ज़रा हटके
05-Jul-2025
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पेशे या व्यक्तित्व से मेल खाते डिज़ाइनर ताबूत बनाते एक्रॉ (ईएमएस)। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम अफ्रीकी देश घाना पहुंचे थे। यह उनकी घाना की पहली आधिकारिक यात्रा थी। इस कारण घाना की सांस्कृतिक परंपराएं भी सुर्खियों में हैं, खासतौर पर यहां की अनोखी अंतिम संस्कार विधि, इसमें मौत के बाद मातम नहीं, बल्कि जश्न मनाया जाता है। भारत से करीब 8 हजार किलोमीटर दूर स्थित घाना के गा समुदाय में मृत्यु को दुख का नहीं, बल्कि जश्न का मौका माना जाता है। यहां अंतिम विदाई के लिए इसतरह के ताबूत बनाए जाते हैं, जो किसी का पेशा, शौक या जीवन की पहचान दिखाते हैं। इन्हें फैंटेसी कॉफिन्स कहा जाता है। यह परंपरा पहली बार कारीगर सेथ काने कोई ने शुरू की थी। उन्होंने गा समुदाय के राजा के लिए एक आलीशान पालकी तैयार की थी। जब राजा की मृत्यु हुई, तब उन्हें उसी तरह की पालकी के आकार के ताबूत में दफनाया गया। यहीं से यह अनूठी परंपरा जन्मी। आज यहां व्यक्ति के पेशे या व्यक्तित्व से मेल खाते डिज़ाइनर ताबूत बनाते हैं, जैसे मछली, केकड़ा, हवाई जहाज, मोबाइल फोन, कार, कलम, बीयर की बोतल या किताब के आकार के। अगर कोई किसान है, तब उस मक्का के भुट्टे जैसे ताबूत में दफनाया जाता है। मछुआरे के लिए मछली, शिक्षक के लिए किताब, और कारोबारी के लिए डॉलर के आकार का ताबूत बनता है। इन ताबूतों को रंग-बिरंगे डिज़ाइनों में तैयार किया जाता है और अंतिम संस्कार में बैंड-बाजे, नाच-गाना और उत्सव जैसा माहौल होता है। परिवार के सदस्य रंगीन कपड़ों में शामिल होते हैं और मृतक को अलविदा पार्टी के तौर पर विदा करते हैं। पीएम मोदी की घाना यात्रा के दौरान यह परंपरा भी चर्चा का विषय बन गई है। उनके सम्मान में स्थानीय कलाकारों और शिल्पियों ने कुछ पारंपरिक ताबूतों की प्रदर्शनी भी लगाई, जिनमें भारत और घाना की आशीष/ईएमएस 05 जुलाई 2025