08-Mar-2025
...


भोपाल(ईएमएस)। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं खेल युवा एवं सांस्कृतिक गतिविधि विभाग, गुजरात सरकार के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दो दिवसीय महिलाओं की सर्जनात्मकता का उत्सव इन्द्राणी उत्सव का आयोजन जनजातीय संग्रहालय में दोपहर 02 बजे से किया गया है। 8 एवं 9 मार्च 2025 को आयोजित उत्सव में चित्रांकन शिविर, शिल्प मेला विविध माध्यमों के शिल्प का प्रदर्शन और साथ ही देशज व्यंजन का भी संयोजन किया गया है। पहले दिन 8 मार्च को कार्यक्रम की शुरुआत जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, निदेशक डॉ धर्मेंद्र पारे, युवा एवं सांस्कृतिक गतिविधि विभाग, गुजरात के युवा एवं सांस्कृतिक अधिकारी श्री हितेश दिहोरा, भील चित्रकार पद्मश्री सुश्री भूरी बाई द्वारा कलाकारों के स्वागत से की गई। इसके बाद उत्सव में सुश्री शकुन्तला राजपूत एवं साथी-छतरपुर द्वारा बुन्देली गायन एवं सुश्री दिव्या चतुर्वेदी एवं साथी-सतना द्वारा बघेली गायन, सुश्री शामला कालबेलिया एवं साथी-राजस्थान द्वारा भवई/सपेरा नृत्य, ज्योति तुम्भार एवं साथी-महाराष्ट्र द्वारा लावणी नृत्य, जया सक्सेना एवं साथी-मथुरा द्वारा बृज की होली,सुश्री प्रतिभा रघुवंशी एवं साथी-उज्जैन द्वारा मटकी नृत्य, अंकिता डांडोलिया एवं साथी-छिंदवाड़ा द्वारा भारिया जनजातीय सैताम नृत्य, रोशनी कास्देकर एवं साथी-बैतूल कोरकू जनजातीय चिलोरी नृत्य, पूजा श्रीवास्तव एवं साथी-सागर द्वारा नौरता नृत्य, नर्तन कला केन्द्र / विरानी साइंस, गुजरात समूह द्वारा गरबा नृत्य, तांडव नर्तन अकादमी, गुजरात द्वारा उपशास्त्रीय एवं लोक नृत्य एवं फॉर मोस्ट म्यूजिक अकादमी, गुजरात द्वारा देशभक्ति गायन की प्रस्तुति दी गई। उत्सव में सुश्री शकुन्तला राजपूत एवं साथी-छतरपुर द्वारा बुन्देली लोक और फाग गीतों का गायन किया गया। उन्होंने कंगनवां मांगे ननदी लाल की बधाई (सोहर)...,भरमारी पिचकारी कन्हैया ने (होली गीत)..., समधी नाच लेव द्वारे पै बज रई शहनाई (विवाह गीत)..., जगाय लो मनाय लो उठाय लो सखी बन्ना सोबेरी अररियां (बन्ना गीत)...,कच्ची ईंट बाबुल देहरी न धरियो (विवाह गारी)..., ऊँचे लगे दरबार बिराजीं माई (देवी गीत)..., जैसे कई बुंदेली लोक और फाग गीतों की प्रस्तुति दी। इसके बाद सुश्री दिव्या चतुर्वेदी एवं साथी-सतना द्वारा बघेली गायन किया गया। कलाकारों ने गणेश वंदना –गौरी गणेश मनाऊं...,हमरे बाबुल के चंदन बखरिया..., देवी जी का भगत..., प्राण प्यारी सुकुमारी..., सिर बांधे मुकुट खेलें होली..., खेले मसाने में होली दिगम्बर..., जैसे कई गीतों की प्रस्तुति दी गई। उत्सव में शामला कालबेलिया एवं साथी-राजस्थान द्वारा भवई/सपेरा/नृत्य प्रस्तुति दी गई। भवई नृत्य, राजस्थान का एक पारंपरिक लोक नृत्य है। कलाकार अपने सिर पर मिट्टी या पीतल के बर्तन रखकर नृत्य करते हैं। सिर पर 7-8 मटके रखकर नृत्य करना, तलवारों की धार पर नृत्य करना, जमीन से मुंह से रूमाल उठाना, गिलासों पर नाचना, थाली के किनारों पर नाचना आदि इसकी मुख्य विशेषताएं हैं। इसके बाद समूह ने सपेरा नृत्य किया। अगले क्रम में सुश्री जया सक्सेना और साथी, मथुरा द्वारा बृज की लठ्ठ्मार होली और चरकुला नृत्य की प्रस्तुति दी। चरकुला नृत्य-राधा रानी के जन्मदिवस पर उनकी नानी द्वारा गाड़ी पर दिये रखकर नृत्य किया था। चरकुला ब्रज क्षेत्र में किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य में महिलाएँ अपने सिर पर बड़े बहु-स्तरीय वृत्ताकार लकड़ी के पिरामिडों को रखकर कृष्ण भक्ति गीतों पर नृत्य करती हैं। वहीं सुश्री प्रतिभा रघुवंशी एवं साथी, उज्जैन द्वारा मटकी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। मालवा में मटकी नाच का अपना अलग परम्परागत स्वरूप है। विभिन्न अवसरों पर मालवा के गाँव की महिलाएँ मटकी नाच करती है। ढोल या ढोलक को एक खास लय जो मटकी के नाम से जानी जाती है, उसकी थाप पर महिलाएँ नृत्य करती है। प्रारम्भ में एक ही महिला नाचती है, इसे झेला कहते हैं। महिलाएँ अपनी परम्परागत मालवी वेशभूष में चेहरे पर घूँघट डाले नृत्य करती हैं। नाचने वाली पहले गीत की कड़ी उठाती है, फिर आसपास की महिलाएँ समूह में कड़ी को दोहराती है। नृत्य में हाथ और पैरों मेंसंचालन दर्शनीय होता है। नृत्य के केद्र में ढोल होता है। ढोल पर मटकी नृत्य की मुख्य ताल है। ढोल किमची और डण्डे से बजाया जाता जाता है। मटकी नाच को कहीं-कहीं आड़ा-खड़ा और रजवाड़ी नाच भी कहते हैं। सुश्री अंकिता एवं साथी, छिंदवाड़ा द्वारा भारिया जनजातीय नृत्य सैताम की प्रस्तुति दी। मध्यप्रदेश के भारिया जनजातीय द्वारा किये जाने वाले सैताम नृत्य में महिलाएं रंग बिरंगे परिधान पहनकर नृत्य करती हैं। संगीत की धुन और ताल के साथ जुगलबंदी करते हैं। बांसुरी की मधुर धुन, नगाड़ा की थाप पर मंत्रमुग्ध कर देने वाली नृत्य शैली है। यह नृत्य फसल कटाई और विभिन्न पर्वों के शुभ अवसर पर किया जाता है। ढोल, नगाड़ा, बांसुरी का अद्भुत सामंजस्य किया जाता है। सुश्री ज्योति तुम्भार एवं साथी-महाराष्ट्र द्वारा महाराष्ट्र का लावणी नृत्य प्रस्तुत किया गया। लावणी भारत में प्रचलित संगीत की एक शैली है। लावणी पारंपरिक गीत और नृत्य का एक संयोजन है, जो विशेष रूप से ढोलकी की थाप पर किया जाता है। लावणी लय के लिए प्रसिद्ध है। लावणी ने मराठी लोक रंगमंच के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महिला कलाकारों द्वारा लुगाड़े साड़ी का प्रयोग कर यह नृत्य किया जाता है। साथ ही इसमें गाने तेज गति से गाए जाते हैं। सुश्री रोशनी कास्देकर एवं साथी-बैतूल कोरकू जनजातीय चिलोरी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। कोरकू जनजातीय की किशोरावस्था की युवतियां संसार को देखने और समझने की प्रथम अनुभूति के लिए यह नृत्य संयोजित किया जाता है। बच्चियां पारंपरिक वेशभूषा में शरद ऋतु के दौरान यह नृत्य किया जाता है। गोल घूमते हुए गीतों के माध्यम से यह नृत्य किया जाता है। अगले क्रम में पूजा श्रीवास्तव एवं साथी, सागर द्वारा नौरता नृत्य की प्रस्तुति दी। बुन्देलखण्ड अंचल में नवरात्रि के अवसर पर कन्याएं इसका आयोजन करती हैं। यह पूरे नौ दिन तक चलता है। घर के बाहर एक अलग स्थान पर नौरता बनाया जाता है। गाँव में रंगों की जगह गेरू, सेम के पत्तों का रंग, हल्दी तथा छुई का प्रयोग मुख्य रंग इतने ही होते हैं। नौरता में सुअटा, चंदा सूरज तथा नीचे रंगीन लाइनें बनायी जाती हैं। कई घरों में नौरता जहाँ बनता है। वहाँ पर आकर्षक बाउण्ड्री बनायी जाती है। नौरता पर नौ दिन अलग-अलग ढंग से चौक बनाये जाते हैं। उत्सव में नर्तन कला केन्द्र / विरानी साइंस, गुजरात समूह द्वारा गरबा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। नवरात्रि के समय जगह-जगह गरबा नृत्य किया जाता है। महिलाएं और पुरुष पारंपरिक पोशाक पहनकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य के माध्यम से देवी की प्रार्थना की जाती है एवं नौ रात्रि के समय बहुत ही उल्लास और उमंग के साथ युवक एवं युवतियां नृत्य करते हैं। वहीं तांडव नर्तन अकादमी, गुजरात द्वारा उपशास्त्रीय एवं लोक नृत्य के माध्यम से देवी माता की स्तुति ओर आराधन की गई एवं फॉर मोस्ट म्यूजिक अकादमी, गुजरात द्वारा देशभक्ति गायन की प्रस्तुति दी गई। उन्होंने ए मेरे बटन के लोगों..., भारत हमको जान से प्यारा है..., तेरी मिट्टी में..., ए वतन वतन मेरे आबाद रहे..., जैसे कई देश भक्ति गीत की प्रस्तुति दी। समारोह के अवसर पर आयोजित चित्र शिविर में जनजातीय, लोक चित्र परंपरा की महिला चित्रकार के द्वारा चित्रांकन एवं महिला शिल्पी द्वारा शिल्पों का प्रदर्शन एवं विक्रय किया जा रहा है। इस अवसर पर संग्रहालय परिसर में देशज व्यंजन अंतर्गत आंचलिक स्वाद भी परोसा गया है। हरि प्रसाद पाल / 08 मार्च, 2025