लेख
30-Apr-2025
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राष्ट्रभक्ति, सेवा, संगठन का समर्पण कभी निरर्थक नहीं जाता, इसका परिणाम देर नहीं सवेरे जरूर आता है। ऐसे ही अंतोदय से सूर्योदय, सर्वोदय से राष्ट्रोदय की विचारधारा से अभिप्रेरित, 01 मई 1972 को मध्यप्रदेश की धरा बड़वानी जिले के ग्राम थान, तहसील पाटी में श्रीमती बटली बाई-अमर सिंह सोलंकी के घर जन्मे डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी जीवन संगिनी श्रीमती मंजुला सोलंकी के संग 30 जुलाई 2002 को दांपत्य में बंधे। एक बेटी, एक बेटा के पिता डां सोलंकी खरगोन-बड़वानी पूर्व सांसद माकन सिंह सोलंकी के भतीजे हैं। सेवाकाल बड़वानी के शहीद भीमा नायक शासकीय महाविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर रहे हैं। दौरान प्रोफेसर सोलंकी ने अध्यापन के साथ ही समाज सेवा में सक्रिय रहे। इन्हें उत्कृष्ट कार्य के लिए कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। डाॅ. साेलंकी लंबे समय से स्वच्छता और अन्य सरकारी योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करते रहे हैं। उन्होंने 240 गांवों में जागरूकता शिविर आयोजित किए। करीब साढ़े 600 जागरूकता रैली निकाली। इन्होंने सवा 500 गावों में स्वच्छता अभियान के लिए स्वच्छता दूत नियुक्त किए। इसके अलावा करीब 150 गाैरी बंधनों का निर्माण लोगों के सहयोग से करवाया। साेलंकी के मार्गदर्शन में बड़वानी जिले को राष्ट्रीय सेवा योजना के तहत दो राष्ट्रीय पुरस्कार और चार राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुके है। प्रत्युत, डां सोलंकी अपने पिता की सबसे बड़ी संतान थे, इसलिए परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति में घर चलाने का दबाव उन पर बचपन से रहा। उन्होंने अपने पिता के साथ खेती-बाड़ी में हाथ बंटाया, बकरियां चराई और मजदूरी भी की। जैसे तैसे दसवीं तक स्कूल गए, उसके बाद तंगहाली के चलते स्कूल छोड़ दिया। मजदूरी के साथ आगे की पढ़ाई चलती रही। वहीं उन्होनें घर का खर्च चलाने के लिए दस साल तक गांव में मोटर रिवाइंडिंग का काम भी किया। इस पैसे से उच्च शिक्षा हासिल की और आगे जाकर इतिहास में पीएचडी की उपाधि हासिल की। वे अपनी तहसील के पहले आदिवासी थे, जिन्हें पीएचडी की डिग्री मिली। कडी मेहनत के बल पर 2005 में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के जरिए सहायक प्राध्यापक के पद पर चयनित हुए। स्तुत्य, 2020 में राज्यसभा का टिकट मिलने के बाद संगठन का आभार जताते ते हुए कहा था कि यदि मुझे मां भारती की सेवा का अवसर मिला तो मैं इसके लिए सर्वस्व तैयार हूं। वे बचपन से ही आरएसएस से जुड़े हुए हैं। सोलंकी लंबे समय से वनवासी कल्याण परिषद के माध्यम से जन कल्याण के कामों में लगे हुए हैं। जब वे अपने गांव से राज्यसभा चुनाव के लिए भोपाल रवाना हो रहे थे तो उनके पिता खेत में बुवाई की तैयारी कर रहे थे और मां बीज चुन रही थी। ऐसी कर्मठता और जमीनी हकीकत से वास्ता रखने वाले डां सुमेर सिंह सोलंकी आज भी सहज -सरल, सुबोध बनकर अपने प्रणपथ पर अविरल हैं। जनकल्याण के प्रणेता, एक सफल राज्यसभा सांसद के तौर पर वे जन-जन और समग्र विकास की मुखर आवाज है। आह्लादित मां भारती के पुत्र, डां सुमेर सिंह सोलंकी को जन्मोत्सव की अशेष शुभकामनाएं…! ईएमएस/30/04/2025