कफील आजम अमरोहवी की एक मशहूर नज़्म है जिसे स्वर्गीय जगजीत सिंह ने अपना स्वर दिया था, कई बरस पहले लिखी और गाई ये नज़्म आज भी उतनी ही मकबूल है जितनी पहले थी। नज़्म के बोल हैं बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी, लोग बेवजह उदासी का सबक पूछेंगे, ये भी पूछेंगे कि तुम इतने परेशान क्यूं हो इस नज़्म की पंक्तियां प्रदेश के एक मंत्री विजय शाह पर पूरी तरह फिट बैठ रही है उनकी जुबान से कर्नल सोफिया के बारे में जो कुछ भी निकला वो बहुत दूर तक चला गया । कहते हैं ना कि जुबान से निकली बात और धनुष से निकला तीर कभी वापस नहीं आ सकता, शायद इसलिए ताव ताव में और तालियां सुनने के चक्कर में शाह साहब ने कह तो दिया लेकिन जब उनके कहे पर पूरे देश में हल्ला मचा तब शाह साहब को समझ में आया कि अरे यार ये तो बड़ा गड़बड़ हो गया, बेचारे माफी पर माफी मांग रहे हैं, हर रोज एक नया माफी नामा लिखकर लाते हैं और वीडियो बना बनाकर डाल रहे हैं लेकिन उनके माफीनामा का कोई असर हो नहीं रहा, ये बात अलग है कि भाजपा सरकार उन्हें बचाने के लिए पूरी तरह से अडिग है लेकिन सरकार भी क्या करें न्यायालय के आदेशों के आगे वो भी मजबूर है । इसी नज़्म में आगे कहा गया है लोग बेवजह उदासी का सबक पूछेंगे ये भी पूछेंगे तुम इतने परेशान क्यूं हो । अब आप बताओ जिस मंत्री की गद्दी जाने वाली हो देश के बच्चे बच्चे को उनके बयान के बारे में मालूम पड़ गया है उसके बाद भी लोग उनसे उदासी का कारण पूछ रहे हैं,और तो और न केवल उदासी का कारण पूछ रहे हैं बल्कि ये भी पूछ रहे हैं कि आप इतने परेशान क्यूं हो। अरे भैया पूरे देश में विजय शाह जी की छीछालेदर हो रही है, रोज नेशनल और रीजनल चैनलों पर उनके मुखारविंद से निकले शब्दों पर बहस चल रही है। वे बेचारे मंत्रिमंडल की बैठक में शामिल नहीं हो पा रहे हैं इधर कांग्रेस उनको खोज कर लाने वाले को ग्यारह हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा कर रही है अब ऐसे में वे उदास और परेशान ना हो तो क्या ढोल बजाकर डांस करें । लोग बाग भी मजा लेने में पीछे नहीं पीछे नहीं रहते । बेचारे विजय शाह सफाई दे दे कर हलाकान हो रहे हैं लेकिन कोई सफाई सुनने तैयार नहीं। कांग्रेस वालों का क्या, उन्हें तो मौका मिला भाजपा को घेरने का सो लग गए पीछे। अभी विजय शाह का मसला चल ही रहा था कि उपमुख्यमंत्री देवड़ा जी भी संज्ञा और सर्वनाम के चक्कर में उलझ गए बोलना कुछ चाह रहे थे और मुंह से निकल गया कुछ और, बस इसको भी लेकर उड़ गए कांग्रेसी। तमाम टीवी चैनल में डिबेट शुरू हो गई वे भी कह रहे हैं कि मेरा कहने का तात्पर्य कुछ और था और टीवी वालों ने कुछ और बता दिया।ऐसी कठिन परिस्थितियों में अपनी हर नेता को एक ही सलाह है कि जो कुछ भी बोलना हो उसकी पहले पचास बार रिहर्सल कर लो, कागज में लिख लो, हिंदी के व्याकरण विद्वानों से उसको चेक करवा लो उसके बाद कागज लेकर शब्दशह पढ़ डालो, अपने मन से एक भी शब्द ना बोलो, जितना लिखा है उतना ही पढ़ो क्योंकि आपने कुछ बोला और जनता ने कुछ समझा तो भिनिष्ठा होना तय है दूसरी बात जो सत्ता में होता है उस पर तो सब की निगाह रहती है अब देखो ना भाजपा के एक राज्यसभा सांसद ने बोल दिया कि पहलगाम में जिन महिलाओं का सुहाग उजड़ गया है उनमें वीरांगना जैसा जोश नहीं था ।अब इन नेताजी को कौन समझाए कि वे महिलाएं जो अपने पति के साथ घूमने आई हो वे किसी आतंकवादी के सामने जो हथियारों से लैस हो कैसे अपनी वीरता दिखा सकती थी, अगर आप भी वहां होते तो क्या उससे लड़ पाते बंदूक देखते ही आपकी भी घिग्घी बंध जाती इसलिए पहले सोचना जरूरी है और फिर बोलना इस पर नेताओं को गंभीरता से सोचना होगा । सच ही तो बोला पता लगा है कि नरसिंहपुर में पीडब्ल्यूडी विभाग के एक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर अर्बन गुहा ने कलेक्टर द्वारा बुलाई गई बैठक में जाने से इनकार कर दिया और जब कारण पूछा तो उसने कहा कि वो नहीं आ सकता क्योंकि वो शराब के नशे में हैं । ऐसा सत्यवादी अफसर इस कलयुग में भी पैदा हो सकता है अपन ने कभी कल्पना भी नहीं की थी,वो चाहता तो और कोई बहाना भी बना सकता था कि लूज मोशन हो रहे हैं बुखार चढ़ा है सर्दी खांसी है लेकिन मानते हैं इस सत्यवादी अफसर को । साफ-साफ कह दिया कि मैं शराब के नशे में टुन्न हूं इसलिए मीटिंग में नहीं आ सकता।वैसे सही किया इस सत्यवादी अफसर ने ,वरना कलेक्टर साहब पूछते कुछ और नशे की मस्ती में वो जवाब देता कुछ । अब कार्यवाही होना तो तय है, मीटिंग में गए या नहीं गए, जाते तो भी कार्यवाही होती और नहीं गए तो भी कार्यवाही होगी लेकिन अपने हिसाब से तो उस अफसर पर कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए क्योंकि इतना सच बोलने वाला अफसर और वो भी पीडब्ल्यूडी जैसे डिपार्टमेंट में ।उसका तो सार्वजनिक रूप से अभिनंदन करना चाहिए वैसे भी जब सरकार खुद शराब पिलवा रही हो और अगर वो पी रहा है तो इसमें क्या गुनाह कर रहा है , उसने इतनी मर्यादा तो रखी कि बैठक में नहीं पहुंचा वरना अगर लड़खड़ा के कलेक्टर साहब के ही ऊपर गिर पड़ता तो फिर उसका हश्र क्या होता ? मानते हैं उस अफसर की सत्यवादिता को अपने को तो लगता है कि सत्यवादी हरिश्चंद्र की आत्मा उस में समा गई हो वैसे भी जब इंसान दारू पी लेता है तो उसके अंदर की आत्मा जाग जाती है और वो सही-सही बातें करने लगता है ऐसा ही कुछ इस अफसर के साथ भी हुआ होगा। अभी पटार छिपकली बाकी भिंड में भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक जी ने कांग्रेस के नेताओं के लिए कुत्ते, सांप, कुकुरमुत्ता जैसे शब्दों का प्रयोग किया इसको लेकर कांग्रेसी भारी नाराज और उन पर एफआईआर दर्ज करवाने के लिए कोशिश कर रहे हैं । आजकल राजनीति में कोई कुछ भी कह सकता है किसी के मुंह पर, किसी की जबान पर किसी का कोई कंट्रोल नहीं, जो जिसके मुंह में आता है वह बक देता है अभी तो कुत्ते सांप और कुकुरमुत्ते जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है कुछ दिनों में वो समय भी आ जाएगा जब राजनीतिक पार्टियों के राजनेता एक दूसरे के लिए पटार,छिपकली,चूहा, छछूंदर,कॉकरोच,टिड्डा,,केंचुआ,मच्छर, भूनगा, जोंक, लकड़बग्घा, सियार, भेड़िया,दरियाई घोड़ा जैसे शब्दों का भी प्रयोग करेंगे लेकिन इससे उन तमाम जानवरों की छाती चौड़ी हो गई है कि उनका नाम इतने बड़ी बड़ी पार्टियों के नेताओं के साथ जोड़ा जा रहा है। वे गर्व से फूले नहीं समा रहे हैं। इन नेताओं को तो जानवरों की डिक्शनरी से और भी जीव जंतुओं, कीट पतंगों के नाम खोज लेने चाहिए क्योंकि इसके अलावा अब उनके पास बोलने के लिए कुछ रह ही नहीं गया है। सुपर हिट ऑफ द वीक हम कैसे मान लें कि तुम हमसे प्यार करती हो श्रीमान जी ने श्रीमती से पूछा याद करो जब कई साल पहले आप हमारे घर आए थे और हमारे आंगन में गुटखा खाकर थूका था तब से आज तक हमने उस जगह को गोबर से इसलिए नहीं लीपा कि कहीं आपके प्यार की निशानी न मिट जाए श्रीमती जी ने उत्तर दिया। ईएमएस/28/05/2025