04-Jul-2025
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नई दिल्ली/बीजिंग,(ईएमएस)। भारत के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के दलाई लामा संबंधी बयान पर चीन ने कड़ी आपत्ति जताई है। चीनी विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि भारत को तिब्बत के मामलों पर सावधानी बरतनी चाहिए और चीन के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए। चीन के अनुसार, ऐसे बयान द्विपक्षीय संबंधों में सुधार में रुकावट बन सकते हैं। दरअसल, गुरुवार को केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि अगला दलाई लामा कौन होगा, इसका निर्णय स्वयं दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध समुदाय द्वारा लिया जाना चाहिए, किसी और द्वारा नहीं। यह टिप्पणी दलाई लामा के हालिया उत्तराधिकारी संबंधी बयान के बाद आई थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, भारत को 14वें दलाई लामा की चीन-विरोधी अलगाववादी गतिविधियों की जानकारी होनी चाहिए और उसे तिब्बत (जिसे चीन शिजांग कहता है) को लेकर अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए। माओ ने आगे कहा, भारत को अपने शब्दों और कार्यों को लेकर सतर्क रहना चाहिए और चीन-भारत संबंधों की दिशा में रुकावट डालने से बचना चाहिए। विदेश मंत्रालय का संतुलित जवाब भारत के विदेश मंत्रालय ने इस विवाद पर संतुलित रुख अपनाया। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, हमने दलाई लामा के बयान को सुना है। भारत सरकार आस्था और धर्म से जुड़े मामलों में कोई रुख नहीं अपनाती है। भारत में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता मिली है और आगे भी यह बरकरार रहेगी। क्या है विवाद की पृष्ठभूमि? दलाई लामा ने हाल ही में कहा था कि उनका उत्तराधिकारी भारत में ही जन्म ले सकता है, न कि चीन में। चीन लामा के उत्तराधिकारी को खुद नियुक्त करना चाहता है, जिससे तिब्बत पर उसका नियंत्रण और मजबूत हो सके। भारत लंबे समय से तिब्बती शरणार्थियों और दलाई लामा को आश्रय देता आया है, जिसे लेकर चीन समय-समय पर आपत्ति जताता रहा है। भारत और चीन के बीच दलाई लामा का मुद्दा हमेशा से राजनीतिक संवेदनशीलता से जुड़ा रहा है। ऐसे में किरेन रिजिजू का बयान और चीन की प्रतिक्रिया एक बार फिर इस पुराने विवाद को सतह पर ले आए हैं। हालांकि भारत ने स्पष्ट किया है कि वह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, और धार्मिक स्वतंत्रता उसकी मूलभूत नीति है। हिदायत/ईएमएस 04जुलाई25