राज्य
11-Jul-2025
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गांधीनगर (ईएमएस)| राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने राजभवन में नीता प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित महाग्रंथ वेद मंजूषा का विमोचन किया। वेद मंजूषा श्रृंखला 17 खंडों में प्रकाशित हुई है, जिसमें 20,348 श्लोक हैं। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें वेदों के अर्थों का संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में अनुवाद है। ताकि किसी को भी वेद पढ़ने में कोई कठिनाई न हो। इसके अलावा, प्रत्येक अर्थ का अर्थ और सारांश भी दिया गया है। वेद मंजूषा के विमोचन के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर, लेखक एवं अनुवादक डॉ. पूरन चंद टंडन, नीता प्रकाशन के राकेश गुप्ता और राजभवन के प्रधान सचिव अशोक शर्मा उपस्थित थे। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने इस अवसर पर कहा कि भारत की धरती पर जन्मे सभी लोगों को वेदों से परिचित होना चाहिए। क्योंकि, वेद ऐसे ग्रंथ हैं जिनका कोई रचयिता नहीं है, वे ईश्वरीय ज्ञान हैं जो मनुष्य को दिया गया है। ऐसा कोई ज्ञान नहीं है जो वेदों में न हो। वेद सभी ज्ञानों के जनक हैं। राज्यपाल ने कहा कि सभी सत्यों का मूल वेद है, लेकिन हम वेदों को भूल गए हैं। गुजरात की धरती पर एक महापुरुष स्वामी दयानंद सरस्वतीजी ने वेदों के उत्थान का कार्य किया है। यदि वे न होते तो हजारों वर्षों से वेदों पर पड़ी धूल न हट पाती और न ही हमारा वेदों से परिचय होता। नीता प्रकाशन ने एक महान कार्य किया है। आज स्वर्गीय पूज्य राधेश्यामजी गुप्त हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन, इस अदृश्य ज्ञान को वेद मंजूषा महाग्रंथ के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने के अपने महान संकल्प के कारण वे अमर हो गए हैं। उन्होंने जो कार्य किया है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए वरदान सिद्ध होगा।आचार्य देवव्रत ने कहा कि इस महान ग्रन्थ के हिन्दी अनुवादक डॉ. पूरन चंद टंडन स्वयं एक जीवंत विश्वकोश, ज्ञान के भण्डार, वेदों और साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान हैं। राज्यपाल ने राष्ट्र मंजूषा पुस्तक का उल्लेख करते हुए कहा, मैं दो दिन तक इस पुस्तक को पढ़ता रहा, जैसे-जैसे मैं इसे पढ़ता गया, ज्ञान का भण्डार खुलता गया। इस अवसर पर प्रोफेसर डॉ. पूरन चंद टंडन ने कहा कि इस सम्पूर्ण कार्य को पूरा करने में लगभग 18 वर्ष लगे। लेकिन मुझे गर्व है कि मैंने अपने देश, संस्कृति और भारतीयता के लिए कुछ किया है। चाहे कितनी भी कीमत चुकानी पड़े, नीता प्रकाशन के संस्थापक राधेश्याम गुप्ता का सपना था कि न भूतो न भविष्यति जैसा ऐतिहासिक प्रकाशन हो। राधेश्यामजी की धर्मपत्नी शांति देवीजी का सपना अपने पति के सपने को पूरा करना था। इसलिए उन्होंने राधेश्याम गुप्ताजी के पुत्र राकेश गुप्ता के साथ मिलकर यह कार्य पूरा किया। उन्होंने राज्यपाल आचार्य देवव्रत के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत में ऐसा कोई प्रकाशन या पुस्तक नहीं है। इस मौके पर राज्यपाल ने नीता प्रकाशन के राकेश गुप्ता और प्रोफेसर डॉ. पूरन चंद टंडन को सम्मानित किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह पुस्तक, यह श्रृंखला, पूरे विश्व तक पहुंचेगी, जिससे विदेशों में भी लोग भारत की भव्य संस्कृति से परिचित हो सकेंगे। सतीश/11 जुलाई