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17-Jul-2025
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कहा-त्रिपक्षीय सहयोग न सिर्फ तीनों देशों, बल्कि विश्व सुरक्षा के लिए भी अहम नई दिल्ली (ईएमएस)। चीन ने गुरुवार को ठंडे बस्ते में पड़ चुके रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय सहयोग को फिर से शुरू करने की वकालत की है। पहले रूस की तरफ से यह पहल की गई थी, जिसका बीजिंग ने समर्थन किया है। चीन ने कहा कि रूस, भारत और चीन का त्रिपक्षीय सहयोग न सिर्फ तीनों देशों के हित में है, बल्कि क्षेत्र और विश्व की सुरक्षा और स्थिरता के लिए भी काफी अहम है। रूस के उप विदेश मंत्री आंद्रेई रुडेंको के हवाले से कहा गया है कि मास्को आरआईसी फॉर्मेट की बहाली की उम्मीद करता है और इस मुद्दे पर बीजिंग और नई दिल्ली के साथ बातचीत कर रहा है। रुडेन्को ने कहा कि यह मुद्दा दोनों के साथ हमारी बातचीत का हिस्सा है। हम इस फॉर्मेट को सफल बनाने में रुचि रखते हैं, क्योंकि ब्रिक्स के संस्थापकों के अलावा ये तीनों देश अहम साझेदार भी हैं। रूस के उप विदेश मंत्री ने कहा कि मेरी राय में इस फॉर्मेट की कमी सही नहीं लगती। इस बारे में हम उम्मीद करते हैं कि देश आरआईसी के ढांचे के भीतर काम फिर से शुरू करने पर सहमत होंगे। बेशक, जब इन राज्यों के बीच संबंध उस स्तर पर पहुंच जाएंगे जो उन्हें त्रिपक्षीय फॉर्मेट में काम करने की इजाजत देता है। विश्व शांति और प्रगति के लिए जरूरी मीडिया ब्रीफिंग में रुडेन्को के बयान पर रिएक्ट करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने गुरुवार को कहा कि चीन-रूस-भारत सहयोग न सिर्फ तीनों देशों के संबंधित हितों को पूरा करता है, बल्कि क्षेत्र और विश्व में शांति, सुरक्षा, स्थिरता और प्रगति को बनाए रखने में भी मदद करता है। उन्होंने कहा कि चीन त्रिपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए रूस और भारत के साथ डायलॉग बनाए रखने को तैयार है। आरआईसी की बहाली में रूस और चीन की रुचि हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर की स्ष्टह्र विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए चीन यात्रा के बाद बढ़ी है। इस दौरान उन्होंने विदेश मंत्री वांग यी और उनके रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव समेत टॉप चीनी अधिकारियों के साथ बातचीत की थी। भारत-चीन टकराव से रुका सहयोग लावरोव ने पिछले साल कहा था कि आरआईसी फॉर्मेट में जॉइंट वर्क पहले कोरोना वायरस के कारण और बाद में 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सैन्य गतिरोध के कारण रुक गया था। लद्दाख गतिरोध के कारण भारत-चीन संबंधों में चार साल से ज़्यादा समय तक ठहराव रहा। पिछले साल ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात के बाद द्विपक्षीय संबंधों में फिर से जान आई है। तब से दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए लगातार वार्ता चल रही है। संबंधों को पटरी पर लाने की कवायद विदेश मंत्री जयशंकर की हालिया यात्रा, एनएसए अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीन यात्रा के बाद हुई है। लावरोव ने मई में कहा था कि रूस, जिसके भारत और चीन के साथ मजबूत संबंध हैं, आरआईसी फॉर्मेट की बहाली में वास्तव में रुचि रखता है। उन्होंने कहा कि रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव की ओर से शुरू की गई त्रिपक्षीय व्यवस्था के तहत तीनों देशों के बीच अलग-अलग स्तरों पर 20 बैठकें हुई हैं। ये तीनों देश ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और इस ग्रुप के न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) के गठन में प्रमुख भूमिका में थे, जिसमें अब 10 सदस्य हैं। बीजिंग को सता रहा किस बात का डर भारत और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता और बीजिंग की ओर से अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान को उसकी भारत विरोधी गतिविधियों में लगातार समर्थन देने सहित अनेक मुद्दों ने आरआईसी की प्रासंगिकता और महत्व को कम कर दिया है। हाल ही में, आरआईसी की बहाली में रूस और चीन की रुचि बढ़ रही है, क्योंकि भारत क्वाड का सदस्य बन गया है। यह अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का उभरता हुआ गठबंधन है, जिसे बीजिंग अपने प्रभाव को रोकने के मकसद से तैयार एक ग्रुप के तौर पर देखता है। रूस के लिए भी सहयोग जरूरी रूसी विश्लेषकों के मुताबिक रूस, अब यूक्रेन के साथ जारी युद्ध की पृष्ठभूमि में भारत और यूरोपीय संघ के बीच उभरते संबंधों को लेकर परेशान है। रूसी रिसर्चर लिडिया कुलिक का मानना है कि यूरेशिया में सहयोग का कोई भी फॉर्मेट कारगर है, क्योंकि यह महाद्वीप लंबे समय से अंतहीन संघर्षों से थक चुका है। भारत के लिए, रूस के साथ संबंध पारंपरिक रूप से एक अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि नई दिल्ली और बीजिंग के बीच समस्याएं हैं। लिडिया ने इज़वेस्टिया को बताया कि मॉस्को की भागीदारी आरआईसी फॉर्मेट में सहयोग की संभावनाएं पैदा करती है।