भारतीय सनातन सभ्यता में ऐसे कई प्रसंग एक जैसे दर्ज हैं, जिन्हें देखकर और पढ़कर ऐसा प्रतीत होता रहा है मानो इतिहास स्वयं को दोहरा रहा हो। अनेक कालखंडों में, दशकों में, सदियों में और युगों में, हमने कई घटनाएं ऐसी पढ़ी हैं, जिनके अध्ययन उपरांत ऐसा लगता है जैसे आज जो हमारे रूबरू है उसे पहले भी कहीं और पहले भी देखा जा चुका है। उदाहरण के लिए हम भारत और पाकिस्तान के बीच स्थाई रूप से व्याप्त बने हुए तनाव को ले सकते हैं। आजादी के बाद से लेकर अब तक पाकिस्तान जो कुछ भी कर रहा है और भारत की ओर से जिस प्रकार से संयम, धैर्य का प्रदर्शन किया जा रहा है, यह हमें द्वापर युगीन कौरवों की अति और भगवान कृष्ण की सहृदयता का स्मरण कराता हैं। जब कौरवों के षडयंत्रों को पूरी तरह विफल करते हुए पांडव अपना अधिकार प्राप्त करने हेतु प्रयासरत थे। तब उनके नेतृत्वकर्ता के रूप में भगवान कृष्ण ने यह निर्णय लिया कि हमें अंत तक युद्ध के अलावा उपलब्ध सभी विकल्पों पर विचार करना चाहिए। ऐसा ही हुआ, भगवान कृष्ण ने शांति दूत के रूप में हस्तिनापुर गमन किया और वहां उपस्थित दुर्योधन एवं धृतराष्ट्र सहित समस्त कुरुवंशियों को अपना प्रस्ताव प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि युद्ध किसी भी समस्या का सहज समाधान नहीं हो सकता। इससे राज सत्ता पर अधिपत्य जमाए रखने की आकांक्षा पाले बैठे लोगों की तुष्टि भले ही होती हो, लेकिन अनिष्ट प्रजा का ही होता है। दोनों ही पक्ष की सेनाओं के हजारों लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं। उनसे अधिक लोग सदा के लिए अपंग हो जाते हैं। फल स्वरुप मानव समाज को युगों युगों तक उस अपराध का असहनीय दंड भुगतना होता है, दरअसल जो उन्होंने किया ही नहीं होता। अतः टकराव का रास्ता छोड़ते हुए कुरु वंश को पांडवों का सम्मान बनाए रखना चाहिए। भगवान कृष्ण ने राजसभा में मौजूद प्रजा के गणमान्य प्रतिनिधियों और कुरु वंश के सामर्थ्यवान पदाधिकारियों को भी यह सीख दी कि वे दुर्योधन और धृतराष्ट्र की अपवित्र महत्वाकांक्षाओं को समझें और उन्हें पाप पूर्ण कृत्य करने से रोकें। ताकि युद्ध के रूप में आसन्न अनिष्ट एवं अनर्थ को रोका जा सके। सभी सामर्थ्यवान प्रबुद्ध जन चुपचाप बने रहे। वहीं काल के वशीभूत, अपने अनर्थ से अपरिचित दुर्योधन ने जब उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और भगवान कृष्ण को ग्वाला, गायों को चराने वाला, आदि शब्दों से असम्मानित करते हुए उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे डाला, तब यह तय हो गया कि अब कुरुवंशियों को काल के गाल में समाने से कोई नहीं रोक सकता। समूचा ब्रह्मांड जानता है कि केवल और केवल दुर्योधन एवं धृतराष्ट्र की हठ धर्मिता के चलते महाभारत का युद्ध हुआ और उसमें लाखों लोग अकारण ही काल के गाल में समा गए। अंतत: जीत सत्य स्वरूप श्री कृष्ण के सानिध्य में सज्ज पांडवों की ही हुई। वर्तमान परिवेश में देखें तो भारत और पाकिस्तान के बीच स्थिति कुरु वंश और पांडवों जैसी ही है। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी बार-बार पाकिस्तान और वहां के हुक्मरानों को चेतावनी दे रहे हैं कि अंततः युद्ध विनाश का कारण होता है। जबकि वहां के हुक्मरान और सेना प्रमुख हमारे प्रधानमंत्री के वक्तव्यों की ठीक उसी प्रकार अनदेखी कर रहे हैं, जैसे हस्तिनापुर की राजसभा में दुर्योधन ने भगवान कृष्ण के प्रति असम्मानजनक व्यवहार का प्रदर्शन किया था। श्री मोदी जानते हैं कि पाकिस्तानी राजनेता और वहां की सेना भारत विरोधी एजेंडे को ही लंबे समय तक सत्ता पर काबिज बने रहने का जरिया मान कर बैठे हुए हैं। यही कारण है कि उन्होंने पाकिस्तानी अवाम का भला चाहते हुए उसे भी आगाह किया है कि वह अपना भला बुरा समझे और दुनिया भर में आतंकवाद को निर्यात करने वाले वहां के नेताओं, हुक्मरानों तथा सेना की नापाक हरकतों को पहचानें, समय रहते उन्हें वास्तविकता का एहसास कराते हुए उन्हें भारत में आतंकवाद निर्यात करने के गलत रास्ते पर जाने से रोकें । यदि पाकिस्तानी अवाम के ईमानदार प्रयास हुए तो संभव है वह आने वाले समय में भारतीय सदाव्यता के चलते भुखमरी, कंगाली और निकट भविष्य में सन्निद्ध गृह युद्ध जैसी विभीषिका से स्वयं को बचा सकेगा। अब निर्णय पाकिस्तान को करना है कि उसे अपनी अवाम का पेट भरने के लिए रोटी की उपलब्धता उचित लगती है या फिर भारतीय सेना की गोलियों से मरना ज्यादा अच्छा लगता है। यहां कुछ-कुछ प्रसंग सीख के रूप में हम रामायण युगीन घटनाओं से भी ग्रहण कर सकते हैं। उस कालखंड में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने उस स्थिति में भी लंका वासियों का भला करने का और उन्हें अनिष्ट से बचाए रखने का हर संभव प्रयास किया था, जबकि वहां का राजा रावण उनकी धर्मपत्नी सीता जी का अपहरण करने का पाप कर चुका था। भगवान कृष्ण के सानिध्य में सज्ज पांडव और प्रभु श्री राम की कृपा में तैनात वानर दल किसी भी दृष्टि से पाप पूर्ण कृत्यों में संलग्न शत्रु पक्ष का अनिष्ट करने में कमजोर नहीं थे। संकल्प मात्र से ही दुष्टों को नाश करने का सामर्थ्य उन्हें सहज ही प्राप्त था। लेकिन प्रभु श्री राम ने भी पहले हनुमान जी को लंका भेजा, जिन्होंने लंका जलाने से पहले रावण को बार-बार समझाया कि वह युद्ध को हर हाल में टालने का हर संभव प्रयास करे। इसी में राक्षस जाति की भलाई है। जब समुद्र पर सेतु बन गया। युद्ध को आतुर वानर सेना लंका के समक्ष हुंकार भरने लगी। तब प्रभु श्री राम ने एक बार फिर लंका को विनाश से बचाने का रास्ता खोजा और अंगद को शांतिदूत के रूप में प्रेषित किया। जैसा कि हमारे धर्म ग्रंथ बताते हैं, रावण के सिर पर भी काल मंडरा रहा था। सो उसे सामने खड़ा सत्य भी समझ नहीं आ रहा था, या फिर यू कहा जाए कि वह समझना ही नहीं चाहता था। बात त्रेता युग की हो या फिर द्वापर की, पाप पूर्ण कृत्यों में संलग्न पक्ष ने सत्य के मार्ग पर अडिग, धर्म परायण, सामर्थ्यवान, सज्जनों की सहृदयता को कमजोरी ही समझा और स्वत: ही मृत्यु के भोज्य बन बैठे। हाल ही में जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी गुजरात के प्रवास पर गए तब उन्होंने भुज की पवित्र भूमि से भारत और पड़ोसी देश को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सेना के ऐसे प्रयास हैं, जिनके माध्यम से हमने आतंकवादियों का तो नाश किया, उनके प्रशिक्षण कैंपों को भी ध्वस्त किया। सामरिक महत्व के जिन एयर बेसों को देखकर पाकिस्तानी हुक्मरान और वहां की सेना फूली नहीं समा रही थी, उन्हें तहस नहश किया। लेकिन पाकिस्तानी अवाम के एक भी व्यक्ति को खरोच तक नहीं आने दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारे अचूक प्रहार और भारतीय आयुधों की पहुंच यह स्पष्ट करती है कि पाकिस्तान का कोई भी भूभाग भारतीय सेना के लक्ष्य से कतई दूर नहीं है। आशय स्पष्ट है, हमारा विरोध आतंकवाद से और आतंकवाद को पोषित करने वाली पाकिस्तानी सेना तथा वहां के हुक्मरानों से है। उन्होंने पहलगाम में जो नापाक हरकत की थी, इसका माकूल जवाब उन्हें उनके घर में घुसकर दिया जा चुका है। यदि इसके बावजूद भी पाकिस्तान नहीं सुधरा, उसने भारत में आतंकवादियों को भेजना बंद नहीं किया तो फिर अब उसकी इन हरकतों को भारतीय सेना पाकिस्तानी सैन्य अपराध के रूप में ही दिखेगी और उसका समूल नाश करने के लिए सदैव तैयार है। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री और समूची दुनिया की आशाओं के केंद्र बिंदु श्री नरेंद्र मोदी की इस दूरदर्शिता की तारीफ चहुं ओर हो रही है। विश्व के जो शांति पसंद देश हैं वे जानते हैं कि युद्ध से किसी का भला नहीं हुआ। इसे सदैव ही अंतिम विकल्प के रूप में देखा जाना चाहिए। और अधिक व्यापकता के साथ समझने के लिए रूस - यूक्रेन और इजराइल - फिलिस्तीन के बीच चल रहे युद्धों को अध्ययन स्वरूप देखा जा सकता है। इनमें से पहला युद्ध एक देश के सामरिक ठिकानों और अन्य कीमती धरोहरों पर कब्जा जमाए जाने को लेकर चल रहा है। इसमें पश्चिमी देशों और अमेरिका की कुटिल चालों को भी बारीकी से समझने की आवश्यकता है। दोनों देश इतना आगे निकल चुके हैं कि एक सामर्थ्यवान होने के चलते वापस नहीं लौट सकता। तो दूसरे से शांति की कीमतें वसूल करने की चालें चली जा रही हैं। दूसरा युद्ध विशुद्ध आतंकवाद के खिलाफ है। जैसे भारत के पहलगाम में आतंकियों ने निर्दोष नागरिकों की हत्याएं कीं, वैसे ही इजराइल में हमास के आतंकवादियों ने महिलाओं, बूढ़ों, बच्चों को चुन चुन कर मारा। भावावेश में इजरायल पहले हमास और फिर उसके दुनिया भर में व्याप्त हिमायतियों से उलझता चला गया तथा अभी तक उलझा हुआ है। भारत के शत्रु देश और दुनिया के स्वयंभू ठेकेदार हमें और हमारी सेना को भी युद्ध के सुनियोजित जाल में उलझाने की तैयारी कर चुके थे। लेकिन दूरगामी परिणामों को पूर्व में ही भांप लेने की योग्यता रखने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से यह षड्यंत्र छुप ना सका। उन्होंने पहलगाम का बदला भी लिया और कुछ ही घंटों में मामले को अंजाम तक पहुंचा कर दुश्मन को सफेद झंडा लहराने को विवश कर दिया। पाकिस्तान इस दंडात्मक प्रक्रिया से हुए नुकसान और विश्व बिरादरी में हुई किरकिरी के बाद इन घटनाओं से सबक लेगा, इसकी संभावनाएं तो कम ही हैं फिर भी हमारी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उसे सद्बुद्धि प्राप्त हो ताकि वह भारत का बुरा करने के सपने देखने की बजाय अपना और अपनी अवाम का भला करने के बारे में सोचना शुरू कर दे। क्योंकि इसी में पाकिस्तान और वहां की आवाम की भलाई निहित है। आगे स्वयं पाकिस्तान को निश्चित करना है कि उसे रोटी चाहिए या फिर भारतीय सेना की गोली। (लेखक - स्वतंत्र पत्रकार हैं।) ईएमएस / 31 मई 25