अंतर्राष्ट्रीय
31-Oct-2024
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स्टॉकहोम (ईएमएस)। विलुप्त होते ज्वालामुखियों के मैग्मा से दुनियाभर की ऊर्जा संकट का समाधान हो सकता है। यह बात एक रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार, ज्वालामुखियों में पाए जाने वाले मैग्मा में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का बड़ा जखीरा हो सकता है। ये तत्व इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन टर्बाइनों और अन्य पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इससे ऊर्जा की कमी को दूर करने में मदद मिल सकती है। ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के शोधकर्ता माइकल एनेनबर्ग ने कहा कि यह अध्ययन एक नया रास्ता खोलता है। उन्होंने पिछले वर्ष स्वीडन के किरुना में किए गए शोध का संदर्भ दिया, जहां लौह अयस्क के विशाल भंडार के पास दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के भंडार की खोज की गई थी। एनेनबर्ग का मानना है कि लौह-समृद्ध ज्वालामुखियों के भीतर कुछ रहस्यमय तत्व हो सकते हैं जो इन्हें दुर्लभ पृथ्वी तत्वों से समृद्ध बनाते हैं। व्रीजे यूनिवर्सिटी एम्स्टर्डम के प्रोफेसर लिंगली झोउ ने इस अध्ययन को क्षेत्र के भूवैज्ञानिकों के लिए मूल्यवान बताया है, जो उन्हें दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने में मदद कर सकता है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ज्वालामुखियों का मैग्मा न केवल भूविज्ञान के लिए, बल्कि ऊर्जा के नए स्रोतों के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है। अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं ने किया दावा शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में विलुप्त ज्वालामुखियों से समान संरचना वाली सिंथेटिक चट्टान का उपयोग किया। जब चट्टान पिघली, तो लौह-समृद्ध मैग्मा ने अपने पास के दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को अवशोषित किया। इस शोध में यह निष्कर्ष निकला कि लौह-समृद्ध मैग्मा नियमित ज्वालामुखियों की तुलना में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को 200 गुना अधिक केंद्रित करने में सक्षम है। अध्ययन में यह उम्मीद जताई गई है कि अमेरिका, चिली और ऑस्ट्रेलिया में विलुप्त ज्वालामुखियों में ऐसे भंडार हो सकते हैं। कई साइटों पर पहले से ही लौह अयस्क का खनन किया जा रहा है, जिससे कंपनियों और पर्यावरण दोनों के लिए लाभ हो सकता है। क्या होता है मैग्मा रिपोर्ट के अनुसार, मैग्मा पृथ्वी की पपड़ी के नीचे पिघली हुई चट्टान होती है, जो एक गर्म तरल पदार्थ है। दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में लैंटानम, नियोडिमियम और टेरबियम शामिल हैं, जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, इन तत्वों को निकालना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि ये अक्सर कम सांद्रता में पाए जाते हैं। बालेन्द्र/ईएमएस 31 अक्टूबर 2024