राज्य
18-Jan-2025
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कला-ग्राम लघु चित्रकला शिविर में 14 कलाकारों ने रागमाला विषयक 28 सुन्दर पेन्टिंग बनाई ( चंडीगढ़ से सुभाष अरोड़ा की रिपोर्ट) चंडीगढ़,(ईएमएस) । पंडोल्स मुम्बई, कला नीलामी घर द्वारा दिसंबर 2024 में कांगड़ा शैली के महान चित्रकार नैनसुख द्वारा 1750 ई० में बनाई राजा बलवन्त देव की संगीत सभा की मिनिएचर पेंटिंग और उसी कला परिवार के एक अज्ञात सदस्य की 1755 ई० की भगवान् कृष्ण संग रास रचाती गोपियों वाली मिनिएचर पेंटिंग का 31 करोड़ में बिकने ने समूचे कला जगत को हैरानी में डाल दिया है। यह दोनों मिनिएचर पेंटिंग एन० सी० मेहता आईसीएस जो वर्ष 1950 में हिमाचल प्रदेश के आयुक्त तैनात थे, के निजी संग्रह का हिस्सा थीं। कांगड़ा शैली के समकालीन ख्यातिलब्ध कला गुरु पद्मश्री विजय शर्मा ने यहाँ कला ग्राम मनीमाजरा चंडीगढ़ में वार्तालाप के दौरान इस पर सहजतापूर्वक प्रश्न उठाया कि नीलामी में प्राप्त यह राशि कला का मूल्य है या फिर उसकी प्राचीनता का? बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह धन किसे प्राप्त हुआ , क्या इसका आंशिक लाभ भी कलाकार तक पहुंचेगा? यह सचमुच विचारणीय है कि समाज और सरकार कला मूल्यांकन के लिए कलाकार के फौत होने की प्रतीक्षा करे या फिर उसकी कलाकृतियों के कालातीत और कालजयी होने की । कला गुरु श्री शर्मा यहां संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 1 जनवरी से 12 जनवरी तक आयोजित लघु चित्रकला शिविर में पधारे थे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारी कांगड़ा शैली जो आज विशिष्ट पहचान पा चुकी है और सम्मानजनक ज्योग्राफिक इंडिकेशन अर्थात जी.आई. टैग भी हासिल कर चुकी है, परंतु इसकी नियमित शिक्षा देने वाला देश में अब तक कोई प्रतिष्ठित संस्थान नहीं स्थापित हो सका है। उन्होंने केंद्र सरकार से अपेक्षा की कि हमारे देश में लघु चित्रकला पर केंद्रित फाइन आर्ट का बड़ा संस्थान अवश्य स्थापित किया जाए। उल्लेखनीय है कि श्री शर्मा यूं तो सैकड़ों लोगों को इसकी शिक्षा दे चुके हैं तथा वर्तमान में उनके तीस शिष्य पूरी सक्रियता से परंपरागत कांगड़ा शैली में कलाक्रम कर रहे हैं। इस शिविर में उनके कुछ शिष्य भी शामिल थे , जिनमें से एक मेरा मित्र अंशु मोहन राजा मान सिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर का शोध छात्र भी शामिल था। कलाग्राम- मनीमाजरा, चंडीगढ़ में आयोजित इस बारह दिवसीय लघु चित्रकला शिविर में पदमश्री कला गुरु विजय शर्मा सहित हिमाचल के आठ और राजस्थान के छः, कुल 14 कला सिद्ध आर्टिस्ट शामिल थे। इन कलाकारों ने रागमाला पर 28 लघु चित्र तैयार किये , जो एक से बढ़कर एक हैं। मैं इस शिविर के दौरान चार बार वहां गया और उनके बीच रहकर उन्हें काम करते देखा जो सचमुच सुखद अनुभव था। सभी निष्णात् कलाकार एक टीम की तरह काम कर रहे थे और ऐसे में मृदु भाषी कला गुरु पद्मश्री विजय शर्मा की मार्गदर्शी भूमिका सधे हुए कप्तान सरीखी प्रतीत हुई । कलाकारों का ऐसा सानिध्य मेरे लिये अविस्मरणीय है। रागमाला पर प्रकाश डालते हुए पद्मश्री कला गुरु श्री विजय शर्मा ने बताया कि राग-रागिनियों एवं उनके ध्यान चित्रों का अंकन, उनकी प्रकृति, गायन काल, ऋतु और ध्वनिमेल के मान्य नियमों के अनुरूप किया जाता है। संगीत की अमूर्त ध्वनि की विषय वस्तु को रंग-रेखाओं द्वारा कागज पर उतारना बेहद परिश्रम साध्य है, जो पूरे विश्व में सिर्फ भारत देश की लघु चित्र शैली में देखने को मिलता है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि कांगड़ा शैली की लघु चित्रकला में रागमाला विषयक कई श्रृंखलाओं का चित्रांकन हुआ है। संगीताचार्य क्षेमकर्ण ने छह मुख्य रागों-भैरव, मालकौंस, हिण्डोल, दीपक, मेघ और श्री को स्वीकार किया है। श्री राग की छह और सभी रागों की पांच भार्या रागनियां और आठ राग पुत्र हैं। इस प्रकार रागमाला परिवार के कुल सदस्यों की संख्या 86 है। क्षेमकर्ण द्वारा निर्देशित ध्यान-स्वरूपानुसार कांगड़ा चितेरों ने अपनी ऊर्वर कल्पना से राग- रागिनियो के अति सुंदर चित्र बनाए। कांगड़ा शैली की एक प्रसिद्ध चित्रावली राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में भी संग्रहित है। शिविर के दौरान कला साधना रत रहते हुए भी वह लघु चित्रों की शैलियों पर बीच-बीच में चर्चा करते रहे। उन्होंने राजपूत शैली, मुगल चित्र शैली और तात्कालीन परिस्थितियों का जिक्र करते हुए बताया कि औरंगजेब के गद्दीनशीन होने के बाद पहाड़ चढ़े कलाकारों की कला ने गुलेर से जो उड़ान भरी वह कांगड़ा पहुंचते-पहुंचते परिपक्व कलारूप अख्तियार कर गई। साहित्य, संगीत, और कला के इस गहरे रिश्ते में संरक्षण के तड़के ने निखार ला दिया। कलागुरू पद्मश्री श्री विजय शर्मा ने बताया कि कांगड़ा शैली में रेखाओं और रंगों का संयोजन इसे बेजोड़ बना देता है। कालजयी भारतीय चिंतनधारा और सौंदर्य दर्शन की सजीव परंपरा का भी निर्वहन होता है,जिससे मानवीय भावनाओं की सम्मानपूर्वक संतुलित प्रस्तुति रहती है। पूरे भारतीय समाज में ऐसे चित्रांकन की व्यापक स्वीकार्यता ने इस शैली को आज भी जीवित रखा है। चित्रकला शिविर में शामिल कलाकारों में कला गुरु पद्मश्री विजय शर्मा द्वारा राग नट नारायण( चित्र में विष्णु और शिव के विग्रह का संयुक्त रूपाकार दृष्टव्य है) तथा रागनी देव गंधारी (शिवलिंग अर्चना रत राजसी भद्र महिला, पीछे पूजन सामग्री, पुष्प आदि लिए अनुचरी दृष्टव्य)। शिविर में अन्य कालाकारों ने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। सुभाष अरोड़ा / 18 जनवरी 25