बेंगलुरु एक ऐसा शहर जो पढ़ने-लिखने वालों के लिए केंद्र-बिंदु और देश का सबसे बड़ा आईटी इंडस्ट्री हब है। यहां भगदड़ की घटना हो जाना कोई सामान्य बात नहीं कही जा सकती है। इस हादसे की उच्चस्तरीय जांच होनी ही चाहिए और तथ्यों के आधार पर जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए। दरअसल जब-जब इस प्रकार के हादसे होते हैं, तब-तब इसी तरह की बातें सामने आती हैं। आगे से इस तरह का कोई और हादसा न हो इसके लिए सरकारें प्रतिबद्ध दिखती हैं। बावजूद इसके हादसा होकर रहता है और सारे इंतजाम ढाक के तीन पात साबित हो जाते हैं। जहां तक बेंगलुरु हादसे का सवाल है तो इसमें कोई शक नहीं कि देश-विदेश में क्रिकेट को लेकर एक अलग दीवानगी है, लेकिन जीत के जश्न के लिए एकत्र हुए लोग अपना भला-बुरा ही भूल गए हों, ऐसा भी नहीं हो सकता है। जरा सोच कर देखें कि जिस स्टेडियम में 45 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था हो वहां चार से पांच लाख के करीब लोग घुसने की कोशिश करेंगे तो क्या होगा? यह दृष्य किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है। बताया जा रहा है कि लोगों की भीड़ किसी भी तरह से बस स्टेडियम के अंदर जाने पर आमादा थी। एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर आगे बढ़ने की कोशिश में लगे लोग सिर्फ और सिर्फ मौत को निमंत्रण देने का कार्य कर रहे थे। नतीजे में ऐसा कुछ घटित हुआ कि अचानक भगदड़ मच गई और हृदय विदारक मौतों का अनचाहा वीभत्स मंजर आंखों को धुंधलाता हुआ सामने आ गया। भगदड़ में 11 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई और एक बार फिर सवाल उठ खड़ा हुआ कि आखिर इसकी जिम्मेदारी किसकी है और यह कैसे तय किया जाए? हादसे के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत देश के अनेक नेताओं ने मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शोक संतृप्त परिजनों के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त कीं। इस हादसे में जो घायल हुए उनके जल्द स्वस्थ होने की कामनाएं की गईं। इसके साथ ही राज्य सरकार ने मुआवजे और राहत राशि का भी ऐलान कर दिया। अब विचारवानों द्वारा बताया जा रहा है कि राज्य सरकार को ऐसे आयोजनों के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल की तुरंत समीक्षा करनी चाहिए और उन्हें मजबूत करना चाहिए। यहां बताते चलें कि जीत की खुशी के दिन बेंगलुरु का चिन्नास्वामी स्टेडियम और उसके आसपास का इलाका सुबह से ही उल्लास और उमंग से भरा हुआ था। आईपीएल की विजेता टीम आरसीबी की ऐतिहासिक जीत के बाद हजारों प्रशंसक जश्न में डूबे हुए थे। लेकिन दोपहर होते-होते यह उत्सव मातम में बदल गया। भगदड़ में 11 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई, जिसने सवाल खड़ा किया कि आखिर इस पूरे घटनाक्रम की जिम्मेदारी किसकी है? यह पहली बार नहीं है कि किसी भीड़-भाड़ वाले आयोजन में अव्यवस्था ने निर्दोष लोगों की जान लेने का काम किया हो। भारत जैसे देश में जहां जनसंख्या घनत्व अत्याधिक है और प्रशासनिक तैयारियां अक्सर आखिरी क्षणों पर की जाती हैं, वहां ऐसे हादसे दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन चौंकाने वाले नहीं माने जाते हैं। फिर चाहे वह प्रयागराज महाकुंभ के दौरान हुई भगदड़ वाली दुखद घटना रही हो, या फिर जम्मू के वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ हुई हो या अब बेंगलुरु का यह हादसा, सभी में कहीं न कहीं एक समान लापरवाही की परतें ही खुलती नजर आती हैं। बहरहाल आरसीबी की जीत के बाद जश्न के आयोजन को लेकर जो जानकारी निकलकर सामने आ रही है उसके मुताबिक कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ और एक इवेंट कंपनी द्वारा इस आयोजन को किया गया था। हैरानी वाला दावा यह है कि इसके लिए न तो स्थानीय प्रशासन और न ही राज्य सरकार ने आयोजन की अनुमति को लेकर स्पष्टता दिखाई। इसलिए यह मामला और भी ज्याद जटिल होता जा रहा है। यहां कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब-तलब कर लिया है। एक सामाजिक कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने तो मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री समेत केएससीए अधिकारियों और इवेंट कंपनी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए पुलिस से मामला दर्ज करने की मांग कर दी है। वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार ने मामले की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हुए हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तो कुंभ मेले जैसी दुखद घटना का भी हवाला देते हुए कह दिया कि वे अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच रहे हैं, लेकिन यह भी माना जाना चाहिए कि ऐसे हादसे पहले भी हुए हैं। इस प्रकार जब भाजपा के लोग सीएम से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं तो उन्हें उन राज्यों की घटनाओं को भी नहीं भूलना चाहिए कि जहां भाजपा की सरकारें हैं। ऐसे में उनके साथ ही केंद्र की जिम्मेदारी भी तय करने की बात होने लगी है। इस प्रकार की राजनीति से इतर असली सवाल यही है कि जिम्मेदारी किसकी थी और क्या उसे तय किया जाएगा? क्रिकेट के प्रति आमजन की दीवानगी के साथ ही आयोजक, सुरक्षा एजेंसियां, स्थानीय प्रशासन—सभी की मिली-जुली जिम्मेदारी, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दरअसल अब वक्त आ गया है जबकि भीड़ प्रबंधन को भीड़ नियंत्रण की नजर से नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए। आयोजनों की पूर्व योजना, भीड़ का आंकलन, वैकल्पिक मार्ग, आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था, इन सभी पर स्पष्ट दिशानिर्देश हों। बेंगलुरु की यह घटना हमें चेतावनी देती है कि उत्सव केवल भावनाओं से नहीं, व्यवस्था और जिम्मेदारी से संचालित होने चाहिए। बात साफ है कि जब तक इस तरह की घटनाओं के लिए दोषी न्याय की परिधि में नहीं लाए जाते, तब तक जश्न से मातम की यह श्रृंखला रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसी बात ही है। आखिरकार देश में हर हादसे के बाद जांच होती है, रिपोर्ट आती है, मुआवजा बंटता है, लेकिन अगर कुछ नहीं होता तो वह है सुनिश्चित जवाबदेही। बेंगलुरु की इस घटना ने न सिर्फ 11 जिंदगियां लीं, बल्कि व्यवस्था और संवेदनशीलता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आगे इस तरह का हादसा फिर न हो, जवाबदेही तय होनी चाहिए, वर्ना अगली बार कौन, कब, कहां जश्न मनाते हुए मारा जाएगा, यह सिर्फ किस्मत तय करेगी। .../ 5 जून /2025