मेडिकल एजुकेशन में माफिया राज का पर्दाफाश: सीबीआई जांच में मंत्रालय से लेकर मेडिकल कॉलेज तक भ्रष्टाचार वाला गठजोड़ उजागर -सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की, छापेमार कार्रवाई शुरु भोपाल/नई दिल्ली,(ईएमएस)। मेडिकल एजुकेशन क्षेत्र में एक बड़े भ्रष्टाचार नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), निजी मेडिकल कॉलेजों, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष तक का नाम सामने आया है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इस मामले में अनेक जिम्मेदारों पर एफआईआर दर्ज करते हुए देशभर में छापेमारी की कार्रवाई करते हुए गिरफ्तारियां शुरू कर दी हैं। जानकारी अनुसार मेडिकल शिक्षा से जुड़ा यह घोटाला महज कागज़ी हेरा-फेरी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें नकली प्रोफेसर, फर्जी मरीज, क्लोन फिंगरप्रिंट, हवाला नेटवर्क, और सरकारी अधिकारियों की सीधी मिलीभगत तक सामने आ चुकी है। सीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, मेडिकल और फार्मेसी कॉलेजों को मान्यता दिलवाने के लिए, गोपनीय निरीक्षण तिथियाँ, मूल्यांकनकर्ताओं की जानकारी और आंतरिक रिपोर्टें पैसे लेकर कॉलेजों तक पहुंचाई जाती थीं। इससे कॉलेज फर्जी व्यवस्थाएं खड़ी कर लेते थे। जैसे कि अस्थायी डॉक्टरों को स्थायी फैकल्टी बताना, बायोमेट्रिक सिस्टम में क्लोन फिंगर इम्प्रेशन डालना, मरीजों की झूठी जानकारी तैयार करना और देना, निरीक्षकों को घूस देना आदि। फर्जीवाड़े के प्रमुख आरोपीगणों में मोंटू कुमार पटेल, अध्यक्ष, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) का नाम आया है, जिन पर कॉलेजों को मंजूरी देने में भ्रष्टाचार का आरोप लगा है। डी.पी. सिंह, चांसलर, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज व पूर्व यूजीसी अध्यक्ष का भी एफआईआर में नाम दर्ज है। सुरेश सिंह भदौरिया, चेयरमैन, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इंदौर का फर्जी डिग्री रैकेट, घोस्ट फैकल्टी, और गोपनीय जानकारी के लीक मामले में मुख्य आरोपी बनाया गया है। फिलहाल ये फरार बताए गए हैं और सीबीआई की छापेमारी जारी है। मयूर रावल, रजिस्ट्रार, गीतांजलि यूनिवर्सिटी, उदयपुर का नाम मान्यता दिलवाने में संलिप्तता पाए जाने में है। जीतू लाल मीना, एनएमसी अधिकारी पर आरोप है कि रिश्वत का बड़ा हिस्सा राजस्थान में मंदिर निर्माण में लगाया। चंदन कुमार और राहुल श्रीवास्तव, स्वास्थ्य मंत्रालय, अनुमोदन पत्र (10ए) जारी करने में घूसखोरी के आरोपी हैं। रिश्वत का नेटवर्क गुड़गांव का वीरेंद्र कुमार — मुख्य बिचौलिया। हवाला चैनल से रिश्वत देशभर में भेजी जाती थी। आंध्र प्रदेश, हैदराबाद, विशाखापत्तनम में नेटवर्क सक्रिय। नकली प्रोफेसरों की आपूर्ति और डॉक्युमेंटेशन की फैक्ट्री जैसा तंत्र विकसित। एक कॉलेज से 50 लाख की डील, जिसमें अधिकारियों और बिचौलियों को हिस्सेदारी। इंदौर के मेडिकल कॉलेज का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा आरोप है कि सुरेश भदौरिया ने घोस्ट फैकल्टी और फर्जी डिग्री के माध्यम से मान्यता प्राप्त की। मालवांचल विश्वविद्यालय के नाम पर अयोग्य लोगों को डिग्री दी जाती थी। फैकल्टी की बायोमीट्रिक हेराफेरी के लिए क्लोन फिंगरप्रिंट बनाए गए। इन तमाम मामलों को लेकर सीबीआई ने तीन से अधिक ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन आरोपी भदौरिया फरार हो गया। मेडिकल एजुकेशन की साख पर सवाल देशभर के मेडिकल संस्थानों की मान्यता और गुणवत्ता को लेकर अब गहरे सवाल उठ खड़े हुए हैं। यदि यह तंत्र वर्षों से सक्रिय था, तो यह न केवल हजारों मेडिकल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि यह देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की जड़ों में दीमक जैसा साबित हो सकता है। जानकारों की मानें तो सीबीआई की यह जांच मेडिकल एजुकेशन सिस्टम में गहराई से जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार को उजागर करती है। सवाल यह भी उठता है कि क्या आने वाले समय में ऐसे कॉलेजों से पढ़े डॉक्टरों पर जनता का भरोसा बना रह पाएगा? अब निगाहें इस पर हैं कि सरकार और न्याय प्रणाली इस मामले में कितनी पारदर्शिता और सख्ती से कार्रवाई करती है। हिदायत/ईएमएस 05जुलाई25