15वीं शताब्दी के अंत में पुर्तगाली हिंद महासागर में आए और भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर पहुंचे, जहाँ पेड्रो अल्वारेस कैब्राल ने 1500 में कोच्चि में पहली यूरोपीय बस्ती की स्थापना की। 1503 में पुर्तगालियों ने कोच्चि में एक किला बनाया, जो भारत में उनका पहला किला था। 1503 से 1663 तक, कोच्चि पर पुर्तगालियों का शासन रहा। कोच्चि भारत में पुर्तगालियों का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था जिसके लिए पुर्तगालियों ने केरल में , लैटिन और पुर्तगाली भाषाओं को बढ़ावा दिया, और प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत व्यापार के लिए की। पुर्तगालियों ने भारत में कई व्यापारिक केंद्र स्थापित किए, जैसे कि कालीकट, गोवा, दमन, दीव और हुगली आदि। जब मैं केरल के पल्लिपुरम शहर में गया तो देखा कि 1503 में पुर्तगाली नाविकों द्वारा निर्मित, पल्लिपुरम किला या टोरे डी पलिपोराओ, भारत में अभी भी अस्तित्व में सबसे पुराना यूरोपीय किला है। वास्को डी गामा 1498 में मालाबार तट के उत्तरी भाग में कालीकट, जिसे अब कोझीकोड के रूप में जाना जाता है, पहुंचे। ज़मोरिन साम्राज्य की राजधानी, कालीकट ने पुर्तगाली नियंत्रण का प्रयास किया, विशेष रूप से व्यापार पर (जबकि अरब सदियों से अच्छी तरह से स्थापित थे)। आगे दक्षिण में कोचीन का बंदरगाह शहर था (जिसे आज कोच्चि कहा जाता है), और पुर्तगाली एडमिरल पेड्रो अल्वारेस कैब्राल ने 1500 में ज़मोरिन के खिलाफ स्थानीय शासक के साथ गठबंधन किया, जिससे मार पिट की कई हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया उस समय लड़ने के लिए उनके पास टोप और रिवाल्वर थी और कोच्चि के राजा के पास सिर्फ तलवार और जो लड़ने के लिए था वो बारूदी अस्त्र नहीं था इसलिए वहाँ उनको हरा नहीं पाएं और पुर्तगाली ने व्यापारी दृष्टिकोण से वर्षों तक शासन किया जिसके कारण कोचीन पुर्तगाली संरक्षित राज्य बन गया। कोचीन वास्तव में पुर्तगाली भारत की पहली राजधानी थी कोच्चि में वास्को दा गामा की कब्र भी थी, जब तक कि उनके अवशेष 1539 में पुर्तगाल को वापस नहीं कर दिए गए। कोचीन पहले से ही एक वैश्विक व्यापार केंद्र था, जो पुर्तगालियों के आने से बहुत पहले ही अरबों और चीनी दोनों को आकर्षित कर रहा था। इसके शासक को चीनी लोग केयिल के नाम से जानते थे, और 1400 के दशक में मिंग राजवंश के शाही दरबार ने कोचीन को ज़मोरिन से बचाने के लिए विशेष दर्जा भी दिया था। चीनी एडमिरल झेंग हे ने सम्राट यंगले (永乐帝) से उपहार भी लाए थे। यहूदी व्यापारियों का एक बड़ा समुदाय भी थे , और पुर्तगालियों के आने पर सेंट थॉमस ईसाइयों भी भी। भारतीय ईसाइयों के इस समुदाय की जड़ें पहली शताब्दी में थॉमस द एपोस्टल की इंजील गतिविधियों से जुड़ी , और वे सीरियाई ईसाई धर्म के नियमों का पालन करने वाले चर्च ऑफ़ द ईस्ट का हिस्सा थे। इसलिए पुर्तगालियों ने खुद को एक मौजूदा संपन्न व्यापार नेटवर्क वहाँ कर लिया, और इसके साथ ही पूर्व में दक्षिण-पूर्व एशिया और फिर चीन और जापान तक चले गए। डचों ने अंततः चार साल की घेराबंदी के बाद 1663 में पुर्तगालियों को बाहर निकाल दिया, लेकिन उन 160 वर्षों में पुर्तगालियों ने एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत को अपनी छाप छोड़ी। आधुनिक तोपों, बंदूकों और बारूद के अलावा, पुर्तगालियों ने काजू, तंबाकू, अमरूद, कस्टर्ड एप्पल और ब्रेडफ्रूट के साथ-साथ नारियल की खेती कर उसे 66गुना मुनाफा कमाया । उन्होंने वहाँ लैटिन और पुर्तगाली दोनों भाषाओं को बढ़ावा दिया, प्रिंटिंग प्रेस शुरू की, जिसका श्रेय आज भी केरल के कई लोग, जो भारत के बाकी हिस्सों की तुलना में पुर्तगाल के गुलाम बन गए आश्चर्य की बात है कि पुर्तगाली ने स्थानीय मलयालम भाषा की शब्दावली में भी छेड़ छाड़ किया । आज मलयालम में इस्तेमाल होने वाले कुछ सामान्य भाषा में पुर्तगाली व्युत्पन्न शब्दों में प्याज के लिए सावाला, पुर्तगाली सेबोला से आया, नौकरानी, आइया से, कासेरा, कुर्सी, कैडिरा से, चावी, चाबी, चावे से आदि शामिल हैं। रेन्जिथ के अनुसार ऐसे 170 से अधिक शब्द हैं। शुरू में उनका सीरियाई लोगों ने स्वागत किया और उन्हें पश्चिमी रीति से सीरियाई चर्चों में पवित्र मास मनाने की अनुमति दी गई। सीरियाई ईसाई भी यूरोप में एक ईसाई साम्राज्य के बारे में जानकर खुश थे और उन्हें उम्मीद थी कि पुर्तगाली उन्हें मुस्लिम अरब व्यापारियों के उत्पीड़न से बचाएंगे। सीरियाई ईसाइयों की मदद से, पुर्तगाली ने कोच्चि साम्राज्य से व्यापार करने में सक्षम थे, जिसके राजाओं ने सीरियाई लोगों को संरक्षण दिया था। पुर्तगालियों के प्रभाव में, सीरियाई लोगों ने पूर्व के असीरियन चर्च से कैथोलिक धर्म अपना लिया। लेकिन जब पुर्तगालियों ने सीरियाई ईसाइयों पर लैटिन रीति-रिवाज थोपने और कोडुंगल्लूर के आर्चीपार्की पर कब्ज़ा करने की कोशिश की, जिसमें सीरियाई ईसाई विवादास्पद डायमपर धर्मसभा के माध्यम से ईसाई धर्म को धारण किए तो संबंध बिगड़ गए। इससे सीरियाई लोगों के बीच कैथोलिक और गैर कैथोलिक गुटों के बीच मतभेद पैदा हो गया। पुर्तगाली शासन के तहत, पारंपरिक केरल शैली की वास्तुकला वाले कई चर्चों को तोड़ दिया गया और उनकी जगह पुर्तगाली शैली के चर्च बनाए गए, जिनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं। हालांकि आजकल पढ़ाया जाता है कि भारत के समुद्री मार्ग की वास्को डी गामा ने खोज की थी। सचमुच यह मूर्खता की हद है कि भारतीय बच्चों को यह पढ़ाया जा रहा है कि वास्को डी गामा ने भारत की खोज की। पढ़ाया यह जाना चाहिए कि वास्को डी गामा ने योरप को पहली बार भारत तक पहुंचने का समुद्री मार्ग बताया। दरअसल, पहले यूरोपी देशों के लिए भारत एक पहेली जैसा था। यूरोप अरब के देशों से मसाले, मिर्च आदि खरीदता था लेकिन अरब देश के कारोबारी उसे यह नहीं बताते थे कि यह मसाले वह पैदा किस जगह करते हैं। यूरोपीय इस बात को समझ चुके थे कि अरब कारोबारी उनसे जरूर कुछ छुपा रहे हैं। ये कारोबारी अरब के उस पार पूर्वी देशों से ज्यादा परिचित नहीं थे। जहां तक सवाल भारत का है तो इसके एक ओर हिमालय की ऐसी श्रंखलाएं हैं जिसे पार करना उस दौर में असंभव ही था। भारत के दूसरी ओर तीन ओर से भारत को समुद्र ने घेर रखा था। ऐसे में यूरोप वासियों के लिए भारत पहुंचने के तीन रास्ते थे। पहला रशिया पार करके चीन होते हुए बर्मा में पहुंचकर भारत में आना जोकि अनुमान से कहीं ज्यादा लंबा ओर जोखिम भरा था। दूसरा रास्ता था अरब और ईरान को पार करके भारत पहुंचना। लेकिन यह रास्ता अरब के लोग इस्तेमाल करते थे और वे किसी अन्य को अंदर घुसने नहीं देते थे। तीसरा रास्ता समुद्र का था जिसमें चुनौती देने वाला सिर्फ समुद्र ही था। ऐसे में एक ऐसे देश के समुद्री मार्ग को खोज करने यूरोप के नाविक निकल पड़े जिसके बारे में सुना बहुत था लेकिन देखा नहीं। इन नाविकों में से एक का नाम क्रिस्टोफर कोलंबस था जो कि इटली के निवासी थे। भारत का समुद्री मार्ग खोजने निकले कोलंबस अटलांटिक महासागर में भम्रित हो गए और अमेरिका की तरफ पहुंच गए। कोलंबस को लगा कि अमेरिका ही भारत है। इसी कारण वहां के मूल निवासियों को रेड इंडियंस के नाम से जाना जाने लगा। कोलंबस की यात्रा के करीब 5 साल बाद पुर्तगाल के नाविक वास्को डा गामा जुलाई 1498 में भारत का समुद्री मार्ग खोजने निकले। वास्को डी गामा ने समुद्र के रास्ते कालीकट पहुंचकर यूरोपावासियों के लिये भारत पहुंचने का एक नया मार्ग खोज लिया था। 20 मई 1498 को वास्को डा गामा कालीकट तट पहुंचे और वहां के राजा से कारोबार के लिए हामी भरवा ली। कालीकट में 3 महीने रहने के बाद वास्को पुर्तगाल लौट गए। कालीकट अथवा कोलिकोड केरल राज्य का एक नगर और पत्तन है। वर्ष 1499 में भारत की खोज की यह खबर फैलने लगी।कोच्चि में पुर्तगाली साम्राज्य 1503 से 1663 तक रहा, जब पुर्तगालियों ने यहाँ अपना पहला किला बनाया और 1663 में डचों ने कोच्चि पर कब्ज़ा कर लिया।अतः पुर्तगाल समाराज्य का अंत हुआ अतःवास्को डा गामा भारत की खोज तो किया लेकिन भारत के केरल में मसालों का कारोबार कर भारत की संस्कृति का नाश भी किया.पुर्तगाली साम्राज्य का पतन कई कारणों से हुआ, जैसे कि पुर्तगालियों के बीच आपसी मतभेद, स्थानीय शासकों का विरोध, और अन्य यूरोपीय शक्तियों का उदय उसका कारण था वास्को डी गामा भारत की खोज एक व्यापार के लिए किया और वर्षों तक कोच्ची में शासन किया अतः वह एक लुटेरा था फिर भी गोवा में वास्को डी गामा के नाम से शहर है अतः ब्रिटिश की गुलामी सब जानते हैं लेकिन पुर्तगाली समाराज्य की नहीं, यदि नाम बदलना है तो गोवा में वास्को डी गामा का नाम हटा देना चाहिए जिसने भारत में केरल की संस्कृति मंदिरो को तोड़कर गिरजाघर बनाया और वहाँ के किसानों पर जुल्म किया। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) ईएमएस / 22अप्रैल 25