इंदौर निवासी व्यवसायी राजा रघुवंशी के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में हुए नृशंस हत्याकांड ने देश के जनमानस को झकझोर कर रख दिया है। हत्या की प्रमुख आरोपी राजा रघुवंशी की पत्नी सोनम बताई जा रही है जिसने अपने तथाकथित प्रेमी राज कुशवाहा और उसके तीन दोस्तों के साथ मिलकर इस हत्या को अंज़ाम दिया। समूचे घटनाक्रम की परतें एक एक कर खुल रही हैं मगर जो भी अब तक सामने आया है, अविश्वसनीय है। भरोसा नहीं होता कि विवाह जैसे पवित्र और विश्वास भरे रिश्ते का गला इतनी निर्ममता से घोंटा जा सकता है। इस जघन्य हत्याकांड और क्या हुआ कैसे हुआ पर इतना परोसा जा रहा है कि कुछ कहने की जरूरत नहीं है। रोज नए खुलासे हो रहे हैं। ढूंढ ढूंढ कर हत्याकांड से प्रभावित परिवारों के संबंधियों के इंटरव्यू हो रहे हैं। मृतक राजा रघुवंशी परिवार के पुरोहित की गणना कह रही है कि षडयंत्र में और भी लोग शामिल हैं। कोई उनसे यह नहीं पूछ रहा कि गणना की यह प्रतिभा जब कहां गई थी जब वे विवाह का मुहूर्त निकाल रहे थे ? टीआरपी, व्यूज और लाइक्स की ललक जो न कराए सो कम है। यह सब क्यों हुआ के मर्म में जाने की जरूरत किसी को महसूस नहीं हो रही। जबकि यही वह मर्म है जिस पर ध्यान देकर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है। ख़बरें हैं कि सोनम पहले से ही राज कुशवाहा के साथ रिलेशनशिप में थी। उसने अपने परिवारजनों को इसके बारे में बताया भी था। मगर परिवारजनों ने इस संबंध का विरोध किया। सोनम और राज में आयु और जाति का फर्क तो था ही, जितेन्द्र की सामाजिक और आर्थिक हैसियत भी सोनम के परिवार के आगे कहीं नहीं टिकती थी। वह उनके पारिवारिक व्यवसाय में कर्मचारी की हैसियत से ही तो शामिल था। समाज क्या कहेगा ? का प्रश्न थोथा भले कितना भी हो, अभी भी शास्वत है। सोनम के परिवार ने इसे प्राथमिकता दी और जल्द से जल्द उसके समाज में ही विवाह की कोशिशों में जुट गए। कहा जाता है कि सोनम ने विरोध किया, यहां तक कहा कि अंजाम अच्छा नहीं होगा। मगर कोई सुनने तैयार नहीं हुआ। आनन फानम शादी तय हुई और सोनम ब्याह कर राजा रघुवंशी के परिवार में शामिल हो गई। बेटी की इच्छा के सम्मान के बजाय थोथे सामाजिक सम्मान को प्राथमिकता देकर सोनम के मातृ पक्ष ने तात्कालिक हल तो ढूंढ लिया मगर आज की परिस्थितियां देखकर उन्हें यकीनन पछतावा हो रहा होगा। सौदा महंगा पड़ा। दबाव में बना रिश्ता यूं भी ज्यादा नहीं टिकता। जिस सामाजिक प्रतिष्ठा की खातिर उन्होंने यह कदम उठाया था उससे लाख गुनी बदनामी अब झेलनी पड़ रही है। और दाग ऐसा है कि ताउम्र नहीं धुलेगा। बेटियों को समान अधिकार का सरकारी नारा अपेक्षित सामाजिक बदलाव के बिना नारा ही बना रहने वाला है। उन्हें आर्थिक और सांस्कारिक समेत अन्य सभी पहलुओं पर आत्मनिर्भर बनाना आज की जरूरत है जिसके लिए उन्हें अच्छी परवरिश, शिक्षा दिया जाना चाहिए। उनमें निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना चाहिए। मगर सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कि उनके निर्णय का सम्मान भी किया जाना चाहिए। अगर कोई निर्णय गलत लग रहा है तो सही राह दिखाना परिवार का दायित्व है। मगर थोथी सामाजिक प्रतिष्ठा के दबाव में उन्हें अपना निर्णय बदलने के लिए मजबूर करना पंछी को उड़ना सिखाकर उसे पिंजरे में बंद रहने पर मजबूर करने जैसा है। समाज के कई वर्गों ने इस बदलाव को स्वीकार किया है मगर कुछ अभी भी वही पुरानी लीक पीटने पर उतारू हैं। इस जघन्य हत्याकांड ने प्रमाणित कर दिया है कि परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं। बढ़ते अपराधों के लिए अध्यात्मवादी भौतिकता को दोष देते हैं। कम्युनिज्म पूंजीवाद पर दोष मढ़ता है। राजनीति में एक पार्टी दूसरी को दोषी मानती है। समाज तेजी से बदल रहा है, और समलैंगिकता, लिव-इन रिलेशन, गर्भपात अब कानूनन अपराध नहीं रहे। सिर्फ कानून के सहारे अपराध को खत्म करना संभव नहीं है, इसके लिए व्यापक सामाजिक विमर्श जरूरी है। बदलते समय और दिन प्रतिदिन उदार होतीं सामाजिक मान्यताओं के साथ परिवारों की आपसी समझ भी बदलना जरूरी है। अगर सोनम के माता-पिता ने उसकी प्रेम और विवाह संबंधी प्राथमिकताओं को मान लिया होता तो यह सब नहीं घटता और निरपराध राजा रघुवंशी की जान बच जाती। थोथी सामाजिक मान्यताओं के दबाव के चलते उन्होंने बेटी पर दबाव बनाया। जो हुआ वह उससे कई गुना भयावह साबित हुआ जिसका दंश रघुवंशी समेत अपराध में शामिल अन्य लोगों के परिवार ताउम्र महसूस करेंगे। मेघालय पूर्वोत्तर भारत का बेहद खूबसूरत और शांत राज्य है। पड़ौसी मणिपुर की तरह जनजातियां इसका भी मूल आधार हैं मगर मणिपुर में पसरी जातीय अशांति और हिंसा मेघालय को छू भी नहीं सकी है। पर्यटन इसकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है। इस पूरे घटनाक्रम ने इस राज्य की साख पर कई सवाल खड़े कर दिए थे। मेघालय पुलिस बधाई की पात्र है जिसने तत्परता से इस घिनौने हत्याकांड की परतें खोलीं और साबित किया कि इससे मेघालय और उसके नागरिकों का कोई लेना-देना नहीं है। अपराध कैसी भी योजना बनाकर किया जाए, छुपता नहीं है। इकबाल अजीम का शेर है : कातिल ने किस सफाई से धोई है आस्तीन, उस को खबर नहीं कि लहू बोल उठेगा। इस समूचे घटनाक्रम ने इस अखंड सत्य पर एक बार फिर मोहर लगा दी है। ईएमएस / 14 जून 25