(104 वीं जयंती पर विशेष) अंगभूमि के नाम से विख्यात रहे भागलपुर में कालक्रम में कई विभूति हुए हैं जिनमें श्री हरिलाल कुंज का नाम अग्रणी पंक्ति में आता है। भागलपुर सिटी (बिहार) में 10 जून 1921 में जन्मे व पले-बढ़े श्री हरिलाल कुंज ने साहित्य, संस्कृति व कला के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया है जिसे आज भी लोग श्रद्धा के साथ याद करते हैं। अपने बाल्यकाल से ही अप्रतिम प्रतिभा के धनी श्री हरि कुंज जब आठवीं कक्षा के छात्र थे तभी उनकी पहली कहानी अन्ना, छायावाद की सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा के सम्पादन में प्रकाशित उस समय की चर्चित पत्रिका चाँद में प्रकाशित हुई थी । इसके अलावा उनकी कहानियाँ तीन पीर, प्रेत फोटोग्राफर, हीरा, पारो दादी इत्यादि भी काफी चर्चित रही । कहानीकार के साथ वे एक सिद्धहस्त नाटककार व गीतकार भी थे और उन्होंने बाबरी मीरा, चंगेज खां, विद्रोही संताल, राजलक्ष्मी इत्यादि नाटकों और ब्रजोन्माद, मेरे नयनों के पानी, अभी मत छोड़ मुझे तू प्राण, जुदाई कैसी होती है इत्यादि पाला कीर्तन एवं गीतों की भी रचना की । उन्होंने मीरा बाई (लीला कीर्तन), रजनीगंधा (काव्य संकलन), सत्यसंग और एक मजदूर कलम का आदि कृतियों का संपादन भी किया । बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री हरि कुंज साहित्य के साथ साथ संस्कृतिक गतिविधियों व समाजसेवा में भी सक्रिय रहे । 1938 में उन्होंने श्री गौरांग संकीर्तन समिति, की स्थापना की और इसके माध्यम से भागलपुर में श्री मीरा जयन्ती मनाने की शुरुआत की जो २५ वर्षों तक निर्बाध गति से मनाई जाती रही । उन्होंने श्री बालकृष्ण ऑपेरा (हिंदी यात्रा पार्टी), वागीश्वरी संगीतालय और द्विजेन्द्र गोष्ठी इत्यादि संस्थाओं की न सिर्फ स्थापना ही की बल्कि उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । इन सबके अलावा वे एक कुशल फोटोग्राफर सहित एक सिद्धहस्त चित्रकार भी थे । सन् 1938 में ही उन्होंने भागलपुर में चित्रशाला स्टूडियो की नींव रखी जो आज की तिथि में अत्याधुनिक तकनीकों से लैस एक सुसज्जित प्रतिष्ठान के रूप में जाना जाता है। श्री हरि कुंज के समय में यह स्टूडियो मात्र एक व्यवसायिक प्रतिष्ठान ही नहीं, वरन् साहित्यिक गतिविधियों का भी केंद्र था जहाँ से बांग्ला के मूर्धन्य कथाशिल्पी डॉक्टर बलायचांद मुखोपाध्याय वनफूल, राष्ट्रकवि गोपाल सिंह नेपाली, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ विष्णु किशोर झा बेचन, बाबा नागार्जुन, अभिनेता पृथ्वीराज कपूर, महर्षि मेंही दास, प्रभात रंजन सरकार, शिक्षाविद आनन्द शंकर माधवन, संतसिरोमणी देवी शकुन्तला गोस्वामी, रामचरितमानस के अंतराष्ट्रीय अन्वेषक पंडित इन्दु भूषण गोस्वामी व अन्य महापुरुषों की यादें जुड़ी हैं । इन सबों के अलावा हरि कुंज जी ने महाप्राण निराला, नटराज पृथ्वीराज कपूर, मेरे हँसू दा, उर्वशी का जन्म, फूल वनफूल या वन का फूल, अनुपलाल मंडल, यात्राभिनय और शारदा बाबू , जब मैं बच्चा था इत्यादि दूर्लभ व रोचक संस्मरण लिखे । श्री हरिलाल कुंज जी 10 जून 1921 से 13 फरवरी 1984 तक हमारे बीच रहे और अभावों में गुजर-बसर करते हुए भी आध्यात्म, कला, साहित्य, संस्कृति व समाज की समृद्धि में लगे रहे। ( लेखक सूचना एवं जनसंपर्क के पूर्व उप निदेशक हैं)