बिलासपुर (ईएमएस)। हाई कोर्ट ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) सहित अन्य विभाग में उप अभियंता की नियुक्ति में बी ई डिग्री धारकों को अयोग्य ठहराए जाने के नियम को असवैधानिक किया है। कोर्ट ने सरकार के इस नियम को निरस्त किया है। याचिकाकर्ता धगेन्द्र कुमार साहू ने वकील प्रतिभा साहू के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। दाखिल की गई । रिट याचिका में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार एवं संबंधित विभाग द्वारा उप अभियंता (सिविल/मैकेनिकल/इलेक्ट्रिकल) पद पर नियुक्ति हेतु बनाए गए भर्ती नियमों को चुनौती दी गई। इन नियमों के तहत केवल डिप्लोमा धारकों को पात्र माना गया, जबकि बी.ई. डिग्रीधारी उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराया गया था। याचिकाकर्ता ने अपने तर्कों में यह भी स्पष्ट किया कि वर्ष 2016 तक जब भी उक्त पदों पर नियुक्तियाँ की जाती थीं, तब न केवल डिप्लोमा धारकों को बल्कि बी.ई. डिग्रीधारकों को भी नियुक्त किया जाता था, भले ही नियमों में डिप्लोमा की शर्त उल्लेखित रही हो। यह एक स्थापित प्रक्रिया थी और दोनों प्रकार के उम्मीदवारों को समान रूप से अवसर दिया जाता था। परंतु इस बार सरकार और संबंधित विभाग द्वारा पहली बार केवल डिप्लोमा धारकों तक पात्रता सीमित कर देना एक पक्षपातपूर्ण, भेदभावपूर्ण और मनमानी कार्यवाही थी, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 16 (सार्वजनिक नियुक्तियों में समान अवसर) तथा 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। याचिका में आज 03.07.2025 को मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति बी. डी. गुरु की डीबी में समक्ष अंतिम सुनवाई की गई। दोनों पक्षों की विस्तृत बहस सुनने के उपरांत खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि बी.ई. डिग्रीधारी उम्मीदवार तकनीकी रूप से अधिक योग्य होते हैं, और उन्हें ऐसे पदों से वंचित करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। न्यायालय ने यह भी माना कि सरकार द्वारा वर्षों से बी.ई. एवं डिप्लोमा धारकों दोनों को नियुक्त करने की परंपरा रही है, परंतु इस बार मात्र डिप्लोमा धारकों को पात्र घोषित कर देना एक असमान, भेदभावपूर्ण तथा अनुचित निर्णय है। अत: न्यायालय ने संबंधित भर्ती नियमों को संविधान के विरुद्ध घोषित करते हुए उन्हें असंवैधानिक, मनमाना तथा अल्ट्रा वायर्स ठहराया और निरस्त कर दिया। मनोज राज/योगेश विश्वकर्मा 04 जुलाई 2025