नई दिल्ली,(ईएमएस)। पिछले महीने अहमदाबाद में एयर इंडिया की फ्लाइट एआई-171 के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद विमानन सुरक्षा को लेकर एक अहम बहस फिर से तेज हो गई है— क्या विमानों के कॉकपिट में अब वीडियो रिकॉर्डिंग की भी आवश्यकता है? फिलहाल विमान दुर्घटनाओं की जांच मुख्य रूप से कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (सीवीआर) और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (एफडीआर) पर निर्भर करती है। लेकिन एयर इंडिया हादसे के बाद विशेषज्ञों का मानना है कि कॉकपिट में वीडियो कैमरा होने से जांचकर्ताओं को और अधिक स्पष्ट जानकारी मिल सकती है। हादसे में 241 यात्रियों की मौत 12 जून 2025 को हुए इस हादसे में बोइंग 787 विमान के टेकऑफ के तुरंत बाद फ्यूल कटऑफ स्विच ‘रन’ से ‘कटऑफ’ मोड में चला गया, जिससे दोनों इंजन बंद हो गए। हादसे में 241 यात्रियों की मौत हो गई थी। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट ने यह सवाल उठाया है कि क्या यह तकनीकी गड़बड़ी थी या मानव त्रुटि? अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की राय इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) के प्रमुख विली वॉल्श ने कहा है कि कॉकपिट में कैमरे लगाने का तर्क मजबूत है। ऑस्ट्रेलियाई परिवहन सुरक्षा ब्यूरो की रिपोर्ट में भी यह स्पष्ट किया गया कि एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना की जांच में वीडियो रिकॉर्डिंग ‘अमूल्य’ साबित हुई। हालांकि, पायलट संगठनों का एक वर्ग निजता के उल्लंघन की आशंका जताते हुए इसका विरोध कर रहा है। एविएशन विशेषज्ञों का कहना है कि सुरक्षा और निजता के बीच संतुलन जरूरी है, लेकिन सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। पुराना है कैमरा लगाने का प्रस्ताव साल 2000 में अमेरिकी राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (एनटीएसबी) ने पहली बार व्यावसायिक विमानों में इमेज रिकॉर्डर लगाने की सिफारिश की थी। यह मांग 1999 के इजिप्टएयर फ्लाइट 990 हादसे के बाद की गई थी, जिसमें जानबूझकर विमान को क्रैश कर दिया गया था। भारत में स्थिति भारतीय विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) ने अब तक इस विषय में कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की है। एयर इंडिया और विमान निर्माता कंपनियों से भी इस बारे में प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है। नियमों के अनुसार, किसी भी विमान दुर्घटना की अंतिम रिपोर्ट एक वर्ष के भीतर प्रकाशित की जानी चाहिए। बहरहाल कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डिंग की मांग तकनीकी और नैतिक दोनों स्तरों पर विचार का विषय बनी हुई है। जहां एक ओर यह दुर्घटना जांच को अधिक सटीक बना सकती है, वहीं दूसरी ओर पायलटों की निजता और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा पर भी सवाल उठते हैं।