फर्जी दस्तावेजों की मदद से मेडिकल बिल लगाकर अपने एकांउट में ट्रांसफर कराई रकम -6 सालो से चल रही थी हेराफेरी, हुए सस्पेंड, अब एफआईआर दर्ज भोपाल(ईएमएस)। पुलिस मुख्यालय की लेखा शाखा में पदस्थ तीन पुलिसकर्मियों द्वारा प्रो-लांग सर्टिफिकेट के जरिए निकाली गई लाखो की रकम के मामले में आरोपी पुलिसकर्मियो को निलंबित किये जाने के बाद अब उनके खिलाफ जहांगीराबाद पुलिस ने बीएनएस की धारा 318, 319, 336, 338 और 340 के तहत एफआईआर भी दर्ज कर ली है। गड़बड़ी पकड़ में आने पर भोपाल पुलिस कमिश्नर को पिछले महीने ही कार्रवाई करने के आदेश पुलिस मुख्यालय की और से दिए गए थे। तीनों आरोपी पुलिसकर्मियो के द्वारा मेडिकल देयको के आहरण में गड़बड़ी की आशंका है। फर्जीवाड़े में मिली जानकारी के अनुसार सूबेदार नीरज कुमार, एसआई हरिहर सोनी और एएसआई हर्ष वानखेड़े मिनिस्ट्रीयल स्टाफ में तैनात थे। तीनो को मेडिकल देयको के आहरण में गड़बड़ी की आशंका होने पर 8 जनवरी 2025 को निलंबित कर दिया गया था। देयकों में फर्जीवाड़ा होने की आशंका के चलते इसकी जांच के आदेश दिये गये थे। तीनों के खिलाफ एआईजी वेलफेयर अंशुमान अग्रवाल ने जांच की थी। उनके साथ वित्त अधिकारी रीना यादव और तीन आडिटर्स को भी शामिल किया था। जॉच में सामने आया कि आरोपियों ने कूट रचित प्रॉलोंग मेडिकल सर्टिफिकेट बनाकर अपने ही खाते में देयकों का भुगतान किया था। पीएचक्यू को इस गड़बड़ी की जानकारी ट्रेजरी विभाग के साफ्टवेयर के जरिये पकड़ में आई थी। रेंडम जांच के दौरान एक ही बीमारी के एक ही बिल पाए गए थे। जिसके संबंध में ट्रेजरी ने पुलिस मुख्यालय को जानकारी देते हुए इसमें गड़बड़ी की आशंका जताई थी। इसके बाद प्रकरण की अंदरुनी तौर पर जांच की जा रही थी। सूत्रो के अनुसार पुलिस मुख्यालय की आंतरिक संमिति ने इस तरह के भुगतान किये गये दस बिलों की छानबीन की जिसमें आठ बिल फर्जी पाए गए। तीनो आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। अधिकारियो का कहना है कि उन्हें अदालत में पेश कर रिमांड पर लेकर आगे की पूछताछ की जाएगी। -पूर्व मे जारी बिलो मे हेराफेरी कर किया फर्जीवाड़ा, सील में भी की गड़बड़ी घोटाले को लेकर पुलिस मुख्यालय ने इन बिलो पर स्वास्थ्य विभाग से भी रिपोर्ट तलब की थी। जिसमें पता चला कि नीरज कुमार, हरिहर सोनी और हर्ष वानखेड़े की तरफ से लगाए गए सारे विकल्पों के दस्तावेज उनकी तरफ से जारी ही नहीं हुए। तीनों आरोपियों ने उन मेडिकल अधिकारियों के बिल में लगे सील और दस्तावेजों की गड़बड़ी की थी। उसमें जो नंबर लगे थे, वह पूर्व में जारी किसी अन्य बिल के थे। उन्हीं नंबरों में बार-बार भुगतान होने पर यह फर्जीवाड़ा पकड़ में आया था। -शुरुआत में 70 लाख की जालसाजी आई सामने फर्जीवाड़ा पकड़ में आने के बाद सूबेदार नीरज कुमार, एसआई हरिहर सोनी और एएसआई हर्ष वानखेड़े के कार्यकाल के समय भुगतान किये गये सभी बिल की स्क्रूटनी कमेटी की तरफ से की जा रही है। शुरुआती पड़ताल में तीनों के खाते में करीब 70 लाख रुपए की राशि ट्रांसफर होने के सबूत मिल गए हैं। तीनो में से हर एक के एकांउट में 20 से 30 लाख रुपए की रकम जमा हुई थी। नीरज अहिरवार पुलिस मुख्यालय की लेखा शाखा में अकाउंट अफसर था। वहीं हर्ष वानखेड़े और हरिहर सोनी के पास क्लर्क की जिम्मेदारी थी। -क्या होता है प्रो-लांग सर्टिफिकेट सूत्रों के अनुसार प्रो-लांग सर्टिफिकेट पुलिस कर्मचारियों के मेडिकल बिल से संबंधित भुगतान पर बनाया जाता है। इसके बिना किसी भी उपचार से संबंधित बिल पर भुगतान नहीं होता था। यह प्रमाण पत्र के मान्यता की अवधि एक साल होती है। यदि पुलिस अधिकारी या कर्मचारी को बीमारी ठीक नहीं होने पर उसे रिन्यू कराना होता है। तीनो आरोपी साल 2019 से लेकर अभी तक यानि 6 सालो तक साफ्टवेयर की तकनीकी कमी का फायदा उठाकर फर्जीवाड़ा कर रहे थे। शुरुआती जांच में पता चला है कि यह फर्जीवाड़ा 2019 से लगातार 2024 तक किया गया। हालांकि शुरुआत में आरोप है कि तीनो ने वित्तीय वर्ष 2022, 2023 और 2024 में करीब 76 लाख रुपए का फर्जी भुगतान अपने ही बैंक खातों में लिया है। ये भुगतान कभी खुद को तो कभी परिवार के सदस्यों को बीमार बताकर लिया गया है। आरोपी गंभीर बीमारियों के लिए जरूरी प्रो-लॉन्ग सर्टिफिकेट बनवाकर ये गड़बड़ी कर रहे थे। ये सर्टिफिकेट सिविल सर्जन से लिया जाता है। हालांकि घोटाला सामने आने के बाद तीनो के कार्यकाल के सभी बिलों की बारीकी से जांच की जा रही है। इसके अलावा प्रदेश के सभी यूनिट को वार्न किया गया है, कि प्रो-लांग सर्टिफिकेट को लेकर अपने स्तर पर पड़ताल की जाए। जुनेद / 6 फरवरी