- पाकिस्तान के पक्ष में और भारत के खिलाफ खड़ा हुआ चीन चीन की ओर से भारत को धमकी दी गई है, वह चीन से भारत जाने वाले ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोक सकता है। यह एक कूटनीतिक चेतावनी नहीं, बल्कि इसे चीन के रणनीतिक हथियार के रूप में देखा जाना चाहिये। यह एक बेहद गंभीर मामला है। ब्रह्मपुत्र का पानी उत्तर-पूर्व भारत के करोड़ों लोगों की जीवन रेखा है। जल जैसे प्राकृतिक संसाधन को राजनीतिक दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल करना न केवल अमानवीय है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संधियों और पड़ोसी देशों के प्रति उत्तरदायित्व की भावना का उल्लंघन है। भारत ने पाकिस्तान का पानी रोकने का जो निर्णय लिया है उसके बदले में चीन ने पाकिस्तान के समर्थन में भारत के खिलाफ यह धमकी दी है, वह भी ब्रह्मपुत्र का पानी रोक देगा। पिछले कुछ वर्षों में चीन ने जिस तरह पाकिस्तान को खुला समर्थन दिया है, वह भारत के लिए दोहरी चुनौती बन चुका है। एक ओर लद्दाख और अरुणाचल की सीमा पर चीन की आक्रामकता, दूसरी ओर पाकिस्तान को सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक समर्थन देकर भारत के खिलाफ अप्रत्यक्ष मोर्चा खोलना, भारत के खिलाफ चीन की एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। ब्रह्मपुत्र का जल प्रवाह रोकने की धमकी उसी रणनीति का विस्तार है, जिसमें चीन जल को भी जियो-पॉलिटिकल हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहता है। भारत को चाहिए वह इस स्थिति से सतर्क होकर बहुपक्षीय मंचों पर चीन की इस आक्रामक नीति को उजागर करे। जलवायु परिवर्तन और सीमा-पार नदियों के जल-संविधान पर आधारित अंतरराष्ट्रीय संधियों का हवाला देते हुए चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाया जाए। भारत को अपनी उत्तर-पूर्वी जलनीति को और अधिक सुदृढ़ करना होगा, जिसमें जल संग्रहण, पुनर्चकृण और स्थानीय जल संसाधनों का दोहन शामिल हो। यह भी आवश्यक है, भारत अपने पारंपरिक सहयोगियों जापान, अमेरिका और एसियान देशों के साथ मिलकर एक व्यापक रणनीति बनाए। जो केवल सीमा सुरक्षा तक सीमित न हो, वरन जल, साइबर और तकनीकी मोर्चों पर भी एक जुटता के साथ तैयार रहें। ब्रह्मपुत्र कोई सामरिक हथियार नहीं, बल्कि प्रकृतिजन्य, सभी जीवों और मानव के लिए प्रकृति का उपहार है। यदि चीन उसे हथियार बनाना चाहता है तो यह केवल भारत ही नहीं बल्कि समूचे एशिया के लिए खतरे की घंटी है। भारत को संयम के साथ ठोस नीति और दृढ़ता से जवाब देना होगा। ताकि जल को हथियार बनाने की इस खतरनाक प्रवृत्ति पर रोक लगाई जा सके। चीन को यह मौका भारत ने ही दिया है। इस दिशा में भारत को भी गंभीरता के साथ चिंतन मनन करना चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ भारत में जो लड़ाई शुरू की थी उसमें जल संधि को ना मानते हुए पाकिस्तान का पानी रोकने की पहल भारत ने की थी, परिणाम स्वरुप चीन जैसे देशों को भी भारत के ही निर्णय को आधार मानकर भारत को घेरने की कोशिश की जा रही है। भारत सरकार ने इसकी गंभीरता पर ध्यान ना देते हुए जो निर्णय लिया है वह भी एक तरह से अमानवीय है। कूटनीति और विदेश नीति के मामले में भारत जिस तरीके से बिना सोचे-समझे निर्णय ले रहा है, जिस तरह की धमकियां पिछले कुछ वर्षों में भारतीय मीडिया और भारत के राजनेताओं द्वारा अन्य देशों के बारे में समय-समय पर दी जा रही हैं, उसके कारण भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ भी संबंध खराब हुए हैं। चीन ने इसका लाभ उठाया है। भारत के सभी पड़ोसी देशों के साथ चीन ने व्यापारिक और सामरिक संबंधों को बढ़ाया है। भारत के लिए चुनौतियां बढ़ाई हैं। चीन भारत के कब्जे वाले पूर्वोत्तर राज्यों में लगातार अशांति फैलाने का काम कर रहा है। चीन ने पिछले वर्षों में सीमावर्ती राज्यों में बड़े पैमाने पर अपनी गतिविधियां बढाकर भारत के लिए कड़ी चुनौती पैदा कर दी है। भारत के मीडिया ने तो गजब ही कर दिया है। झूठी और धमकी वाली खबरों को दिखाकर भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर करने का काम किया है। सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार माध्यम के इस युग में, जिस तरह से भारतीय मीडिया काल्पनिक खबरों को फैलाने का काम करता है, उसको लेकर पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध पिछले एक दशक में बड़ी तेजी के साथ खराब हुए हैं। भारत को बार-बार विश्व- गुरु के रूप में स्थापित करने और भारत की तीसरी और चौथी अर्थव्यवस्था को लेकर जो दावे भारत सरकार के हवाले से भारतीय मीडिया द्वारा किए जाते हैं, उसके कारण दुनिया के बड़े देशों के साथ भारत ने अपनी प्रतिस्पर्धा को बढ़ा लिया है। अधिकांश दावे वास्तविकता से बहुत दूर हैं। चीन ने इसका लाभ उठाया, बिना कुछ बोले और बिना कुछ हल्ला किये, भारत के साथ अपने व्यापार को बढ़ाते हुए, चीन ने भारत को चारों तरफ से घेरने के लिए पड़ोसी देशों का इस्तेमाल किया। उन्हें बड़े पैमाने पर कर्ज दिया। उनके साथ इस तरीके के समझौते किए, जिससे चीन की सामरिक शक्ति कई गुना बढ़ गई। चीन के राष्ट्रपति को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झूला झुलाया था। उन्हें अपना सबसे अच्छा मित्र बताया था। उनके मित्र ने उन्हें ऐसे समय पर धोखा दिया, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। चीन की इस रणनीति के कारण भारत को कई मोर्चों पर एक साथ लड़ना पड़ रहा है। ऐसा लग रहा है कि आस-पास हमने दुश्मनों की भीड़ इकट्ठी कर ली है। भारत सरकार को अपनी विदेश नीति, पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते, पूर्वोत्तर राज्यों में शांति स्थापित करने जैसे महत्वपूर्ण काम करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। सरकार को विदेश नीति और कूटनीति के जानकारों को अपने साथ आगे लाना होगा। चीन ने जिस तरह से पाकिस्तान को खुला समर्थन दिया है, भारत के खिलाफ जिस तरह की कार्यवाही पिछले कुछ दिनों में चीन द्वारा की गई है। उससे भारत के व्यापारिक एवं सामरिक हितों को बड़ा नुकसान पहुंच रहा है। भारत सरकार को इस पर गंभीरता से विचार कर तुरंत निर्णय लेने होंगे। भारत का जो मीडिया है, उसके लिए जवाबदेही तय करनी होगी। अपने रक्षा तंत्र को मजबूत करते हुए प्रचार-प्रसार से बचाना होगा। यदि ऐसा समय रहते नहीं हुआ, तो भारत को आने वाली चुनौतियों का सामना करना मुश्किल होगा। ईएमएस / 01 जून 25