लेख
30-Apr-2025
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जितनी भी निंदा की जाए कम है। इस घटना के दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी ही चाहिए, फिर चाहे वो देश के अंदर मौजूद हों या फिर सीमापार। इससे किसी भी शांतिप्रिय व्यक्ति या देश को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए। बल्कि ऐसे आतंकियों को सजा दिलाने में सभी को साथ आना चाहिए, ताकि दुनियां में यह संदेश जा सके कि निर्दोष और निहत्थों पर जुल्म और ज्यादती करने और बेरहमी से जान लेनें वालों की इस दुनियां में न तो कोई जगह है और न ही किसी को उनकी जरुरत है। पर अफसोस कि आतंकवाद को पालने और दरिंदों की फौज तैयार कर पड़ोसियों को ज्यादा से ज्यादा परेशान करने की जो रणनीति पर चल रहा हो, वह शांति और भाईचारे की बात को कैसे समझ सकता है। ठीक वैसे ही जैसे कि जो इमारत नफरत की नींव पर खड़ी की गई हो उसमें सुख-समृद्धि और भाईचारा कैसे निवास कर सकता है। बगावत और हमेशा कत्लेआम की भाषा बोलने वाले प्रगति के पथ पर सरपट दौड़ ही नहीं सकते। इसके चलते बहुतायत में अशिक्षा, बेरोजगारी और गरीबी पनपती है और फिर शुरु होता है अपनों और परायों का फर्क किए बगैर छल-कपट और फरेब के साथ ही खून-खराबे का वो दौर जो इस समय पाकिस्तान में देखने को मिल रहा है। वैसे देखा जाए तो विभाजन के बाद से पाकिस्तान कभी सुकून से बैठा ही नहीं। राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद को पालने का परिणाम बांग्लादेश के तौर पर पाकिस्तान के दो टुकड़े हो जाना हमेशा। उसके दिल में इसकी टीस सदा ही उभरती होगी, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है। बावजूद इसके सही रास्ते पर आने की जगह पाकिस्तान अपने ढर्रे पर कायम रहा, नतीजा पीओके और बलूचिस्तान के साथ ही अफगानिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में बगावत के सुर और बड़ी तादाद में हिंसा का होना है। अब यदि वह कुछ और करने की सोचता भी है तो बिना कुछ किए एक और प्रांत अलग देश बनाने को तैयार बैठा है। पाकिस्तान की संसद में इसको लेकर बात भी हो चुकी है, जिसे एक सांसद ने यह कहते हुए बतला दिया था कि इस अशांत प्रांत के 12 जिलों में विद्रोही गुटों की आजाद सरकारें चल रही हैं। मतलब साफ है कि जहां आवामी सरकार के पैररल किसी संगठन की अपनी सरकार चल रही हो, वहां के हालात कैसे हो सकते हैं। इस समय पाकिस्तान के कुछ मंत्री समेत नेता भी भारत को गीदड़भभकी देने का काम कर रहे हैं। परमाणु संपन्न होने का वो दम भर रहे हैं और बता रहे हैं कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा। बात यह है कि यदि वाकई युद्ध होता है तो फिर पाकिस्तान के अंदर मौजूद विद्रोही गुट क्योंकर खामोश बैठेगा। वह भी मौका देख अपने मकसद को पूरा करने के लिए पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ हथियार उठाने से पीछे नहीं हटेगा। स्थिति सीरिया से भी बदतर हो जाएगी और एक और जख्म देश टूटने का पाकिस्तान को सहना पड़ जाएगा। ऐसा नहीं है कि देश के हालात से पाकिस्तान की मौजूदा शहबाज सरकार नाबाकिफ है, लेकिन इससे निकला कैसे जाए यह उसे सूझ ही नहीं रहा है। गौर करने वाली बात है कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जो खुद इस समय जेल में हैं कह रहे हैं कि पहलगाम घटना में लोगों की जान जाना बेहद परेशान करने वाला और दुखद है। पीड़ितों और उनके परिवारों के प्रति मैं अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं। वो पुलवामा घटना को याद करते हुए आगे कहते हैं कि जब पुलवामा की घटना हुई थी, तब हमने भारत को हरसंभव सहयोग करने की पेशकश की थी, लेकिन भारत तब कोई ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा। इसके साथ ही इमरान ने यह भी कह दिया कि उन्होंने तो पहलगाम जैसी घटना की 2019 में ही भविष्यवाणी कर दी थी। वैसे इमरान की बात ज्यादा इसलिए मायने नहीं रखती क्योंकि उन्हें खुद अपने भविष्य का पता नहीं है। कब जेल से छूटेंगे और कब अपने विरोधियों के दिए हुए जख्मों का बदला ले पाएंगे, कहा नहीं जा सकता है। पाकिस्तान में जुल्फीकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो, जनरल परवेज मुशर्रफ और भी कई बड़े नेताओं का हश्र तो दुनियां देख ही चुकी है। इन तमाम घटनाओं के लिए किसी विदेशी की आवश्यकता ही नहीं पड़ी थी। बहरहाल इस समय पाकिस्तान को चाहिए था कि वो आगे आता है और आतंकवाद को खत्म करने भारत से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ता, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं है। इसलिए युद्ध की भाषा बोली जा रही है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद से ही किसी अनजानी एयरस्ट्राइक के खौफ में वह लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर सीमा पर गोलीबारी किए जा रहा है। भारतीय सैना और सुरक्षाबल अपने हिसाब से उसे मुंहतोड़ जवाब भी दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सेना को कार्रवाई की खुली छूट दे दी है, ऐसे में पाकिस्तान घबराहट में है। अंतत: युद्ध किसी मसले का अनंतिम समाधान नहीं हो सकता। हो सकता है कि कुछ समय के लिए कोई हल निकल भी आए, लेकिन वह स्थाई होगा यह नहीं कहा जा सकता है। इसलिए पहलगाम के पीड़ितों को न्याय दिलाने की पहल होनी चाहिए, जिसके लिए भौगोलिक सीमाओं का बंधन कोई मायने नहीं रखता है। ईएमएस / 30 अप्रैल 25