राज्य
08-Jul-2025
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:: गीता भवन में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में मना रुक्मणी विवाह :: इंदौर (ईएमएस)। गीता भवन में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ के छठे दिन, श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने कृष्ण-रुक्मणी विवाह प्रसंग के दौरान महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज और सनातन संस्कृति विवाह जैसी पवित्र परंपरा पर निर्भर है, जबकि वेलेंटाइन डे और लिव-इन रिलेशनशिप जैसे शब्द हमारी परंपराओं के अनुरूप नहीं हैं और न ही इनमें कोई गरिमा है। डाइवोर्स और तलाक भी भारतीय शब्द नहीं हैं। स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने जोर दिया कि विवाह हमारी सनातन संस्कृति का संयमित, मर्यादित और सम्मानजनक पुरुषार्थ है। उन्होंने बताया कि स्वयंवर भारतीय परंपरा है और हिंदू सनातन धर्म में विवाह एक ही बार होता है, बार-बार नहीं। विवाह के बाद पति-पत्नी एक-दूसरे के अर्धांग बन जाते हैं, यानी वे दो नहीं, एकाकार हो जाते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के विपरीत, भारतीय समाज में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता है। कथा के दौरान कृष्ण-रुक्मणी विवाह का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। भगवान कृष्ण की बरात आने पर रुक्मणी पक्ष के मेहमानों ने उनका भव्य स्वागत किया। बधाई गीत गूंजे और भक्तों ने नाच-गाकर अपनी खुशी जाहिर की। कथा शुरू होने से पहले समाजसेवी सुरेश-मृदुला शाहरा सहित गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन और अन्य पदाधिकारियों ने व्यासपीठ का पूजन किया। आज (बुधवार, 9 जुलाई) गीता भवन में सुदामा चरित्र प्रसंग और भागवत पूजन के साथ इस ज्ञान यज्ञ की पूर्णाहुति होगी। इसके अतिरिक्त, गुरु पूर्णिमा महोत्सव पर सुबह 10:30 बजे गीता भवन ट्रस्ट की ओर से गुरु पाद पूजा का आयोजन होगा, और 11 जुलाई से गीता भवन में चातुर्मास का भी शुभारंभ हो जाएगा। महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंदजी ने यह भी बताया कि भगवान कृष्ण ने रुक्मणी से विवाह करने से पहले गृहस्थ आश्रम को स्वीकार किया। उन्होंने तप और त्याग का मार्ग अपनाया और घोर अंगिरस नाम के सिद्ध योगी के मार्गदर्शन में बद्रीनाथ जाकर 12 वर्ष तक तपस्या की, जिसके बाद उन्हें भगवान शिवजी के दर्शन हुए। उनका संदेश है कि जो प्रेम का हाथ बढ़ाता है, भगवान उसे स्वीकार करते हैं। जीव का पुरुषार्थ और प्रभु की कृपा ही भगवान की प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन है। प्रकाश/8 जुलाई 2025 संलग्न चित्र - इंदौर। गीता भवन में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में संबोधित करते महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती। दूसरे चित्र में व्यासपीठ का पूजन करते श्रद्धालु। अंतिम चित्र में कथा श्रवण करते श्रद्धालु।