अनुमान है कि विश्व में तकरीबन 40 प्रतिशत व्यक्ति उच्च रक्तचाप के रोगी है। प्रायः उच्च रक्तचाप के कोई लक्षण नहीं होते। यही वजह है कि इस रोग को साइलेंट किलर कहा जाता है। उच्च रक्तचाप का प्रारंभिक अवस्था में उपचार अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा यह रोग हद्वय, मस्तिष्क,रेटिना और गुर्दों को क्षतिग्रस्त कर देता है। पुराने वक्त से चले आ रहे अनेक घरेलू नुस्खेआधुनिक विज्ञान की कचोटी पर भी खरे उतर रहे हैं। ऐसी एक खोज प्याज के बारे में की गई है। पूर्वी टेक्सास विश्वविद्यालय के डॉक्टर कैथरीन एवं डॉक्टर मौसेज का कहना है कि कच्चा प्याज खाने से बढ़ते हुए रक्तचाप को कम किया जा सकता है। अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिकों ने भी पाया है कि कच्चे प्याज में काफी मात्रा में पोस्टाग्लैन्डन ए -वन नामक जैविक पदार्थ होता है। उनका अनुमान है कि एक प्याज में तकरीबन मिलीग्राम का चौथाई हिस्सा प्रोस्टाग्लैन्डन का होता है। प्रोस्टाग्लैन्डग एक हार्मोन समान पदार्थ है और पहले किसी सब्जी में नहीं पाया गया। रक्तचाप को सामान्य करने में प्रोस्टाग्लैन्डन पूर्ण समर्थ है। चूहों के ऊपर हुए परीक्षणों में यह पाया गया कि एक मिलीग्राम प्रोस्टाग्लैंन्डन इंजेक्ट करने पर रक्तचाप में काफी अंतर आ जाता है। रक्तचाप नियंत्रित मेकेनिज्म चूहों और मानव में एक सा है। अतः प्याज का यह अद्भुत असर मानव में भी होना चाहिए। उच्च रक्तचाप से ग्रस्त व्यक्तियों में सबसे बड़ा वर्ग उन रोगियों का है। जिनमें शरीर की पूर्ण जांच के पश्चात भी कोई स्पष्ट वजह साफ नहीं हो पाती। ऐसे रोगियों को इसेनिशयल हाइपरटेंशन का रोगी मान लिया जाता है। आज विश्व की बहुत सी प्रयोगशालाओं में इसेनिशयल हाइपरटेंशन की तह तक पहुंचने के प्रयास जोर -शोर से चल रहे हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य जो अब तक सामने आया है। वह है ---कुछ रोगियो में उच्च रक्तचाप का सीधा संबंध गुर्दों से निकलने वाले एक जेविक रसायन रेनिन की मात्र में वृद्धि से पाया गया है। अधिक धूम्रपान करने वाले,नमक अधिक खाने वाले, तनावपूर्ण माहौल में जीवन यापन करने वाले मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति और ऐसे व्यक्तियों जिनके रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक हो ,अथवा शरीर पर अधिक चर्बी हो, में उच्च रक्तचाप रोग के होने की संभावना अधिक रहती है। उच्च रक्तचाप अन्य रोगो से बहुत कुछ अलग है। प्राय लगभग सभी रोग लक्षण द्वारा अपने आप को प्रकट कर देते हैं। लेकिन उक्त रोग अपने आप को कई वर्षों तक जाहिर ही नहीं होने देता। जब करता है तो तब जब शरीर के कुछ विशेष अंग इसके आगोश में आ चुके होते हैं। प्राय यह रोग यूं ही किए गए चेकअप के दौरान ही पकड़ में आता है। अक्सर देखा गया है कि हाइपरटेंशन के बहुत से रोगियों में सिर दर्द ,थकावट, नींद न आना एवं चिड़चिड़ापन की शिकायत रहती है। लेकिन ये शिकायत मुख्यतः उन व्यक्तियों में होती है जो इस बात से पपप अनियंत्रित उच्च रक्तचाप का द्वष्टिपटल पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। परिचित होते हैं कि उन्हें उच्च रक्तचाप की शिकायत है। उच्च रक्तचाप का तात्पर्य शायद आप समझते होंगे। यह वह दाब है जिससे हद्वय सिकुडते वक्त महाधमनी में रक्त फेंकता है। सामान्यत यह एक निश्चित परिधि के बीच में रहता है। इसका उस से बहुत गहरा सम्बन्ध है। इसका सामान्य स्तर निश्चित है। जब किसी व्यक्ति में ब्लड प्रेशर इस स्तर से अधिक हो जाता है तब वह हाइपरटेंशन अथवा उच्च रक्तचाप का रोगी हो जाता है। उदाहरण के लिए अगर एक बीस वर्षीय व्यक्ति में ब्लड प्रेशर 140/90,( मिली मीटर मरक्यूरी ) से अधिक रहने लगे तो वह हाइपरटेंशन कहलाएगा, जबकि एक 70वषीय व्यक्ति के लिए 170/105तक का ब्लड प्रेशर भी सामान्य ही समझा जायेगा। रक्तचाप का अधिक होना शरीर के कुछ अत्यंत ही महत्वपूर्ण अंगों के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। लगातार अधिक दबाव से रक्त फेंकने के कारण दिल का वह भाग रोग ग्रस्त हो सकता है। उसकी मांसपेशियों में फैलाव आ सकता है और वह काम करना बंद कर सकता है। अधिक काम करने पर एकाएक सांस चढ़ना एवं सोते हुए रात्रि में अचानक सांस फूलना इसके सूचक है। पाया गया है कि एंजाइना एवं हार्ट अटैक होने की संभावना भी उच्च रक्तचाप के रोगी में अधिक होती है। रक्त दबाव में वृद्धि मस्तिष्क में रक्तस्राव का एक प्रमुख कारण है। यह प्राय घातक सिद्ध होने वाले दुष्परिणामों के अलावा मस्तिक की धमनियों में सिकुड़न आने के कारण रोगी के सामने अचानक तमाम सारी परेशानियां भी उत्पन्न हो सकती है जैसे नजर कमजोर पड़ना, बोलचाल में परेशानी आना,अंग कमजोर हो जाना आदि। दिल एवं मस्तिष्क के अलावा उच्च रक्तचाप का दुष्प्रभाव गुर्दों पर भी पड़ सकता है। रक्तचाप काबू में न होने पर गुर्दों काम करना बंद कर सकते हैं। सही वक्त पर सही उपचार नहीं मिलने पर यह जानलेवा भी हो सकता है। दिन में कई बार पेशाब जाना, रात में भी पेशाब के लिए उठाना ,इस बात के संकेत हो सकते हैं कि रोग गुर्दा तक बढ़ चुका है। उन रोगियों में जिन्हें रोग से निपटने के लिए मूत्र वृद्धि कारक दबाए मिल रही हो ,ऐसा होना स्वाभाविक ही है। उन्हें इन लक्षणों से फिक्रमंद नहीं होना चाहिए। उच्च रक्त ताप का असर दृष्टि पटल पर भी पड़ता है। रेटिना की रक्त वाहिकाओं में उत्पन्न हुए परिवर्तनों को देखकर विशेष लेंस युक्त यंत्र लगाया जा सकता है कि रोगी का रक्तचाप पिछले दिनों में कैसा रहा। ऐसे रोगियों को इंसेनिशशशयल हाइपरटेंशन से प्रभावित है, चाहिए कि वह निमित्त रूप से ब्लड प्रेशर चेक करवाए और साथ ही दवा भी लेते रहे इस रोग का पूर्ण उपचार अभी तक संभव नहीं हो सका है। किंतु परहेज एवं दवा द्वारा रक्तचाप को सामान्य बनाया जा सकता है। आवश्यक इस बात की है कि जीवन को तनाव मुक्त एवं कम से कम पेचीदा बनाया जाए। (लेखक के विषय में --मध्य प्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं) ईएमएस / 23 मार्च 25