राष्ट्रीय
16-Apr-2025
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उठने लगे सवाल नई दिल्ली (ईएमएस)। क्या सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति को इसके लिए विविश किया जा सकता है कि वह किसी विधेयक की संवैधानिक पर राय लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करें? तमिलनाडु में राज्यपाल की ओर से 10 विधेयकों को अटकाने के मामले में सुनवाई कर शीर्ष अदालत ने ऐसा आदेश दिया था। अब इस आदेश पर बहस शुरू हो गई है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को किसी भी विधेयक को लटकाना नहीं चाहिए। इसके अलावा राष्ट्रपति के पास भी कोई फाइल आती है, तब 3 महीने से ज्यादा समय तक न लटकाएं। चर्चा है कि मोदी सरकार की ओर से इस मामले में पुनर्विचार याचिका पर भी विचार करने के बाद दाखिल की जा सकती है। दरअसल सवाल यह है कि क्‍या राष्‍ट्रपति को हर विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने के लिए मजबूर कर सकते है? एक गंभीर सवाल उठता है कि क्‍या कोर्ट अनुच्‍छेद 143 के तहत किसी भी विधेयक की संवैधानिकता पर राय के लिए राष्‍ट्रपति पर दबाव डाला जा सकता है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 201 में इसतरह के किसी टाइम बॉड का जिक्र नहीं है कि राज्यपाल की ओऱ से भेजे गए किसी विधेयक को उन्हें कितने दिन के अंदर मंजूर करना। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तीन महीने की लिमिट तय की है। जस्टिस जेपी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने इसके अलावा कहा है कि यदि ऐसी मंजूरी नहीं दी जाती है, तब फिर राज्य को स्पष्ट कारण भी दिया जाए। अदालत ने कहा, हमारी राय है कि यदि किसी बिल की संवैधानिकता को लेकर कोई संदेह है, तब इस कोर्ट की भी राय ली जा सकती है। राष्ट्रपति को न सिर्फ फैसला लेना चाहिए बल्कि कोई संदेह होने पर अदालत की राय भी ले सकते हैं। आशीष/ईएमएस 16 अप्रैल 2025