नई दिल्ली,(ईएमएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि देश में जितना विरोध संघ का हुआ है, उतना किसी अन्य संगठन का नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद स्वयंसेवकों के मन में समाज के प्रति सात्विक प्रेम ही बना रहा है और इसी कारण संघ के विरोध की धार अब कम हो गई है। अमेरिकी टैरिफ विवाद के बीच आरएसएस प्रमुख भागवत ने आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा कि भारत को स्वदेशी की राह पर चलना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वदेशी का मतलब विदेशों से संबंध तोड़ना नहीं है। भागवत ने कहा, कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार तो चलेगा, लेन-देन भी होगा, लेकिन यह किसी दबाव में नहीं होगा। स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने संदेश दिया कि नेक लोगों से मित्रता करें और जो समाज के लिए अच्छा काम नहीं करते, उन्हें नजरअंदाज करें। उन्होंने कहा कि विरोधियों द्वारा किए गए अच्छे कार्यों की भी सराहना करनी चाहिए और गलत करने वालों के प्रति क्रूरता नहीं, बल्कि करुणा दिखानी चाहिए। संघ की कार्यप्रणाली का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि संगठन में कोई प्रोत्साहन या इंसेंटिव नहीं है। लोग पूछते हैं कि संघ में आकर क्या मिलेगा तो हम कहते हैं- कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि जो है वह भी चला जाएगा। यहां सिर्फ हिम्मत वालों का काम है। फिर भी स्वयंसेवक जुड़े रहते हैं क्योंकि समाज की निस्वार्थ सेवा के बाद उन्हें जो संतोष और आनंद मिलता है, वह अद्वितीय है। हिंदुत्व की परिभाषा पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि भारत का लक्ष्य विश्व कल्याण है। उन्होंने कहा, कि स्वयंसेवक जानता है कि हम हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं। हिंदुत्व, हिंदूपन और हिंदू की विचारधारा का उत्तर सत्य और प्रेम है। दुनिया अपनेपन से चलती है। हिदायत/ईएमएस 27अगस्त25