लेख
21-May-2025
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श्रीराम ने जब अय भृय स्नान कर लिया तब ब्रह्मादि देवताओं के साथ शिवजी ने श्रीरामजी की स्तुति करके कहने लगे- अद्य धन्या वयं सर्वे यत्वां स्नातं सुमंगलम्। पश्यामो वाज्यवभृथे सीतया बंधुभि: सह।। आनन्दरामायण यागकाण्डम् सर्ग ९-२ आज हम लोग धन्य हैं जो सीताजी एवं बन्धुओं सहित आपको (श्रीराम को) यह अश्वमेघ का अवभृय स्नान किए हुए देख रहे, जो अतीव मंगलकारक है। तदनन्तर शिवजी ने श्रीराम से कहा हे देव देव! हे कृपानिधे! यह समय हम लोगों के लिये बड़ा हर्षप्रिय है। अतएव यह सदा अत्यन्त श्रेष्ठ और पुण्यवर्द्धक होगा। आप भी इसको अंगीकार करें और इसके लिए अच्छे एवं बहुत से ऐसे वरदान दें कि जिससे हम लोगों को प्रतिवर्ष आपके दर्शन प्राप्त होते रहे। हे रघुकुल श्रेष्ठ! आप इस तीर्थ के लिये अनेक वर दीजिए। यात्रा करते समय पहले भी आपने जिन तीर्थों एवं लिंगों को स्थापित किया है, उनको भी मेरे कहने से आप वरदान दें। हे राघव आज मेरे कहने से आप ऐसा कह दीजिए कि सब नगरियों के लिए श्रेष्ठ यह अध्योध्याÓ नगरी है एवं नदियों में उत्तम सरयू नदी है। शिवजी का यह कथन सुनकर हँसते हुए श्रीराम सहर्ष त्रिभूवनोपकारी वाणी में बोले- यत्प्रार्थिंतं त्वया शंभो तदेव हृदि मे स्थिमत्। श्रुणुष्व वचनं मेऽद्य यद्धर्षात्पोच्यते शुभम्।। सर्वेषामदेव मासानां श्रेष्ठश्चायं मधुर्भवेत। वैशारवात् कार्तिक: श्रेष्ठ: कार्तिकान्माघं एव च।। आनन्दरामायण यागकाण्डम् सर्ग ९-९, १० श्रीराम ने कहा हे शम्भो:! आप जो कुछ चाहते हैं वही मेरे भी मन में है। आप मेरी बात सुनिये- मैं प्रसन्नतापूर्वक यह कल्याणकारी वाक्य कहता हूँ- सम्पूर्ण मासों में श्रेष्ठ चैत्र मास होगा। वैशाख से कार्तिक, कार्तिक से माघ एवं माघ से भी चैत्र श्रेष्ठ होगा। इसी मास में मेरा जन्म हुआ है। इसलिए भी यह चैत्र मास श्रेष्ठ है। अश्वमेघीय अवभृय स्नान होने तथा आपके वाक्य गौरव से भी यह मास सबसे श्रेष्ठ होगा। चैत्र मास में यहाँ स्नान दान आदि को कोटि गुणा फल प्राप्त होगा। अयोध्या में किया गया सुकर्म तो और भी अधिक पुण्यप्रद होगा। यह मेरी पुरी सब नगरियों में उत्तम है तथा मेरी वाणी से यह मुक्तिदात्री भी अवश्य होगी। अन्य स्थान पर किया गया पुण्य कार्य ६० वर्ष में फलदायक होता है किन्तु यहाँ किया गया पुण्य एक ही दिन में फलदायक हो जाएगा। वैसे पुरियों में शुभप्रद पुरी मथुरा को समझे क्योंकि आपने मुझसे वर माँगा है। तववाक्याद्गौखेण तव काश्या: शताधिका। भविष्यति पुरी चेयमयोध्या मम वल्लभा।। नन्दीषु सरयूश्येयं श्रेष्ठाऽस्तु वचनान्मम्। सरयूसद्यशी नान्या नदी भूता भविष्यति।। आनन्दरामायण यागकाण्डय् सर्ग ९-१७, १८ अतएव आपके वाक्य गौरव से यह मेरी प्रिया अयोध्यापुरी गुणों में आपकी काशी से सौ गुणी श्रेष्ठ होगी। मेरे वचन से सरयू सब नदियों में श्रेष्ठ होगी। सरयूÓ जैसी नदी न है और न होगी। उसमें भी मेरे द्वारा बनाया हुआ रामतीर्थ अपने प्रताप से सम्पूर्ण तीर्थों में मुकुट के समान होगा। हे शिवजी! मैंने अपने नाम से भूमि पर जितने भी तीर्थ एवं शिवलिंग स्थापित किए हैं वे सब स्नान दर्शन एवं पूजन से मुक्ति देने वाले तथा सर्वपापनाशक होंगे। इसमें कोई सन्देह नहीं है। मनुष्यों को प्रतिवर्ष चैत्र मास में विधिपूर्वक यम-नियमादि के साथ राम तीर्थ में स्नान करना चाहिए। अश्वमेघ, गोमेघ एवं सोमयाग करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल रामतीर्थ पर स्नान करने से प्राप्त हो जाता है। सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में स्नान दान करने से फल प्राप्त होता है, वही फल चैत्र में अयोध्या में स्नान करने से प्राप्त होता है, जो अयोध्या के सरजूजलस्थ रामतीर्थ में स्नान करते हैं वे मोक्ष प्राप्त करने के अधिकारी होंगे। जो फल पुण्य माघ मास में प्रयाग स्नान का है, कार्तिक में काशी की पंचगंगा में स्नान करने का है और द्वारका में चक्रतीर्थ पर वैशाख स्नान का फल है, वही फल अयोध्या में रामतीर्थ पर चैत्रमास में स्नान करने का है। आज से प्रजा मेरे कहने से बारह महीनों में चैत्र की पहला महिना समझे। आज तक मार्गशीर्ष (अगहन) सबसे प्रथम मास माना जाता था किन्तु आज से चैत्र मास प्रथम मास समझा जाएगा। जैसे देवताओं में सर्वप्रथम आप (शिव) है इसी तरह मासों में प्रथम चैत्र और पुरियों में प्रथम अयोध्या नगरी समझी जाएगी। यह बात इस प्रसिद्ध श्लोक में स्पष्ट हो जाती है जिसमें सप्त नगरियों में अयोध्या को प्रथम स्थान दिया गया है- अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका। चैव सप्तैते मोक्षदायका: पूरी द्वारावती जैसे इस समय आप लोग यहाँ आए हैं इसी तरह प्रतिवर्ष चैत्र मास में आए और मेरी आज्ञा से सरयू तट पर आश्रम बनाकर निवास करें। वृद्ध रोगी एवं स्त्रियाँ भी जिसके पास जो कुछ हो, उसी वस्तु को श्रद्धा-भक्ति से भेंट देने तथा चैत्रमास में स्नान के लिये यहाँ आया करें। इस प्रकार श्रीराम के वचन सुनकर पार्वतीजी सीताजी से बोली- हे सीते! आप भी इस समय मेरे कहने से सर्वलोकेपारक एवं विशेष करके स्त्रियों का हितकर वर प्रदान करें। ऐसे पार्वतीजी के वचन सुनकर सीताजी बोली पृथ्वी पर जितने भी मेरे तीर्थ हैं और यहाँ पर महाश्रेष्ठ तीर्थ है जिनमें मैंने स्नान किया है उन सब तीर्थों में चैत्र की तृतीया से लेकर वैशाख की अक्षय तृतीया तक स्त्रियों को स्नान करना चाहिए। यह शीतला गौरी स्नान कहलाएगा। यह स्नान एक मास तक चलता है। यह स्नान सौभाग्य देने वाला एवं पुत्र-पौत्र की वृद्धि करने वाला है। सभी स्थानों में रामतीर्थ के वामभाग में मेरा तीर्थ है। यह वरदान पार्वतीजी को देकर सीताजी चुप हो गई। (मानसश्रीÓ, मानस शिरोमणि, विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर) .../ 21 मई /2025