राज्य
11-Jul-2025


नई दिल्ली (ईएमएस)। दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 से चल रहे केस पर सुनवाई करते हुए, जज साहब को आरोपी पर दया आ गई। उन्होंने आरोपी को सिर्फ एक दिन की जेल की सजा दी। दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 के भ्रष्टाचार मामले में 90 वर्षीय व्यक्ति को सजा सुनाते हुए एक दिन की सजा दी है। जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने स्वॉर्ड ऑफ डैमौकल्स को एक उदाहरण के रूप मे प्रयोग करते हुए कहा कि लगभग 40 सालों तक मुकदमा लंबित रहना ही अपने आप में एक सजा है। बेंच ने माना कि अपीलकर्ता बुजुर्ग गंभीर बीमारियों से परेशान है। ऐसे में उसे अगर जेल भेजा गया तो उसकी हालत गंभीर हो सकती है। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता की याचिका में देरी से हुई सुनवाई के चलते उसके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है। बेंच ने अपीलकर्ता की सुनवाई अवधि को ही उसकी सजा मान ली और सजा की अवधि को कम कर दिया। साल 1984 में एसटासी को चीफ मार्केटिंग मैनेजर सुरेंद्र कुमार को एक फर्म से 15 हजार रुपये रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद उन्हें जमानत मिल गई थी। दरअसल साल 2002 में अदालत ने सुरेंद्र कुमार को दोषी पाया था और तीन साल की सजा के साथ 15 हजार का जुर्माना भी लगाया था। जिसके बाद उन्होंने फैसले के खिलाफ अपील की। सुरेन्द्र कुमार के ऊपर 140 टन मछली के ऑडर के बदले रिश्वत मांगने का आरोप लगा था। जिस दौरान शिकायतकर्ता हामिद ने सीबीआई को सूचना दी थी। छापेमारी के दौरान सुरेंद्र कुमार पकड़े गए थे। हाईकोर्ट ने पाया कि दोषी ने साल 2002 में अदालत द्वारा लगाए गये जुर्माने को जमा कर दिया था। अदालत ने सजा कम करते हुए और उदाहरण देते हुए कहा कि, डैमोकल्स नाम का एक यूनानी दरबारी को जब राजा का जीवन समझने का मौका मिलता है तो वह अनुभव करता है कि सत्ता के साथ लगातार भय और चिंता जुड़ी रही है। वैसे ही दोषी रिहा होन के बाद भी मानसिक तनाव व भय में जीवन के 40 सालों को काटना किसी सजा से कम नहीं है। अजीत झा/ देवेन्द्र/नई दिल्ली/ईएमएस/11/ जुलाई /2025