राष्ट्रीय
24-Apr-2025
...


नई दिल्ली (ईएमएस)। कश्मीर का कालीन कारोबार सदियों पुराना है, जिसकी शान दुनिया भर में मशहूर है। लेकिन अब यह उद्योग अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगे टैरिफ के कारण गहरे संकट में आ गया है। अमेरिकी बाजार में कश्मीरी कालीन महंगे हुए हैं, जिससे कश्मीरी कालीन की मांग में गिरावट आई है। ट्रंप का टैरिफ वॉर हजारों कश्मीरी कारीगरों के लिए कठिन दौर लेकर आया है, जिनकी रोज़ी-रोटी इसी पारंपरिक हुनर पर टिकी हुई है। कश्मीरी कालीन बनाने वाले कारीगिरों का कहना है कि हाथ से बुने कश्मीरी कालीन न केवल बारीकी से बनाए जाते हैं, बल्कि इन्हें तैयार करने में महीनों का समय और मेहनत लगती है। बावजूद इसके, इनकी बिक्री से मिलने वाली आमदनी इतनी नहीं होती कि एक परिवार आराम से गुजारा कर सके। कालीन उद्योग की मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब अमेरिका ने आयातित वस्तुओं पर 28 प्रतिशत टैरिफ लगाया। हालांकि यह फैसला चीन जैसे बड़े उत्पादकों को टारगेट करने के लिए हुआ था, लेकिन इसकी चपेट में कश्मीर जैसे छोटे और पारंपरिक हस्तशिल्प उद्योग भी आ गए हैं। कश्मीरी कालीनों की सबसे बड़ी बाजार अमेरिका और यूरोप रहे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत से अमेरिका को सालाना 1.2 अरब डॉलर के कालीन निर्यात होते हैं। कश्मीरी कालीन कारीगर बताते हैं कि उनके मोहल्ले के कई बुनकर अब यह काम छोड़ चुके हैं क्योंकि ऑर्डर कम हुए हैं। वे कहते हैं, एक कालीन को बनाने में एक कारीगर महीनों खर्च करता हैं, लेकिन जब उसकी मांग ही नहीं हो तब हमारा यह कौशल किसी काम का नहीं।” विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी बाजार में बढ़ी कीमतें कारीगरों की मजदूरी नहीं बढ़ातीं, बल्कि ऑर्डर में कमी और अनिश्चित भविष्य का संकेत देती हैं। वहीं कुछ कालीन निर्यातकों ने बताया कि उनके अमेरिकी और यूरोपीय साझेदारों ने दर्जनों ऑर्डर रद्द किए हैं और कुछ कालीन लौटाकर भी भेजे हैं। उनका कहना है कि ग्राहक अब मशीन से बने सस्ते कालीनों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। आशीष/ईएमएस 24 अप्रैल 2025