नई दिल्ली (ईएमएस)। भारतीय क्रिकेट टीम को भी टेस्ट और सीमित ओवरों के मैच के लिए अलग-अलग कोच हो, इसको लेकर इन दिनों अहम बहस का मुद्दा बना हुआ है क्या अब वक्त आ गया है कि टीम इंडिया भी इंग्लैंड की तरह अलग-अलग फॉर्मेट के लिए अलग-अलग कोच रखने चाहिए? गौतम गंभीर को जुलाई 2024 में हेड कोच बनाया गया था। वनडे और टी20 में उनका रिकॉर्ड शानदार है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में वे अब तक वे उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए हैं। गंभीर ने राहुल द्रविड़ की जगह ली थी और सीमित ओवरों के क्रिकेट में भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके कार्यकाल में भारत ने 2025 की चैंपियंस ट्रॉफी जीतकर इतिहास रचा और टूर्नामेंट में अपराजित रहा। हालांकि, शुरुआत में श्रीलंका के खिलाफ घरेलू सीरीज में 2-0 की हार ने उन्हें झटका दिया था। इसके बावजूद उनके एक दिवसीय रिकॉर्ड में 11 में से 8 जीत, 2 हार और 1 टाई शामिल है। टी20 में उनका सफर और भी प्रभावशाली रहा है 15 में से 13 मैचों में जीत और सिर्फ 2 हार। दूसरी ओर, रेड बॉल क्रिकेट यानी टेस्ट में गंभीर की कोचिंग बुरी तरह फ्लॉप रही है। उनके कार्यकाल में भारत ने अब तक 13 टेस्ट खेले हैं, जिनमें 4 जीते, 7 हारे और 1 ड्रॉ रहा। शुरुआत अच्छी रही थी बांग्लादेश के खिलाफ घरेलू सीरीज में 2-0 की जीत मिली। लेकिन फिर घरेलू मैदान पर ही न्यूजीलैंड से 3-0 की हार ने टीम की कमजोरियां उजागर कर दीं। ऑस्ट्रेलिया में भी भारत को 3-1 से सीरीज गंवानी पड़ी थी। मौजूदा इंग्लैंड दौरे पर भारत पांच टेस्ट की सीरीज में 2-1 से पीछे है और दो मैच बाकी हैं। यह बहस कोई नई नहीं है। ‘स्प्लिट कोचिंग’ का प्रयोग कई टीमों ने किया है। इंग्लैंड इसका सफल उदाहरण है उनके पास टेस्ट के लिए ब्रेंडन मैकुलम और सीमित ओवरों के लिए मैथ्यू मोट जैसे विशेषज्ञ कोच हैं। इससे दोनों फॉर्मेट की रणनीतियों में स्पष्टता और फोकस आता है। पाकिस्तान ने भी यह मॉडल आजमाया था गैरी कर्स्टन को वनडे और टी20 जबकि जेसन गिलेस्पी को टेस्ट का कोच बनाया, लेकिन वहां यह प्रयोग लंबा नहीं चला। भारत के लिए अब यह सवाल अहम हो गया है। गंभीर ने वाइट-बॉल क्रिकेट में अपनी रणनीति और आक्रामक सोच से टीम को कामयाबी दिलाई है। लेकिन टेस्ट में उनकी रणनीति और चयन फैसलों पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। क्या आने वाले समय में भारत भी इस और कोई कदम उठाएगा। डेविड/ईएमएस 18 जुलाई 2025