-दुनिया की करीब 10 फीसदी आबादी सक्रिय ज्वालामुखियों के नज़दीक वॉशिंगटन,(ईएमएस)। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ज्वालामुखी विस्फोटों की पहचान और भविष्यवाणी के लिए अंतरिक्ष से नजर रख रही है। इसका मकसद न सिर्फ पर्यावरण और जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों को समझना है, बल्कि करोड़ों लोगों को चेतावनी देना भी है। नासा के वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं कि पेड़ों के पत्तों में आने वाला बदलाव किसी ज्वालामुखी विस्फोट का संकेत हो सकता है और इन बदलावों को सैटेलाइट के ज़रिए अंतरिक्ष से ट्रैक किया जा सकता है। नासा ने कई उपग्रहों और उपकरणों की मदद से पृथ्वी के सक्रिय ज्वालामुखियों पर नजर बनाए रखी है। इनमें लैंडसेट 8 और 9 हैं, जो हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेज के ज़रिए ज्वालामुखीय गतिविधियों और राख के जमाव को दिखाते हैं। सेंटिनेल-5पी सैटेलाइट से वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य गैसों की निगरानी की जा रही है। वहीं, गोएस-आर सीरीज से रीयल-टाइम में विस्फोट और राख के बादलों की इमेज रिसीव हो रही है। इसके अलावा नासा मोडिस सैटेलाइट वायुमंडल में राख और एरोसोल पर नजर रख रहा है। नासा की अर्थ साइंस डिवीजन के प्रमुख फ्लोरियन श्वांडनर के मुताबिक ज्वालामुखी के लिए अर्ली वॉर्निंग सिस्टम पहले से मौजूद हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य उन्हें और बेहतर बनाना है और समय से पहले चेतावनी देना है। नासा के मुताबिक दुनिया करीब 10 फीसदी आबादी सक्रिय ज्वालामुखियों के नज़दीक रहती या काम करती है। ऐसे में अगर समय रहते सटीक चेतावनी दी जाए, तो जान-माल के नुकसान से बचा जा सकता है। ज्वालामुखी से निकलने वाली राख और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसें न केवल हवाई उड़ानों के लिए खतरनाक होती हैं, बल्कि मानव स्वास्थ्य और जलवायु संतुलन पर भी असर डालती हैं। ये गैसें वायुमंडलीय तापमान को प्रभावित कर सकती हैं और लंबी अवधि तक वैश्विक जलवायु को बदल सकती हैं। सिराज/ईएमएस 15 जुलाई 2025