ज़रा हटके
29-Apr-2025
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न्यूयॉर्क (ईएमएस)। विश्व भर में अभी तक कम पहचानी गई शुगर की बीमारी टाइप-5 डायबिटीज अब चर्चा में है। 75 साल पहले इस बीमारी का पहली बार उल्लेख हुआ था, लेकिन तब इसे ठीक से समझा नहीं गया। यह बीमारी कुपोषण से जुड़ी हुई है और अक्सर कमजोर, दुबले-पतले युवाओं में पाई जाती है। हाल ही में, थाईलैंड के बैंकॉक में हुई इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) की बैठक में इसे औपचारिक रूप से टाइप-5 डायबिटीज नाम दिया गया। यह बीमारी 1955 में जमैका में पहली बार सामने आई थी, और इसे उस समय जे-टाइप डायबिटीज कहा गया था। 1960 के दशक में भारत, पाकिस्तान और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में कुपोषित लोगों में इसे देखा गया। 1985 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे डायबिटीज की एक अलग किस्म के रूप में मान्यता दी, लेकिन 1999 में इसे वापस ले लिया गया, क्योंकि उस समय इसके बारे में पर्याप्त शोध और प्रमाण नहीं थे। टाइप-5 डायबिटीज एक कुपोषण से जुड़ी मधुमेह की बीमारी है, जो मुख्य रूप से कमजोर और कुपोषित किशोरों और युवाओं में पाई जाती है, खासकर गरीब और मध्यम आय वाले देशों में। इस बीमारी से दुनिया भर में करीब 2 से 2.5 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जिनमें अधिकांश लोग एशिया और अफ्रीका में रहते हैं। पहले इसे इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण माना गया था, लेकिन अब यह पाया गया है कि इन लोगों के शरीर में इंसुलिन का उत्पादन ही नहीं हो पाता। न्यूयॉर्क स्थित अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसिन की प्रोफेसर मेरीडिथ हॉकिंस ने कहा, यह खोज हमारे इस बीमारी को समझने के तरीके को पूरी तरह बदल देती है और इसके इलाज के लिए नया रास्ता दिखाती है। एक अध्ययन में डॉ. हॉकिंस और उनके सहयोगियों ने यह साबित किया कि टाइप-5 डायबिटीज, टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज से पूरी तरह अलग है। हालांकि, डॉक्टरों के लिए यह अभी भी एक चुनौती है कि टाइप-5 डायबिटीज के मरीजों का इलाज कैसे किया जाए, क्योंकि कई मरीज इस बीमारी का पता चलने के एक साल के भीतर ही नहीं बच पाते। हॉकिंस ने कहा, इस बीमारी को पहले ठीक से पहचाना नहीं गया था, और इसके इलाज के लिए प्रभावी उपायों की पहचान में भी समस्या थी। आईडीएफ ने इस बीमारी को समझने और इसका इलाज ढूंढने के लिए एक विशेष टीम बनाई है। सुदामा/ईएमएस 29 अप्रैल 2025