अठहत्तर साल हो गए देश को आजाद हुए लेकिन देश मे अभी भी हिंदी के बजाए अंग्रेजी का प्रभुत्व है।देश की भाषा हिंदी राष्ट्रभाषा बनने तक को तरस रही है।हालांकि हिंदी के इस मिशन में देश की सभी भारतीय भाषाएं एक दूसरे का हाथ थामे साथ खड़ी दिखाई दे।देश की भाषाओं को उनका सम्मान दिलाने के लिए ही कुछ भाषा सेवियों के द्वारा हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी का गठन किया हुआ है। इस संस्था का प्रत्येक सदस्य अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग संस्थाओं और मंचों के माध्यम से भारतीय भाषाओं के लिए सेवा कार्य कर रहे हैं। इनमें से कुछ लोग हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश भी कर रहे है। जमीनी स्तर पर इस बाबत ठोस कार्य करने की भी कोशिश की जा रही है।भारत में 22 संवैधानिक भाषाएं होंने, कोस-कोस पर पानी और चार कोस पर वाणी बदलने की बात सच्ची होने, 179 भाषाओ की समरद्धता और 544 बोलियां रूपी विरासत होने पर भी हम अंग्रेजी को मोहताज़ हो तो चिंता होनी स्वाभाविक है। तभी तो भारतीय भाषाएं आज तक अपने देश के खुले आकाश में सांस लेने का इंतज़ार करती दीख रही हैं। हिंदुस्तानी भाषा अकादमी काव्य की विभिन्न विधाओं को लेकर साझा संकलन भी प्रकाशित करती रही है। इसी क्रम में अकादमी ने अपना तृतीय हिंदुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी दिल्ली में आयोजित किया। जिसमे हिंदुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान योजना के अंतर्गत देशभर से चयनित 51 दोहाकारों के दोहों का एक साझा संग्रह नावक के तीर का लोकार्पण किया गया। इस साझा दोहा संग्रह में शामिल 51 दोहा कारों में रुड़की के साहित्यकार सुरेंद्र कुमार सैनी एवं कृष्ण सुकुमार के दोहों को भी चयनित कर सम्मानित किया गया है। इस साझा दोहा संग्रह का संपादन हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष सुधाकर पाठक ने किया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर लक्ष्मी शंकर बाजपेई ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्यकार देवेंद्र माॅंझी भी उपस्थित रहे। इससे पहले अकादमी गीतों एवं ग़ज़लों के साझा संग्रह निकाल चुकी हैं। इस दोहा योजना में देशभर के दोहाकारों से 15- 15 दोहे आमंत्रित किए थे। जिनमे 237 प्रविष्टियां प्राप्त हुई ,जिनमे से 51 चयनित की गई। डॉक्टर लक्ष्मी शंकर वाजपेई ने बताया कि उनके पास किसी भी दोहाकार का नाम या पता नहीं भेजा गया था केवल क्रमांक एवं दोहे भेजे गए थे ,ताकि पूर्ण पारदर्शिता और दोहों के चयन का स्तर बना रहे। उन्होंने बताया कि 237 से अधिक रचनाकारों के लगभग 4000 से अधिक दोहों को पढ़ना उनके लिए एक सुखद अनुभव रहा। रुड़की के साहित्यकार सुरेंद्र कुमार सैनी के दोहों में एक दोहा आप भी पढ़िए, रेपिस्टों का गर सखे! सत्ता करे बचाव। फिर नारी उत्थान के, झूठे सभी सुझाव। साहित्यकारों को मंच पर बुलाकर उन्हें नावक के तीर साझा दोहा संग्रह की एक-एक प्रति भेंट की गई तथा अंग वस्त्र व सम्मान पत्र देकर उन्हें सम्मानित किया गया।(लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति व वरिष्ठ साहित्यकार है) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 21 मई /2025