लेख
01-Jul-2025
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संशोधनों की शरशैय्या पर अंतिम सांस की तैयारी में पड़े संविधान को महाभारत के भीष्म पितामह की तरह संविधान के सिर के नीचे एक तीर और लगाने की तैयारी शुरू कर दी गई है और आज की राजनीति के अर्जुन प्रधानमंत्री मोदी यह तीर जल्द ही चलाने वाले हैं‌। भारत का संविधान विश्व का एकमात्र ऐसा संविधान है, जिसमें अभी तक सवा सौ से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं, जो भी राजनीतिक पार्टी सत्ता में आती है, वह अपने अनुकूल संविधान रखने के लिए संशोधन का खेल खेलती है और फिर उसी के अनुरूप शासन चलती है, अब प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी अपने एक दशीय शासन काल के बाद संविधान में संशोधन का खेल शुरू करने वाले हैं। जिसकी प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष जैसे प्रावधान हटाए जा रहे हैं, जबकि यह प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर नेहरू के पंचशील सिद्धांत के प्रमुख अंग रहे हैं। भारत के उपराष्ट्रपति तथा राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ जी ने इस मुहिम की शुरुआत की है और इन दोनों शब्दों को सविधान के नासूर बताया है, उनका तर्क है कि सनातन परंपरा की आत्मा के साथ अपवित्रता है, उन्होंने 1975 में इंदिरा गांधी जी द्वारा लगाए गए आपातकाल को संविधान के लिए सबसे अंधकारमय काल बताया है, उनका कहना है कि संविधान की प्रस्तावना किसी भी संविधान की आत्मा होती है और भारत को छोड़कर दुनिया के किसी भी देश में इसे नहीं बतला गया है, क्योंकि प्रस्तावना कभी भी बदली नहीं जाती, यह संविधान का बीज है, इसकी आत्मा है, लेकिन भारतीय संविधान की इस प्रस्तावना को 1976 में 42वे संशोधन के जरिए बदल गया जिसमें समाजवादी धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द जोड़े गए। धनखड़ जी कि इस टिप्पणी के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने इन शब्दों को प्रस्तावना से हटाने की सार्वजनिक मांग की थी। यहां यह स्मरणीय है कि हमारे देश में मौजूदा संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू है और सत्तारूढ़ दल अब तक अपनी सुविधा अनुसार इसमें सवा सौ से अधिक संशोधन कर चुके हैं। यद्यपि भारत की आजादी से अब तक के 78 सालों में अधिकांश समय कांग्रेस ही सत्ता में रही, जो कई अहम संविधान संशोधनों की दोषी है, इसी काल में केंद्र में जनता पार्टी और अटल बिहारी वाजपेई की सरकारें भी रही, मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी जी के शासन का भी यह एकादश वर्ष चल रहा है, लेकिन इतनी लंबी अवधि में अब तक किसी ने भी समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता पर उंगली नहीं उठाई, यह पहली बार होने जा रहा है, जब इन दोनों शब्दों को लेकर न सिर्फ विरोध दर्ज करवाया जा रहा है बल्कि संविधान में से इन्हें हटाने की मांग की जा रही है, जिस पर सरकार गंभीर है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल द्वारा ही यह मांग उठाई जा रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी के अपने दलीय संविधान में भी इन दोनों शब्दों समाजवाद व धर्मनिरपेक्षता के प्रति आस्था व्यक्त की गई है, भाजपा के संविधान की धारा-२ उद्देश्य में लिखा है - पार्टी विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान तथा समाजवाद धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखेगी तथा भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता को कायम रखेगी आज यही पार्टी देश पर राज कर रही है और इसीके दिग्गज नेता समाजवाद व धर्मनिरपेक्षता का विरोध कर रहे हैं और संविधान से इन दो शब्दों को हटाने की मांग कर रहे हैं। यद्यपि अभी इस विवाद की शुरुआत है, आगे आगे क्या होगा यह जानने की उत्सुकता है, किंतु कुल मिलाकर इस मांग को दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 1 जुलाई /2025