नई दिल्ली (ईएमएस)। एशिया में खादय अपशिष्ट के मामले में चीन पहले नंबर पर है जहां हर साल करीब 9.1 करोड़ टन भोजन बर्बाद होता है। इसके बाद भारत का स्थान आता है जहां सालाना लगभग 6.8 करोड़ टन खाना फेंका जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की ताजा रिपोर्ट में एशिया में खाद्य अपशिष्ट को लेकर चिंताजनक स्थिति उजागर हुई है। इस आंकड़े के साथ भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है। यह स्थिति उस वक्त और भी गंभीर नजर आती है जब देश में करोड़ों लोग गरीबी और भूख का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि भारत की कुल खाद्य आपूर्ति का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा उपभोग से पहले ही खराब या बर्बाद हो जाता है। यह सप्लाई चेन की कमजोरियों, भंडारण की समस्याओं और वितरण व्यवस्था की खामियों को भी उजागर करता है। संयुक्त राष्ट्र ने इस स्थिति को वैश्विक संकट बताते हुए चेताया है कि खाद्य अपशिष्ट न केवल नैतिक और सामाजिक चुनौती है बल्कि इसका पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ पड़ता है। खराब या बर्बाद हुआ भोजन केवल संसाधनों की बर्बादी नहीं है बल्कि इसके उत्पादन में इस्तेमाल पानी, जमीन और ऊर्जा का अपव्यय भी है। साथ ही यह जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को भी बढ़ाता है। भारत सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन इस चुनौती से निपटने के प्रयासों में जुटे हैं। ‘जीरो फूड वेस्ट’ जैसी पहलों के तहत कई शहरों में होटल, रेस्टोरेंट और विवाह आयोजनों से बचा हुआ भोजन गरीबों तक पहुंचाने की योजनाएं बनाई गई हैं। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि इन प्रयासों को सफल बनाने के लिए जन-जागरूकता बढ़ाना, सख्त कानूनी प्रावधान लागू करना और तकनीकी सहयोग को बढ़ाना जरूरी होगा। भारत में फिलहाल करीब 19 करोड़ लोग कुपोषण का सामना कर रहे हैं। ऐसे में खाद्य अपशिष्ट को रोकना सिर्फ एक प्रशासनिक काम नहीं, बल्कि मानवीय जिम्मेदारी है, जिससे भूखमरी और कुपोषण जैसे संकटों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। यह समस्या केवल सरकारी नीतियों से नहीं सुलझेगी, इसमें हर नागरिक की भागीदारी जरूरी है। जब एक तरफ थालियों से भोजन फेंका जाता है और दूसरी तरफ बड़ी आबादी भूख और कुपोषण से ग्रस्त है, तो यह सामाजिक और मानवीय असंतुलन का प्रतीक बन जाता है। सुदामा/ईएमएस 02 जुलाई 2025