-आधे अधूरे मन से किया गया कोई भी कार्य कभी सफल नहीं होता भोपाल (ईएमएस) । अरुचि एक ऐसी दुर्वलता है,जो हमें लौकिक और परमार्थिक दौनों क्षेत्रों में कमजोर बनाती हैउपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ने अवधपुरी में प्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किये। मुनि संघ के प्रवक्ताअविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया पांच मिनट के भावनायोग से मुनि श्री ने अरुचि को रुचि में परिवर्तित करते हुये कहा कि आधे अधूरे मन से कोई भी कार्य कभी अच्छा नही होता, जो भी कार्य करो पूर्ण रुचि और निष्ठा के साथ करोगे तो उसमें लाभ मिलेगा और आनंद भी आऐगा अरुचि से किये गये कार्य में गुणवत्ता में कमी आती है यदि कोई कार्य आपको दिया जा रहा है तो उस कार्य के प्रतिअपनी रुचि जाग्रत करो उन्होंने विद्यार्थियों को सम्वोधित करते हुये कहा कि मन लगाकर निश्चित समय तक पड़ाई करो लेकिन व्यवहारिकता से अपने आपको अलग मत करो अरुचि पूर्वक जीवन प्राण विहीन जीवन कहलाता है, जो भी कार्य करना है रुचि पूर्वक करोगे तो उत्साह अपने आप जाग्रत होगा रुचि बाहर से नहीं मिलती, उसे अंदर से प्रकट करने की आवश्यकता होती है मुनि श्री ने प्रक्टिकल कराते हुये कहा कि अच्छे कार्यों की प्रशंसा करो और बुरे कार्यों,दुष्कृत्य की निंदा करो और तथा नित्य प्रति अपने संकल्पों को दौहरायगे तो आपको आनंद आऐगा आपके अंदर आध्यात्म के प्रति रुचि जाग्रत हो जाऐगी मुनि श्री ने कहा कि देखने में आता है कि दुनियादारी के काम में तो मनुष्य दौड़दौड़ कर जाते है लेकिन धार्मिक कार्यों में उनको ठेल ठेल कर भेजना पड़ता है, जोअंदर के उत्साह को ठंडा करता है अरुचि के कारण जो कार्य सहज है वह भी अरुचिकर लगने लगते है इस अवसर पर मुनि श्री संधान सागर महाराज सहित समस्त क्षुल्लक मंचासीन रहे । ईएमएस/04मई2025