राष्ट्रीय
04-Jun-2025


सुप्रीम कोर्ट ने 2012 की याचिका का निपटारा किया नई दिल्ली,(ईएमएस)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए कोई भी कानून न्यायालय की अवमानना ​​नहीं माना जा सकता। जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने समाजशास्त्री एवं दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर नंदिनी सुंदर तथा अन्य की ओर से 2012 में दायर अवमानना ​​याचिका का निपटारा कर यह टिप्पणी की। अवमानना ​​याचिका में छत्तीसगढ़ सरकार पर सलवा जुडूम जैसे निगरानी समूहों का समर्थन रोकने तथा माओवादियों के खिलाफ लड़ाई में विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) के नाम पर आदिवासियों को हथियार देने पर रोक लगाने संबंधी 2011 के न्यायालय के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने का आरोप लगा था। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना ​​हुई है, क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011 पारित किया, जो माओवादी/नक्सल हिंसा से निपटने में सुरक्षाबलों की सहायता के लिए एक सहायक सशस्त्र बल को अधिकृत करता है तथा मौजूदा एसपीओ को सदस्य के रूप में शामिल करके उन्हें वैध बनाता है। छत्तीसगढ़ सरकार पर सलवा जुडूम संबंधी निर्देशों को न मानने का आरोप लगाने के अलावा याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एसपीओ का उपयोग न करने और उन्हें निरस्त्र करने के बजाय राज्य सरकार ने ‘छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011’ पारित कर दिया, जिसके तहत पांच जुलाई, 2011 को शीर्ष अदालत के आदेश की तिथि से सभी एसपीओ को नियमित किया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने सुरक्षाबलों के कब्जे से सभी स्कूल भवनों और आश्रमों को खाली नहीं कराया है और न ही सलवा जुडूम तथा एसपीओ की कार्रवाई के पीड़ितों को मुआवजा दिया है। शीर्ष अदालत ने 15 मई को कहा कि उसके आदेश के बाद छत्तीसगढ़ द्वारा कोई कानून पारित करना अवमानना ​​का कार्य नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि समतावादी सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने के संवैधानिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कानून का शासन सुनिश्चित करने के वास्ते संबंधित संप्रभु पदाधिकारियों के बीच हमेशा संतुलन बनाए रखना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, यदि कोई पक्ष यह चाहता है कि उक्त अधिनियम को असंवैधानिक होने के कारण रद्द कर दिया जाए, तब इस संबंध में सक्षम न्यायालय के समक्ष कानूनी उपाय अपनाना होगा।’’ पीठ ने कहा, ‘‘संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को, केवल कानून बनाने के आधार पर, इस न्यायालय सहित किसी भी न्यायालय की अवमानना ​​नहीं माना जा सकता।’’ आशीष दुबे / 04 जून 2025