दमिश्क (ईएमएस)। सीरिया में विद्रोहियों के कब्जा हो गया है। विद्रोही संगठनों ने राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार गिरा दी जिससे असद को देश छोड़कर भागना पड़ा। अब देश की कमान अस्थाई तौर पर हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के हाथों में है। अब डर ये है कि सत्ता के खाली रहते हुए कहीं ये देश आतंकी ताकतों का ठिकाना न बन जाए। इसमें भी इस्लामिक स्टेट के दोबारा लौटने का डर है, जिसे देखते हुए अमेरिका अभी से खाली जगहों पर हमले कर रहा है। इस्लामिक स्टेट की नींव सीरिया में शुरू हुए सिविल वॉर के दौरान पड़ी थी। तब वहां अलकायदा तैयार हुआ जो एक तरह का अंब्रेला संगठन था। इसके नीचे कई छोटे-छोटे समूह थे। इन्हीं में से एक था अल-कायदा इन इराक। इसके लड़ाके ज्यादा आक्रामक, और खतरनाक थे। ताकत बढ़ती गई और बाद में इसने खुद को अलग तरह से तैयार कर लिया। इसका नाम भी अल-कायदा इन इराक से बदलकर इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट (आईएसआईएस) हो गया। 2011 से अगले चार ही सालों के अंदर इस्लामिक स्टेट ने सीरिया के सभी बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया। यहां तक कि इराक में भी उसकी तूती सुनाई देने लगी। कुल मिलाकर करीबए एक लाख वर्ग किलोमीटर की टैरिटरी पर इसका राज चलता था, जबकि आसपास के इलाकों में भी असर दिखने लगा था। 2016 से अगले सालभर के लिए अमेरिका समेत कई देशों ने मिलकर सीरिया और इराक में सैन्य अभियान चलाया और इस्लामिक स्टेट को खत्म करने में जुट गए। आखिरकार 2017 तक इसने सीरिया और इराक में अपना इलाका खो दिया। अगले कुछ समय में पूरे देश को ही इस्लामिक स्टेट मुक्त घोषित कर दिया गया। आईएस ने अपना अधिकतर कब्जा खो दिया है, लेकिन यह पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। सीरिया के रेगिस्तान और इराक के कुछ दूरदराज के इलाकों में आईएस के लड़ाके अभी भी हैं और छिटपुट हमले करते हैं। वे रेगिस्तान में गुफाओं, सुरंगों और गांवों में छिपे हैं, जहां सेना नहीं पहुंच पाती है। इराक और सीरिया बॉर्डर भी इनके लिए शरणस्थली बना गया है, जो खुफिया है। यूफ्रेटिस नदी घाटी का एक हिस्सा भी इन्हीं लड़ाकों का गढ़ है। सीरिया में में तेल और गैस के बड़े भंडार हैं। इस्लामिक स्टेट इनपर कब्जा करके अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करना चाहता है। यही वजह है कि वह यहां से भागकर भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। अमेरिकी सैनिक तेल भंडारों के आसपास हैं लेकिन असद सरकार के गिरने के साथ उनकी हालत भी कमजोर हो गई है। सैनिकों के साथ और भी कई चुनौतियां हैं, स्थानीय लोग उनके विरोध में हैं। सीरिया और इराक के चरमपंथी गुटों को कई और देशों का समर्थन मिला हुआ हैं, जिससे आर्मी की मजबूती पर असर हो रहा है। इसके अलावा खुद अमेरिका अपने सैनिकों को वापस बुलाने की मांग उठ रही है, जिससे उनकी संख्या कम होती चली गई। अब सत्ता शून्यता में इस्लामिक स्टेट फिर सिर न उठाए, इसे लेकर अमेरिका अलर्ट हो चुका है। यही वजह है कि दोनों देशों के बॉर्डर पर स्थित इस्लामिक स्टेट के ठिकानों पर हवाई हमले किए। ये अटैक पहली बार नहीं हुआ है। अमेरिका सुपरपावर होने के नाते वह बीच-बचाव या हस्तक्षेप को अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानता है। कई आर्थिक, सामरिक हित भी हैं। जैसे तेल और गैसों के भंडार एक बड़ा कारण हैं, जिसके चलते यूएस को सीरिया में इतनी दिलचस्पी है। मध्य पूर्व क्षेत्र में अमेरिका का एक मजबूत असर रहा और वह नहीं चाहता कि इसमें ईरान या तुर्की जैसे देश उसकी टक्कर पर आएं। सिराज/ईएमएस 14 दिसंबर 2024