(वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम दिवस पर विशेष ) वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम दिवस प्रति वर्ष ३ मई को मनाया जाता है। वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के जन सूचना विभाग ने मिलकर इसे मनाने का निर्णय किया था।संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी 3 मई को अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में 1993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। इस दिन के मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लघंनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है। हिंदुस्तान में पत्रकारिता की शुरुआत 18वी सदी में हुई थी। पहला समाचार पत्र 1780 में प्रकाशित हुआ था। बंगाल गैजेट सबसे पहला मीडिया पब्लिकेशन था। भारतीय भाषा में प्रकाशित हुआ कौमुदी बांग्ला भाषा का प्रथम दैनिक समाचार पत्र था। यह किसी भारतीय भाषा में प्रकाशित पहला समाचार पत्र था। उक्त समाचार पत्र की शुरुआत स्वयं राजा राम मोहन राय के द्वारा की गई थी। हिंदी पत्रकारिता के लिहाज से बंगाल का योगदान सर्वाधिक है, 1822मे मुंबई से बाम्बे समाचार पत्र को फरदुन जी मर्जबान द्बारा प्रारंभ किया गया था, जिसका प्रकाशन आज भी यथावत जारी है। 1822में ही जाम ए जहांनुमा का प्रकाशन दिल्ली से प्रारंभ हुआ हालांकि उक्त समाचार पत्र का प्रकाशन सिर्फ उर्दू में होता था। 30मई 1826 में भारत के प्रथम हिंदी दैनिक समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन जुगल किशोर शुक्ल द्वारा कोलकाता कोलकाता से किया गया। उदन्त मार्तंड के पश्चात 10 मई 1929 को राजा राममोहन राय ने कोलकाता से ही हिंदी साप्ताहिक बंगदू त का प्रकाशन शुरू किया ,बंगदूत के प्रथम संपादक नीलरतन हलदार थे, इतना ही नहीं 18 46 मैं कोलकाता से ही मार्तंड 1848 में मालवा और 18 49 मैं जगदीप भास्कर जैसे हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित होने प्रारंभ हुए थे, पत्रकारिता को जल्दबाजी में लिखे जाने वाले जीवंत साहित्य के बतौर स्वीकार किया जाए तो हिंदी साहित्य की तमाम विधाओं की तरह भारतीय हिंदी पत्रकारिता को भी एक लंबे अंतराल तक ब्रिटिश सरकार के अधीन गुलाम भारत में अपने विकास की रूपरेखा निर्धारित करनी पड़ी थी , यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि भारत का प्रथम हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड एक गैर हिंदी भाषी प्रांत बंगाल से प्रकाशित हुआ, उदंत मार्तंड के संपादक युगल किशोर शुक्ला यूपी के बाशिंदे थे, लेकिन तालीम पूरी करने के पश्चात उन्होंने कोलकाता की ओर रुख किया, वे सदर दीवानी अदालत में वकालत करते थे , आर्थिक परेशानियों और बंगाल में हिंदी भाषी लोगों के न होने की वजह से यह समाचार पत्र ज्यादा समय तक प्रकाशित नहीं हो सका अंत11 दिसंबर 18 27 को इसका प्रकाशन हमेशा के लिए बंद हो गया, लेकिन उदंत मार्तंड को हिंदी पत्रकारिता के शीर्ष पर स्थान मिला , हिन्दुस्तान में जब भी पत्रकारिता के इतिहास पर चर्चा होती है तो चर्चा की शुरुआत उदंत मार्तंड से ही होती है हिंदी पत्रकारिता के लिहाज से बंगाल का योगदान सर्वोपरि है उदंत मार्तंड के पश्चात 10 मई 1829 को राजा राममोहन राय ने कोलकाता से ही हिंदी साप्ताहिक बंगदूत का प्रकाशन प्रारंभ किया बंगदूत के प्रथम संपादक नीलरतन हलदार थे 1832मेबाला शास्त्री जममेकर ने दर्पण नामक समाचार पत्र की शुरुआत की।1838मे द बॉम्बे टाइम्स एण्ड जर्नल ऑफ़ कॉमर्स की शुरुआत हुई बाद में उक्त समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया में तब्दील हो गया।औ 1840 में मासिक दिग्दर्शन निकला। इतना ही नहीं 1846 मैं कोलकाता से ही मार्तंड 1848 में मालवा और 1849 में जयदीप भास्करजैसे हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित होना प्रारंभ हुए थे, हिंदी भाषी क्षेत्र का प्रथम साप्ताहिक हिंदी पत्रकारिता के प्रारंभिक दौर में कोलकाता के पश्चात यदि किसी अन्य शहर को अपनी स्मृतियों में दर्ज कराते हैं तो वह काशी, है ,जनवरी 1845 में काशी से प्रकाशित होने वाला बनारस अखबार हिंदी भाषी क्षेत्र का प्रथम साप्ताहिक समाचार पत्र था, इसे राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद ने प्रकाशित किया था ,इस पत्र के संपादक गोविंद रघुनाथ थे , 18 53 मैं बनारस से हिंदी साप्ताहिक सुधाकर प्रकाशित होना शुरू हुआ ,जिसके संपादक तारा मोहन थे ,1850 में संपादक युगल किशोर शुक्ला ने एक साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया जिसका नाम था ,इसी क्रम में 18 52 मैं साप्ताहिक बुद्धि प्रकाश का प्रकाशन आगरा से शुरू हुआ जिसके संपादक मंशी सदा सुख लाल थे ,1848 में शिमला से शेख अब्दुल्ला ने हिंदी और उर्दू का साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित करना शुरू किया ,जिसका नाम शिमला समाचार पत्र था , 19 वीं सदी का 50 वा दशक हिंदी पत्रकारिता के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ ,18 57 के बाद हिंदी पत्रकारिता में एक जबरदस्त उछाल आया, 1854 मैं कोलकाता से हिंदी के प्रथम दैनिक समाचार पत्र सुधा का प्रकाशन प्रारंभ हुआ जिस के संपादक श्याम सुंदर सेन थे, निर्भीक और प्रगतिशील सोच पर आधारित पत्रकारिता के चलते इस समाचार पत्र को ब्रिटिश सरकार की तमाम सारी यातनाएं झेलनी पड़ी , फरवरी 18 57 में दिल्ली से प्रकाशित पयामे -ए -आजादी समाचार पत्र की आवाज तो दिल्ली की आवाम के दिलों में घर कर गई। इस समाचार पत्र ने आजादी की एक ऐसी मशाल जलाई जिसे 18 57 के रणबांकुरे ने अपने हाथों में थाम करअंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया। उस दौर में पयामे -ए-आजादी में 16 पंक्तियों की एक कविता प्रकाशित हुई थी जिसे 18 57 में कौमी झंडे को सलामी देते वक्त जगह-जगह गाया जाता था, किंवदंतियों तो यह भी है कि जिन लोगों के घरों पर पयाम --ए- आजादी की प्रति पाई गई उन्हें अंग्रेजी हुकूमत द्वारा फांसी पर लटका दिया गया। हालांकि दुर्भाग्य सेआज हिंदुस्तान में पहले उर्दू समाचार पत्र पयाम -ए-आजादी की एक भी प्रति उपलब्ध नहीं है ,,सिर्फ लंदन के संग्रहालय में इसकी एक प्रति सुरक्षित रखी हुई है, कुल मिलाकर 18 57 के पहले कालखंड को हिन्दी समाचार पत्र पत्रकारिता के प्रारंभिक युग और 18 57 से अब तक की हिंदी पत्रकारिता को मोटे तौर पर पांच भागों में विभाजित किया जा सकता है । गौरतलब बात है कि लोकमान्य तिलक महात्मा गांधी जैसे कद्दाबर नेताओं ने भी समाचार पत्र निकाले, 1881 में बाल गंगाधर तिलक ने मराठी समाचार पत्र केसरी का प्रकाशन प्रारंभ किया। 1903 में महात्मा गांधी ने भी कमजोर तबकों के लिए इंडियन ओपिनियन दक्षिण अफ्रीका नाम से अखबार का प्रकाशन किया।इसी क्रम में 1909 में पंडित मदन मॉल मालवीय ने द लीडर नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया था 1913 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने क्रांतिकारियों के लिए कानपुर से प्रताप नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया (लेखक -मध्य प्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) ईएमएस / 29 अप्रैल 25