ईरान-अमेरिका, रुस-यूक्रेन और इजयराइल और गाजा जंग ताजा उदाहरण जिनेवा,(ईएमएस)। हाल ही में हुई घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि अब अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और नियमों की कोई कीमत नहीं रह गई है। शक्तिशाली देश अपनी मनमानी कर रहे हैं, जिससे कमजोर राष्ट्रों को भारी नुकसान हो रहा है। इस स्थिति को वारिंग स्टेट्स पीरियड (युद्धरत राज्यों का दौर) के रूप में वर्णित किया जा रहा है, जो प्राचीन चीन के उस दौर से मेल खाता है जहाँ सत्ता के लिए क्रूर लड़ाई और हिंसा होती थी। कहां-कहां हुआ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन 21 जून को अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बम गिराए। इस कार्रवाई को अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेषकर जिनेवा कन्वेंशन के अतिरिक्त प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 56 का स्पष्ट उल्लंघन माना गया है, क्योंकि इससे परमाणु प्रदूषण का खतरा होता है। इजराइल ने अपने हमले को आत्मरक्षा बताया, लेकिन संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 के तहत आत्मरक्षा के लिए खतरा आसन्न होना चाहिए, जो ईरान के मामले में नहीं था। वहीं फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत का सीधा उल्लंघन है। यह सिद्धांत कहता है कि सदस्य देशों को किसी भी राज्य की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। रूस ने भी इजरायल की तरह आत्मरक्षा में एक विशेष सैन्य अभियान बताया, जबकि यूक्रेन ने रूस पर कोई हमला नहीं किया था। इसके पहले इजराइल गाजा में फिलिस्तीनियों पर 20 महीनों से कार्रवाई कर रहा है, इसमें भी भारी संख्या में लोग मारे जा रहे हैं और नुकसान हो रहा है। जिनेवा कन्वेंशन के तहत युद्ध में भूख का इस्तेमाल हथियार के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन गाजा में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी इन बड़े पैमाने पर हो रहे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघनों के बावजूद, दुनिया के अधिकांश देश चुप हैं, जो बेहद चिंताजनक मौहाल बना रहा है। बहुत कम देशों ने अमेरिका और इजराइल के ईरान पर हमले को सार्वजनिक रूप से सही या गलत ठहराया है। चिली के युवा राष्ट्रपति गैब्रियल बोरिक ने अमेरिका के इस कदम की कड़ी आलोचना की, यह कहते हुए कि ताकत होने का मतलब यह नहीं है कि आप उन नियमों को तोड़ दें जो हमारे द्वारा इंसानियत के तौर पर बनाए हैं। आशीष/ईएमएस 29 जून 2025