकी भाषा में मिल्क बाई प्रोडक्ट (दूध के उप उत्पाद) भी कहा जाता है। डेयरी उत्पाद में दूध प्राथमिक घटक के रूप में प्रयोग होता है। जैसे की दूध, दही, पनीर, आइसक्रीम। डेयरी उप उत्पादों में व्हेय, छाछ, स्किम मिल्क, घी के अवशेष (घी रेज़िड्यू) आदि आते हैं। दूधऔर डेयरी (दुग्धशाला) का सम्बन्ध बगिया और माली जैसा है। जिस प्रकार एक माली अपनी बगिया को सींचता और सम्हालता है। उसी प्रकार एक माली रूपी डेयरी (दुग्धशाला), बगियारूपी दूध को सम्हालता और संरक्षित करता है। डेयरी (दुग्धशालाएँ) दूध की सुंदरता और उनकी दिव्यता का द्योतक है। दूध का रखरखाव और उसको ताजा बनाए रखने की जिम्मेदारी डेयरी (दुग्धशाला) की होती है। जिसको तकनीकी भाषा में शेल्फ लाइफ ऑफ़ मिल्क कहा जाता है। अर्थात दूध की पोषकता को लम्बे समय तक बनाए रखना। पोषकता का सम्बन्ध शुद्धता से होना चाहिए। शुद्ध दूध ही एक स्वस्थ्य शरीर का परिचायक है। डेयरी उद्योगों (दुग्धशालाओं) के लिए शुद्धता ही प्राथमिकता होनी चाहिए। अधिकांश डेयरी उद्योग (दुग्धशालाएं) शुद्धता का ख्याल रखते हैं और शुद्ध दूध को ही जन जन तक पहुँचाते हैं। भारत में ब्रांडेड डेयरी (दुग्ध्शाला) में अमूल, पारस, ज्ञान, नमस्ते इंडिया, सुधा, आदि डेयरी आती है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में भी बहुत सी लोकल सर्टिफाइड डेयरी (दुग्धशालाएँ) काम कर रही हैं। ये सभी गुणवत्ता व शुद्धता के मामले में काफी आगे हैं। ये सभी डेयरी दूर दराज में रहने वाले लोगों के लिए राम बाण साबित होती हैं। जिस शहर और क्षेत्र में दुग्ध उत्पादन की कमी होती है, वहाँ इन डेयरी (दुग्ध्शाला) द्वारा कमी को पूरा किया जाता है। कुल मिलाकर जनसँख्या के हिसाब से दूध की जितनी खपत है भारत दूध का उतना उत्पादन करने में सक्षम है। अतएव हम कह सकते हैं कि दुग्धशालाएं, दूध को संरक्षित और सुरक्षित करती हैं। विश्व में भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है। वर्ष 2025 में विश्व दुग्ध दिवस की 25 वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है। विश्व दुग्ध दिवस प्रत्येक वर्ष 1 जून को मनाया जाता है। विश्व दुग्ध दिवस 2025 का थीम/प्रसंग है- आइए डेयरी की शक्ति का जश्न मनाएं। असली मायने में हम डेयरी की शक्ति का जश्न तभी मना सकते हैं जब हर घर दूध और दूध से बने उत्पाद शुद्धता के साथ पहुंचे। डेयरी उत्पाद का शुद्ध होना आवश्यक है। शुद्धता ही असली स्वास्थ्य की निशानी है। तभी हम कह सकते हैं कि दूध व दूध से बने उत्पाद वैश्विक पोषण का आधार हैं। भारत में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड डेयरी उद्योग के विस्तार के लिए काम करती है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एन डी डी बी) के संस्थापक डॉ. वर्गीस कुरियन थे। डॉ. वर्गीस कुरियन को भारत में श्वेत क्रांति का जनक भी कहा जाता है। लोगों या किसानों को डेयरी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की कुछ योजनाएं हैं जिनका लाभ उठाया जा सकता है। भारत सरकार की डेयरी उद्यमिता विकास योजना (डी ई डी एस) के तहत आम नागरिक और किसान मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की नंदिनी कृषक समृद्धि योजना, कामधेनु डेयरी योजना, नंद बाबा डेयरी मिशन आदि योजनाएं एक सफल डेयरी उद्योग खोलने में मदद कर सकती हैं। अतः बिना डेयरी उद्योग (दुग्धशाला) के दूध की दिव्यता अधूरी है। यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि दूध की दिव्यता का स्रोत डेयरी (दुग्धशाला) ही हैं। डेयरी (दुग्धशाला) सेक्टर आत्मनिर्भरता की कुंजी है। देश में बढ़ते डेयरी उद्योग लोगों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। आत्मनिर्भरता स्वतन्त्रता का सूचक है। स्वतन्त्रता सकून और शांति को जन्म देती है। अतएव हम कह सकते हैं कि आत्मनिर्भरता डेयरी (दुग्धशाला) की शक्ति का परिचायक है। ईएमएस / 01 जून 25