राज्य
21-Apr-2025
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- निजी कॉलेजों की तानाशाही पर भडक़े छात्र और अभिभावक (अभिनव जैन कासलीवाल) भोपाल (ईएमएस)। राजधानी भोपाल के मेडिकल, नर्सिंग और पैरामेडिकल कॉलेजों में छात्रों के साथ जबरदस्ती और अनुचित व्यवहार का गंभीर मामला सामने आया है। 18 अप्रैल को गुड फ्राइडे की छुट्टी के दिन, भोपाल के कई निजी नर्सिंग और पेरामेडिकल कॉलेजों ने छात्रों को आरोग्य भारती के मासिक प्रबोधन कार्यक्रम में जबरन भेजा। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन द्वारा स्वस्थ जीवन शैली और जीवन प्रबंधन पर आधारित था। कॉलेज प्रबंधन ने कार्यक्रम में उपस्थिति को जिओ टैगिंग के माध्यम से अनिवार्य कर दिया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कार्यक्रम में भीड़ जुटाने की मंशा से छात्रों को बाध्य किया गया। जो नहीं गए, उन्हें मिली मानसिक सजा छुट्टी के दिन आयोजित इस कार्यक्रम में जो छात्र शामिल नहीं हो सके, उन्हें कॉलेजों ने मानसिक रूप से प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। एक छात्रा ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमने सोचा था कि छुट्टी है, लेकिन कॉलेज ने जबरन बुलाया। जो नहीं गए, उनकी पांच दिन की अनुपस्थिति दर्ज कर दी गई। शनिवार को हाफ डे होने के बावजूद हमें पूरा दिन बैठा कर रखा गया और ऊपर से 140 पेज का असाइनमेंट भी थमा दिया गया। इसे डिसिप्लिन कहा जा रहा है, लेकिन यह तो सीधी प्रताडऩा है। अभिभावकों ने जताई नाराजगी छात्रों के साथ हुए इस व्यवहार को लेकर अभिभावकों में भी जबरदस्त आक्रोश है। कई अभिभावकों ने कॉलेज प्रशासन के इस रवैये को तानाशाही और विचारधारा थोपने की कोशिश करार दिया। उनका कहना है कि हमने बच्चों को पढ़ाई के लिए कॉलेज भेजा है, न कि किसी संगठन की सोच या विचारधारा थोपे जाने के लिए। छुट्टी के दिन इस तरह का दबाव अस्वीकार्य है। कौन थे कार्यक्रम के मुख्य अतिथि यह कार्यक्रम आरोग्य भारती द्वारा समन्वय भवन, अपैक्स बैंक सभागार में आयोजित किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव ने की। प्रख्यात मैनेजमेंट गुरु एन. रघुरमन मुख्य वक्ता थे, और सारस्वत वक्ता के रूप में आरोग्य भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. अशोक कुमार वाष्र्णेय उपस्थित थे । आयोजन के निवेदक आरोग्य भारती के मध्य भारत प्रांत अध्यक्ष डॉ. राजेश शर्मा और आरोग्य भारती के भोपाल महानगर अध्यक्ष डॉ. अभिजीत देशमुख थे। मानवाधिकार आयोग का हस्तक्षेप जरूरी इस पूरे मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या शिक्षा संस्थान अब शैक्षणिक केंद्रों की जगह वैचारिक प्रचार के अड्डे बनते जा रहे हैं? छुट्टी के दिन छात्रों को किसी कार्यक्रम में जबरन भेजना, अनुपस्थिति पर सजा देना, और विचारधारा थोपना यह सब शिक्षा की मूल भावना के खिलाफ है। छात्रों, अभिभावकों और समाज के जागरूक नागरिकों ने शिक्षा विभाग और मानवाधिकार आयोग से इस पूरे मामले में तत्काल जांच और हस्तक्षेप की मांग की है। साथ ही, छात्रों पर लगाए गए सभी अनुशासनात्मक दंड को तुरंत रद्द किए जाने की आवश्यकता बताई है। (अभिनव जैन कासलीवाल)