हरिद्वार (ईएमएस)। शिव मेडिटेशन सेंटर साऊथ अफ्रीका के संस्थापक स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। यह दिवस भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य परंपरा और उसके महत्व को दर्शाता है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई, गुरुवार के दिन है। एक संयोग है कि गुरु पूर्णिमा इस बार गुरुवार के दिन है। श्री तपोनिधि पंचायती अखाड़ा निरंजनी के अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा कि गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर है। जीवन में मार्ग दिखाने वाले पथ प्रदर्शक की भूमिका में गुरु को माना गया है- गुरु मानव जीवन में शिक्षा और उपदेश के माध्यम से अध्यात्मिक उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करता है। यह दिवस महर्षि वेदव्यास के जन्मस्मृति में व्यास पूर्णिमा भी कहलाता है। महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु माना जाता है- उन्हें श्रीमद्भागवतगीता, महाभारत, ब्रह्मसू=, मीमांसा और पुराणों का रचियता माना जाता है- गुरु पूर्णिमा का बौ) धर्म में भी विशेष महत्व है क्योंकि इसी दिन भगवान गौतम बु) ने सारनाथ, उत्तर प्रदेश में पहला धम्म या धार्मिक उपदेश दिया था। उन्होंने कहा कि हमारे धर्म शास्त्रें में गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति को बताती है। आदिगुरु परमेश्वर शिव ने समस्त ऋषि मुनियों को शिष्य के रूप में ज्ञान प्रदान किया था। गुरु पूर्णिमा के दिन घरों, मन्दिरों और मठों में गुरुओं की पूजा-अर्चना और गुरु पादुका पूजन के साथ संन्यासी महात्मा लोग व्यास पीठ की पूजा करते हैं और मंदिरों मठों में रुद्राभिषेक कार्यक्रम होते हैं। संत संन्यासी महात्मा इस दिन से चातुर्मास व्रत की शुरुआत करते हैं और आध्यात्मिक धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस दिन गुरु शिष्य परंपरा को मानने वाले शिष्य अपने गुरुओं का पूजन करेंगे। क्योंकि कहा भी जाता है कि जो दुष्कर कार्य संभव न हो उसे गुरु के आशीर्वाद से संभव किया जा सकता है और खुद देवता भी गुरु के वचन और वाणी को पूरा करते हैं। इसलिए कहा गया है कि कर्ता करे न कर सके गुरु करे सो होय, तीन लोक छह खंड में गुरु से बड़ा ना कोय। स्वामी रामदास वन महाराज ने कहा कि हमारे धर्मशास्त्रें में गुरु का सर्वोच्च पद बतलाते हुए गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और साक्षात परम ब्रह्म माना गया है- सही अर्थ में गुरु ही अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करके उचित और सही दिशा में बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है- गुरु शब्द से तात्पर्य जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है और गुरु का तात्पर्य आध्यात्मिक शिक्षक से है। मनुष्य का प्रथम गुरु उसके माता पिता होते हैं। कहा भी गया है कि गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाय- इसका अर्थ है कि गुरु और गोविंद यानी कि भगवान स्वयं एक साथ खड़े हैं, तो पहला प्रणाम गुरू को करना चाहिए क्योंकि गुरु की कृपा से गोविंद से मिलन हुआ है। इस दिन महर्षि वेदव्यास के अतिरिक्त धार्मिक व शैक्षणिक गुरुओं की उपासना और उनसे आशीर्वाद लेने की परंपरा भी भारतीय संस्कृति में रही है। (फोटो-16) शैलेन्द्र नेगी/ईएमएस/08 जुलाई 2025