लेख
07-Jul-2025
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कभी-कभी जो अपने नहीं कर पाते, वह दुश्मन की बदौलत हो जाता है, इसका सबसे तरोताजा उदाहरण है, महाराष्ट्र के उन दो भाइयों का मिलन, जो पिछले दो दशक से प्रतिद्वंदी रहे और अब एक मंच पर एक साथ दिखाई दिए। जी हां, यहां चर्चा महाराष्ट्र की कभी राजनीतिक धुरी रहे ठाकरे परिवार की है, महाराष्ट्र के वरिष्ठ राजनेता बालासाहेब ठाकरे की दिली इच्छा रही कि पूरा ठाकरे परिवार एकजुट रहे तथा प्रदेश पर राजनीतिक राज करें, उन्होंने इस दिशा मे काफी प्रयास भी किये, किंतु उनके जीते जी वह हो नहीं पाया और आज देखिए परिस्थितियों ने दोनों भाइयों राज और उद्धव को एक दूसरे के गले में गलबहियां डालने को मजबूर कर दिया। इसी संदर्भ में राज ठाकरे ने सार्वजनिक रूप से कहां भी कि- जो काम बालासाहेब नहीं कर पाए वह दोनों भाइयों के राजनीतिक प्रतिद्वंदी देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया, अभी तक इन दोनों ठाकरे बांधुओं के बीच ही राजनीति बटी हुई थी, जिसका फायदा देवेंद्र फडणवीस जैसे नेता उठा रहे थे, वह अपने आप को खुलेआम बालासाहेब के अनुयाई बता रहे हैं और उन्हीं के बेटों के प्रतिद्वंदी बने हुए हैं और देवेंद्र जैसे नेता मुख्यमंत्री पद के शिखर पर इन्हीं दोनों भाइयों के बीच अनबन के कारण पहुंच गए थे। किन्तु अब बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में नए राजनीतिक समीकरण बनना तय है तथा इन दोनों ठाकरे बंधुओं का राजनीति में दबदबा कायम होना भी सुनिश्चित माना जा रहा है, बशर्ते कि यह दोनों भाई अपने कथनानुसार हर राजनीतिक स्थिति में एकजुट रहे और हर परिस्थिति का मिलकर सामना करें। पिछले दिनों अपने इसी संदेश को सार्वजनिक करने के लिए दोनों भाई एक मंच पर आए जिसे विजय उत्सव नाम दिया गया और स्पष्ट शब्दों में अपने विचार व्यक्त किये उनका कहना था कि वह हिंदू और हिंदुस्तान के समर्थक हैं, किंतु हिंदी के नहीं और महाराष्ट्र में मराठी के उद्भव और विकास के लिए उनकी लड़ाई जारी रहेगी, फिर उसे चाहे गुंडागर्दी ही क्यों ना कहा जाए? इसी मंच से राज ठाकरे ने दोनों भाइयों के मिलन का श्रेय अपने प्रतिरोधी प्रतिद्वंदी देवेंद्र फडणवीस को दिया और कहा कि- फडणवीस ने वह कर दिखाया, जो बालासाहेब भी नहीं कर पाए। जहां तक इन दोनों भाइयों की राजनीति का सवाल है, राज ठाकरे 1989 से राजनीति में सक्रिय हुए और 1995 तक शिवसेना के साथ जुड़े रहे और 2005 में उद्धव ठाकरे शिवसेना प्रमुख हो गए, तो राज को यह नागवार लगा, तब राज ने शिवसेना छोड़कर अपनी एक अलग पार्टी बना ली जिसका नाम महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना दिया गया, जिसका सार्वजनिक एलान 2006 में शिवाजी पार्क की सभा में किया गया। महाराष्ट्र की राजनीति के प्रमुख स्तंभ बालासाहेब ठाकरे के परिवार के इन दोनों युवाओं की राजनीति के वैभिन्नयता का फयदा दूसरे नेताओं ने उठाया और ठाकरे परिवार को दरकिनार कर दिया, किंतु अब करीब दो दशक बाद राजनीतिक रूप से फिर फैरबदल का दौर आया है और अब यह दोनों भाई एकजुट रहकर महाराष्ट्र की राजनीति के प्रमुख स्तंभ बनना चाहते हैं, जिसके लिए उन्होंने विजय उत्सव मनाकर सार्वजनिक घोषणा भी कर दी है। किंतु यहां सबसे अहम् सवाल महाराष्ट्र की राजनीति का नहीं, बल्कि वहां जो भाषा को लेकर जहर फैलाया जा रहा है, उसका है इस मामले में राज ठाकरे कड़ा रुख अपना रहे हैं और महाराष्ट्र से हिंदी को निष्कासित करना चाहते हैं, उनका साफ कहना है कि मराठी के लिए लड़ना यदि गुंडागर्दी है तो हम गुंडे है, अब यही भाषा विवाद पूरे देश के लिए चिंता का विषय बना हुआ है, सभी को चिंता यही है कि यह विवाद यदि पूरे देश में क्षेत्रीय भाषा का विषमंत्र बन गया तो फिर क्या होगा? (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 7 जुलाई /2025