लंदन (ईएमएस)। बच्चों को रंग-बिरंगे उत्पाद जितने सुंदर और स्वादिष्ट दिखते हैं, ये उनके लिए उतने ही खतरनाक भी हो सकते हैं। इन प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किए जाने वाले आर्टिफिशियल फूड कलर यानी कृत्रिम रंग बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो इन उत्पादों में रेड 40, येलो 5,येलो6 और ब्ल्यू 1 जैसे सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं। ये रंग बच्चों में एलर्जी, त्वचा रोग, अस्थमा, पेट दर्द, नींद की कमी, डायरिया जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। इतना ही नहीं, कुछ मामलों में ये रंग बच्चों के ब्रेन फंक्शन और व्यवहार को भी प्रभावित करते हैं। बच्चों में अचानक चिड़चिड़ापन, ध्यान की कमी या गुस्से में बदलाव जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं, जिसे कई बार माता-पिता सामान्य व्यवहार मानकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इन खाद्य पदार्थों में मौजूद रंग लंबे समय तक शरीर में रहकर धीरे-धीरे असर करते हैं। ऐसे में इनसे जुड़ी समस्याएं धीरे-धीरे उभरती हैं और माता-पिता को इसका पता तब चलता है जब स्थिति गंभीर हो जाती है। इसलिए सबसे पहले जरूरी है कि बाजार से किसी भी पैक्ड फूड को खरीदते समय उसका लेबल जरूर पढ़ें। अगर उसमें ई102, ई110, ई129 जैसे कोड या आर्टिफिशियल कलर का जिक्र हो, तो उसे बच्चों को देने से बचें। बच्चों को ताजा, घर का बना खाना दें जिसमें प्राकृतिक रंग और पोषण दोनों मौजूद हों। घर में भी आकर्षक रंगों वाला खाना चुकंदर, अनार, पालक, हल्दी, केसर, जामुन और ब्लूबेरी जैसी चीजों से तैयार किया जा सकता है। इससे ना सिर्फ बच्चों को रंग-बिरंगा स्वाद मिलेगा बल्कि उनके शरीर को जरूरी विटामिन्स और मिनरल्स भी मिलेंगे। बच्चों की सेहत को ध्यान में रखते हुए यह बेहद जरूरी है कि अभिभावक सजग रहें और प्राकृतिक विकल्पों को प्राथमिकता दें। रंगों की इस दौड़ में बच्चों की सेहत को दांव पर ना लगने दें। मालूम हो कि बाजार में मिलने वाले रंग-बिरंगे खाने-पीने के उत्पाद जैसे कैंडी, चॉकलेट, जूस और स्नैक्स बच्चों को बेहद आकर्षित करते हैं। इनका स्वाद, रंग और पैकेजिंग इतनी लुभावनी होती है कि बच्चे इन्हें देखकर खुद को रोक नहीं पाते। सुदामा/ईएमएस 17 अप्रैल 2025