भारत का लोकतंत्र विश्व में सबसे बड़ा और जीवंत माना जाता है। यहां की चुनाव प्रणाली को संविधान द्वारा सुनिश्चित की गई स्वतंत्रता, निष्पक्षता और पारदर्शिता की कसौटी पर खरा उतरना होता है। परंतु कुछ ऐसे क्षण आते हैं, जब लोकतंत्र को उसकी परिभाषा और नैतिकता पर कसौटी से गुजरना पड़ता है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक अवसर वर्ष 1975 में आया, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1971 के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया। यह निर्णय भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक क्रांतिकारी मोड़ था, जिसने न केवल सत्ता की जवाबदेही को रेखांकित किया, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी ऐतिहासिक रूप से प्रतिष्ठित किया।“21वीं सदी का भारत : विश्व व्यवस्था में एक निर्णायक आवाज” 21वीं सदी का आगमन केवल एक कालखंड का बदलाव नहीं था, बल्कि यह वैश्विक शक्ति-संतुलन के पुनः परिभाषित होने की शुरुआत थी। इस सदी में भारत का उभार केवल आर्थिक या सैन्य शक्ति के रूप में नहीं देखा जा रहा है, बल्कि एक ऐसी नैतिक और सांस्कृतिक शक्ति के रूप में सामने आया है, जो वैश्विक राजनीति, विकासशील राष्ट्रों की आकांक्षाओं, पर्यावरणीय न्याय, तकनीकी लोकतंत्र और बहुपक्षीय कूटनीति में निर्णायक भूमिका निभा रहा है। आज भारत न केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है, बल्कि वह नई विश्व व्यवस्था के निर्माण में एक केंद्रीय स्तम्भ के रूप में उभर रहा है। भारत की इस भूमिका की नींव उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों में निहित है, जिसे वह सदियों से विश्व को देता आया है – वसुधैव कुटुम्बकम् (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) की भावना। आज जब विश्व अनेक संकटों से जूझ रहा है – चाहे वह रूस-यूक्रेन युद्ध हो, जलवायु परिवर्तन हो, या वैश्विक मंदी की आशंका – भारत ने अपने संतुलित और संवादप्रधान रुख से यह सिद्ध कर दिया है कि वह संघर्षों में पक्षधर नहीं, बल्कि समाधानकर्ता बनकर खड़ा है। भारत की इस नीति को उसकी रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) कहा गया, जिसे रूस से ऊर्जा आयात के मामले में और पश्चिमी देशों से कूटनीतिक रिश्तों में संतुलन बनाकर सफलतापूर्वक निभाया गया। भारत की वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका को सबसे स्पष्ट रूप से देखा गया G20 की अध्यक्षता के दौरान। वर्ष 2023 में जब भारत ने G20 का नेतृत्व किया, तो उसने “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” (One Earth, One Family, One Future) का मंत्र दिया, जो केवल एक नारा नहीं था, बल्कि एक वैचारिक दृष्टिकोण था, जो भविष्य की वैश्विक साझेदारी का खाका प्रस्तुत करता है। G20 के अंतर्गत वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ को प्रमुखता देने, अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्यता दिलवाने, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure) को बढ़ावा देने और जलवायु न्याय जैसे विषयों को मजबूती से रखने का काम भारत ने किया। यह दर्शाता है कि भारत केवल अपने लिए नहीं, बल्कि उन देशों के लिए भी सोचता है जो वर्षों से वैश्विक निर्णय प्रक्रियाओं से बाहर रहे। भारत की तकनीकी क्षमता और डिजिटल सशक्तिकरण मॉडल भी आज पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। चाहे वह आधार (Aadhaar) जैसी डिजिटल पहचान हो, UPI जैसी भुगतान प्रणाली हो, या फिर कोविन जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म – भारत ने यह सिद्ध किया है कि तकनीक केवल संपन्न देशों का औजार नहीं है, बल्कि वह विकासशील देशों की भी पूंजी बन सकती है। आज अनेक देश भारत से UPI जैसी तकनीकों को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जिससे भारत वैश्विक डिजिटल लोकतंत्र (Digital Democracy) के निर्माता के रूप में सामने आया है। भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका में एक और महत्वपूर्ण पहलू है – भू-राजनीतिक कूटनीति में उसकी विश्वसनीयता। हाल के वर्षों में भारत ने अमेरिका, रूस, फ्रांस, इजराइल, खाड़ी देशों, जापान और दक्षिण एशियाई देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को संतुलित और परिपक्व बनाया है। यह बहुस्तरीय कूटनीति (Multilateral Diplomacy) भारत को एकमात्र ऐसा राष्ट्र बनाती है, जो पश्चिम और पूर्व, उत्तर और दक्षिण – सभी के बीच संवाद का पुल बन सकता है। जब संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठ रहे हों, तब भारत एक मध्यस्थ लोकतांत्रिक शक्ति (Mediating Democratic Power) के रूप में अधिक प्रभावशाली बनकर उभरता है। आर्थिक दृष्टि से भी भारत की स्थिति वैश्विक मंच पर निर्णायक होती जा रही है। हाल ही में भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़कर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का गौरव प्राप्त किया। विश्व बैंक, IMF और OECD जैसी संस्थाओं ने भी भारत की आर्थिक संभावनाओं को आने वाले दशकों के लिए सबसे मजबूत बताया है। “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया”, “पीएलआई स्कीम” जैसी योजनाओं ने निवेशकों के बीच विश्वास पैदा किया है कि भारत अब केवल एक उपभोक्ता नहीं, बल्कि एक उत्पादक शक्ति (Productive Power) भी है। भारत की ऊर्जा नीति और जलवायु परिवर्तन पर उसकी स्थिति भी अब वैश्विक विमर्श का हिस्सा बन चुकी है। भारत ने पेरिस समझौते के तहत तय लक्ष्यों से अधिक तीव्रता से नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि की है। “इंटरनेशनल सोलर अलायंस” (ISA) जैसे संगठनों की स्थापना कर भारत ने यह साबित किया है कि वह केवल समस्या की बात नहीं करता, समाधान भी देता है। इस वैश्विक नेतृत्व में भारत की सोच समावेशी है – वह पश्चिमी राष्ट्रों की तरह अपनी बात थोपता नहीं, बल्कि सबको साथ लेकर चलता है। भारत की सैन्य स्थिति और आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन भी एक महत्वपूर्ण संकेत है कि वह अब वैश्विक शक्ति संतुलन में केवल एक संख्या नहीं, बल्कि एक नीति-निर्माता है। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री नीति, चीन की बढ़ती गतिविधियों पर निगरानी, QUAD जैसे संगठनों में सहभागिता और रणनीतिक साझेदारी – ये सभी इस बात को रेखांकित करते हैं कि भारत केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं रहा, वह एक वैश्विक सामरिक ताकत बन चुका है। 21वीं सदी में वैश्विक नैतिकता, तकनीकी न्याय और मानवतावादी नीतियों की आवश्यकता पहले से अधिक हो गई है। भारत की सभ्यता-संस्कृति, उसकी लोकतांत्रिक परंपरा और सबको साथ लेकर चलने की नीति – उसे इस भूमिका के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है। भारत ने न तो उपनिवेश बनाए, न ही विस्तारवादी युद्ध लड़े। वह आज भी सबको जोड़ने, सहेजने और साथ चलने की बात करता है। यही कारण है कि आज वैश्विक मंच पर भारत को केवल सुना नहीं जा रहा, बल्कि माना भी जा रहा है। इस सबके बीच भारत के सामने कुछ चुनौतियाँ भी हैं – जैसे आंतरिक सामाजिक समरसता बनाए रखना, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार और रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करना। यदि भारत इन आंतरिक मोर्चों को संतुलित रखता है, तो वह न केवल 21वीं सदी में विश्व व्यवस्था की आवाज़ बन सकता है, बल्कि विश्व व्यवस्था का स्वरूप भी बदल सकता है। इस सदी की वैश्विक व्यवस्था अब एकध्रुवीय या द्विध्रुवीय नहीं रहेगी। यह एक ऐसे बहुध्रुवीय वैश्विक समाज की ओर अग्रसर है, जिसमें नैतिक नेतृत्व, प्रौद्योगिकीय समावेशन और समरसता-प्रधान कूटनीति की आवश्यकता होगी। भारत में ये तीनों विशेषताएँ मौजूद हैं – और यही कारण है कि 21वीं सदी भारत की सदी हो सकती है – एक ऐसी सदी जिसमें भारत न केवल विश्व व्यवस्था का भागीदार हो, बल्कि उसका मार्गदर्शक भी हो। (लेखिका विश्व प्रसिद्ध भाषाकर्मी, साहित्यकर्मी एवं संस्कृति कर्मी हैं और वैश्विक स्तर पर सक्रिय संगठनों ‘न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन’ एवं ‘अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन’ की संस्थापक-निदेशक हैं। लेखिका ने विश्व की दर्जनों प्रसिद्ध सरकारी एवं निजी संस्थाओं ) ईएमएस/18/07/2025