लेख
26-Jun-2025
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भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 की तारीख को एक काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। यह वही दिन है जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था। इसी काल में भारतीय राजनीति की दिशा बदलने वाली एक ऐतिहासिक घटनाक्रम की नींव भी रखी गई। दरअसल एक अदालती फैसले ने यह काम किया और इसके पीछे थी गिरीश नारायण पाण्डेय जैसे एक सामान्य लेकिन साहसी व्यक्ति की गवाही। यहां बताते चलें कि एक सामान्य दिखने वाले लेकिन साहसीक व्यक्तित्व के धनी गिरीश पाण्डेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े एक प्रतिबद्ध कार्यकर्ता थे। उनका नाम राष्ट्रीय स्तर पर तब चर्चा में आया जबकि उन्होंने सन् 1971 के रायबरेली लोकसभा चुनाव में हुई कथित गड़बड़ियों के खिलाफ अदालत में अपनी गवाही दी। यह चुनाव इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के तौर पर लड़ा गया था। चुनाव में इंदिरा गांधी की जीत को उनके प्रतिद्वंद्वी समाजवादी नेता राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी। अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान गिरीश पाण्डेय ने एक अहम गवाही दी, जो फैसले में निर्णायक साबित हुई। उन्होंने गवाही देते हुए अदालत को बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें गवाही न देने के लिए प्रलोभन और धमकियां भी दीं, लेकिन उन्होंने उनके आगे झुकने से इनकार कर दिया और न्याय के पक्ष में खड़े रहे। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को चुनाव में भ्रष्ट आचरण का दोषी ठहराते हुए उनका निर्वाचन अवैध घोषित कर दिया। अदालत का यह फैसला न सिर्फ इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता छीनने वाला था, बल्कि उसने उनकी प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की वैधता पर भी सवाल खड़े कर दिए थे। फैसले के महज 13 दिन बाद ही 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी, प्रेस पर सेंसरशिप और नागरिक अधिकारों पर अंकुश के साथ एक भयावह दौर शुरु हो गया। आपातकाल में ही गिरीश पाण्डेय, जिन्होंने लोकतंत्र की आवाज बुलंद की थी, उन्हें भी जेल भेज दिया गया। आपातकाल की समाप्ति के बाद जब लोकतंत्र की बहाली हुई तो गिरीश पाण्डेय भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो समाजसेवा में लग गए। आप भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी माने जाते थे। पार्टी के प्रति समर्पण और समाजसेवा को देखते हुए 1991 में भाजपा ने उन्हें रायबरेली विधानसभा सीट से टिकट दिया और वे विधायक भी चुने गए। यही नहीं कल्याण सिंह सरकार में उन्हें विधि एवं न्याय मंत्री नियुक्त किया गया था। यह अलग बात है कि इस सरकार का कार्यकाल राम मंदिर आंदोलन के चलते अल्पकालिक साबित हुआ। इस प्रकार गिरीश पाण्डेय का जीवन इस बात का प्रतीक है कि एक साधारण नागरिक की ईमानदारी और उसका साहस किस प्रकार लोकतंत्र की रक्षा करते हुए देश की राजनीति की दिशा भी बदल सकता है। उनकी गवाही ने न केवल एक प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म करवा दी, बल्कि देश को यह भी संदेश दिया कि सच बोलने की ताकत में बदलाव की असली शक्ति छुपी होती है। इस प्रकार गिरीश पाण्डेय ने लोकतंत्र के मूल्यों को सहेजने की प्रेरणा भी दी है। ईएमएस / 06 जून 25