बिहार में जद( यू) अगले विधानसभा चुनाव तक पुरी मजबूती से टिके रहेगी इसका कारण यह है की बिहार का राजनीति समीकरण ऐसा है कि वहाँ मुख्य रूप से तीन पार्टी है जो इस प्रकार है बीजेपी, आरजेडी व जद (यू) जब भी क़ोई दो पार्टी मिलती है तभी सरकार बनती है वहाँ का जातियों का समीकरण ही कुछ इसी तरह का है बीच में लोजपा भी है और जो दो गुटों में है वो भी इधर मजबूत हो रही है और खासकर लोजपा (रामविलास) के प्रमुख केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान जो किसी का भी खेल बिगाड़ सकती है क्योंकि वहाँ जीत का मार्जिन बहुत ही कम वोटो के अंतर से होता है और बीजेपी 2015 के विधानसभा में अपने कुछ छोटी छोटी सहयोगी पार्टियों के सहारे केवल 55सीट पर सिमट गई थी और जद (यू) व आरजेडी को 71 व 80सीट मिले थे बिहार के मुख्यमंत्री को इतनी आसानी से समझना किसी के बस की बात नहीं है यदि कहीं वो फिर से पाला बदलेंगे तो बीजेपी अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती है क्योंकि आज भी मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का अच्छा जनाधार है एक बार जब जद (यू) व आरजेडी का गठबंधन बना था तो मैं रिक्शा से रिक्शावाला से पूछा कि क्या भाई आप किस को वोट दे रहें हैं कहा देना तो था लालूजी को लेकिन जब गठबंधन बना है तो जद (यू) को ही सब मिलकर वोट करेंगे अतः जब तक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में हैं तो ऐसे में बीजेपी क़ोई भी रिस्क लेना नहीं चाहेगी वहाँ अभी भी बाहुबली का राज है तभी तो लोकसभा में जेल से पेरोल पर चुनाव में बुलाया गया और बीजेपी भी जद (यू) को तोड़ने का क़ोई प्रयास नहीं करेगी क्योंकि अगर उसे तोड़ दी तो उसी का नुकसान हो सकता है क्योंकि बाहुबली सब आरजेडी या निर्दलीय चुनाव लड़ कर एक अच्छा वोट बैंक ला सकती है नीतीश कुमार पाला बदलने में माहिर हैं इसलिए इन सब बदलाव पर कुछ बोल नहीं रहें है लेकिन पर्दे के पीछे उन्हें भी पार्टी के बारे में मालूम हो रहा होगा चूंकि केंद्र में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं है और सरकार एनडीए की है अतः क़ोई भी रिस्क नहीं लेना चाहेगी क्योंकि श्री नीतीश कुमार जब सारा विपक्ष को एक कर दी थी ऐ सही बात है कि इंडिया गठबंधन के लोगों ने उन्हें भाव नहीं दिया और पाला बदलकर पुनः एनडीए में शामिल हो गए नीतीश कुमार को जब लगा कहीं जद(यू) में टूट होकर कहीं पीएम के चक्कर में सीएम की कुर्सी भी तेजस्वी को ना चला जाए तो प्रधानमंत्री मोदीजी के पास अन्य लोगों के माध्यम से लोकसभा चुनाव हेतु लगा कि जद (यू) की सीट आरजेडी और कॉंग्रेस व अन्य के साथ गठबंधन से 4 से 5 सीट से ज्यादा नहीं मिलेगा और ऐसे में जद(यू) का वजूद ना ख़त्म हो जाए तभी बीजेपी को भी लगा अकेले अधिक सीट मिलना मुश्किल है तो एनडीए में जद(यू) प्रधान मंत्री श्री मोदीजी के कहने पर ही शामिल हो गई और उसे सम्मानजनक सीट मिला और आरजेडी देखते रह गई और एनडीए ने चिराग और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी को मिलकर चुनाव लड़े और बिहार के 35 सीट में से एनडीए को बिहार में 40 सांसदों के चुनाव में । बीजेपी, 17, जद (यू), 16, .एलजेपी, 6 हम 1सीट, आरएलएम यानि एन डी ए ने कुल 40 सीट पर उम्मीदवार उतारा और जिसमें से बीजेपी, 12 जद (यू), 12, .एलजेपी, 5 और हम 1सीट यानि कुल 30 सीट झटक लिए जिसमें जद यू को 16 में से 12सीट मिला कुछ सीटों पर बहुत टफ फाइट था कुछ मुस्लिम बाहुल्य इलाका है जहाँ जद (यू) सीट लेती है अतः नीतीश कुमार जब तक हैं पार्टी आराम से चलेगी क्योंकि बीजेपी में स्व सुशील मोदी जैसा क़ोई चेहरा नहीं जो सीट ले सके और जनाधार नीतीश कुमार जैसा नहीं है जंगलराज से बिहार को बाहर लाने में जिस तरह नीतीश कुमार ने बिहार को निकाला है वैसे में जद(यू) के अस्तित्व पर फिलहाल क़ोई खतरा नहीं दिख रहा है अब जब पुल के बारे में एनडीए में बीजेपी कुछ नहीं बोलती है तो उनके राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ के सी त्यागी को भी सोच समझ कर बोलना चाहिए ख़ासकर उससमय जब चुनाव परिणाम के बाद सब की धड़कन रूकी थी तभी उनका बयान आता है कि श्री नीतीश कुमार को पीएम पद का ऑफर मिला था और तभी तेजस्वी यादव उसका मज़ाक उड़ाते नजर आते हैं ऐसे में पार्टी के अंदर लगता है अनर्थ हो रहा है अब जब श्री ललन सिंह जद यू के कैबिनेट मंत्री बन गए और विपक्ष का संसद में मुँह बन्द कर देते हैं वैसा तालमेल की कमी पार्टी को लगी होगी और फिर अग्निवीर और जातीय जनगणना पर बेबजह बोलने लगते हैं तो विरोधाभास होने लगता है जंगल त्याग ख़त्म तो बिहार से लगभग ख़त्म हो गया लेकिन बाहुबली का दबदबा अभी भी बिहार में है ऐसे में बीजेपी टिकट देकर अपनी छवि ख़राब नहीं करना चाहेगी और बिहार में जब ढेरों परियोजना का एनडीए द्वारा शुभारम्भ हुआ है तो सत्ता भी नहीं जाने देगी औऱ जद(यू) को संजीवनी देकर एनडीए सरकार को बनाए रखना चाहेगी ताकि बिहार में इन्वेस्टमेंट हो औऱ रोजगार मिल सके।बिहार में जद( यू) अगले विधानसभा चुनाव तक पुरी मजबूती से टिके रहेगी इसका कारण यह है की बिहार का राजनीति समीकरण ऐसा है कि वहाँ मुख्य रूप से तीन पार्टी है जो इस प्रकार है बीजेपी, आरजेडी व जद (यू) जब भी क़ोई दो पार्टी मिलती है तभी सरकार बनती है वहाँ का जातियों का समीकरण ही कुछ इसी तरह का है बीच में लोजपा भी है और जो दो गुटों में है वो भी इधर मजबूत हो रही है और खासकर लोजपा (रामविलास) के प्रमुख केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान जो किसी का भी खेल बिगाड़ सकती है क्योंकि वहाँ जीत का मार्जिन बहुत ही कम वोटो के अंतर से होता है और बीजेपी 2015 के विधानसभा में अपने कुछ छोटी छोटी सहयोगी पार्टियों के सहारे केवल 55सीट पर सिमट गई थी और जद (यू) व आरजेडी को 71 व 80सीट मिले थे बिहार के मुख्यमंत्री को इतनी आसानी से समझना किसी के बस की बात नहीं है यदि कहीं वो फिर से पाला बदलेंगे तो बीजेपी अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती है क्योंकि आज भी मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का अच्छा जनाधार है एक बार जब जद (यू) व आरजेडी का गठबंधन बना था तो मैं रिक्शा से रिक्शावाला से पूछा कि क्या भाई आप किस को वोट दे रहें हैं कहा देना तो था लालूजी को लेकिन जब गठबंधन बना है तो जद (यू) को ही सब मिलकर वोट करेंगे अतः जब तक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में हैं तो ऐसे में बीजेपी क़ोई भी रिस्क लेना नहीं चाहेगी वहाँ अभी भी बाहुबली का राज है तभी तो लोकसभा में जेल से पेरोल पर चुनाव में बुलाया गया और बीजेपी भी जद (यू) को तोड़ने का क़ोई प्रयास नहीं करेगी क्योंकि अगर उसे तोड़ दी तो उसी का नुकसान हो सकता है क्योंकि बाहुबली सब आरजेडी या निर्दलीय चुनाव लड़ कर एक अच्छा वोट बैंक ला सकती है नीतीश कुमार पाला बदलने में माहिर हैं इसलिए इन सब बदलाव पर कुछ बोल नहीं रहें है लेकिन पर्दे के पीछे उन्हें भी पार्टी के बारे में मालूम हो रहा होगा चूंकि केंद्र में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं है और सरकार एनडीए की है अतः क़ोई भी रिस्क नहीं लेना चाहेगी क्योंकि श्री नीतीश कुमार जब सारा विपक्ष को एक कर दी थी ऐ सही बात है कि इंडिया गठबंधन के लोगों ने उन्हें भाव नहीं दिया और पाला बदलकर पुनः एनडीए में शामिल हो गए नीतीश कुमार को जब लगा कहीं जद(यू) में टूट होकर कहीं पीएम के चक्कर में सीएम की कुर्सी भी तेजस्वी को ना चला जाए तो प्रधानमंत्री मोदीजी के पास अन्य लोगों के माध्यम से लोकसभा चुनाव हेतु लगा कि जद (यू) की सीट आरजेडी और कॉंग्रेस व अन्य के साथ गठबंधन से 4 से 5 सीट से ज्यादा नहीं मिलेगा और ऐसे में जद(यू) का वजूद ना ख़त्म हो जाए तभी बीजेपी को भी लगा अकेले अधिक सीट मिलना मुश्किल है तो एनडीए में जद(यू) प्रधान मंत्री श्री मोदीजी के कहने पर ही शामिल हो गई और उसे सम्मानजनक सीट मिला और आरजेडी देखते रह गई और एनडीए ने चिराग और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी को मिलकर चुनाव लड़े और बिहार के 35 सीट में से एनडीए को बिहार में 40 सांसदों के चुनाव में । बीजेपी, 17. जद (यू), 16, .एलजेपी, 6 हम 1सीट,आरएलएम यानि एन डी ए ने कुल 40 सीट पर उम्मीदवार उतारा और जिसमें से बीजेपी, 12 जद (यू), 12, .एलजेपी, 5 और हम 1सीट यानि कुल 30 सीट झटक लिए जिसमें जद यू को 16 में से 12सीट मिला कुछ सीटों पर बहुत टफ फाइट था कुछ मुस्लिम बाहुल्य इलाका है जहाँ जद (यू) सीट लेती है अतः नीतीश कुमार जब तक हैं पार्टी आराम से चलेगी क्योंकि बीजेपी में स्व सुशील मोदी जैसा क़ोई चेहरा नहीं जो सीट ले सके और जनाधार नीतीश कुमार जैसा नहीं है जंगलराज से बिहार को बाहर लाने में जिस तरह नीतीश कुमार ने बिहार को निकाला है वैसे में जद(यू) के अस्तित्व पर फिलहाल क़ोई खतरा नहीं दिख रहा है अब जब पुल के बारे में एनडीए में बीजेपी कुछ नहीं बोलती है तो उनके राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ के सी त्यागी को भी सोच समझ कर बोलना चाहिए ख़ासकर उससमय जब चुनाव परिणाम के बाद सब की धड़कन रूकी थी तभी उनका बयान आता है कि श्री नीतीश कुमार को पीएम पद का ऑफर मिला था और तभी तेजस्वी यादव उसका मज़ाक उड़ाते नजर आते हैं ऐसे में पार्टी के अंदर लगता है अनर्थ हो रहा है अब जब श्री ललन सिंह जद यू के कैबिनेट मंत्री बन गए और विपक्ष का संसद में मुँह बन्द कर देते हैं वैसा तालमेल की कमी पार्टी को लगी होगी और फिर अग्निवीर और जातीय जनगणना पर बेबजह बोलने लगते हैं तो विरोधाभास होने लगता है जंगल त्याग ख़त्म तो बिहार से लगभग ख़त्म हो गया लेकिन बाहुबली का दबदबा अभी भी बिहार में है ऐसे में बीजेपी टिकट देकर अपनी छवि ख़राब नहीं करना चाहेगी और बिहार में जब ढेरों परियोजना का एनडीए द्वारा शुभारम्भ हुआ है तो सत्ता भी नहीं जाने देगी औऱ जद(यू) को संजीवनी देकर एनडीए सरकार को बनाए रखना चाहेगी ताकि बिहार में इन्वेस्टमेंट हो औऱ रोजगार मिल सके और श्री लालू यादव का दबदबा खत्म हो क्योंकि चुनाव में प्रधानमंत्री को अभद्र भाषा का ऐसा इस्तेमाल हुआ कि मोदी का परिवार लगाना पड़ा। ईएमएस / 05 सितम्बर 24