भगवान भोलेनाथ की पूजा और उनका जलाभिषेक कोई भी कर सकता है। भगवान भोलेनाथ की पूजा का कोई सनातनी स्वरूप नहीं है। भोलेनाथ के भक्त जिसमें अघोरी संप्रदाय, भूत, प्रेत, किन्नर मानव सभी अपनी अपनी मान्यता के अनुसार भगवान शिव का अभिषेक एवं पूजा-पाठ करते हैं। अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार संकल्प लेते हैं। कांवड़ यात्रा भी उसका एक रूप है। सावन के महीने मैं भोलेनाथ के भक्त पवित्र नदियों का जल लेकर कई किलोमीटर की भक्ति भाव से यात्रा करते हुए, भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। यह परंपरा सेकडों वर्षों से चली आ रही है। कावड़ यात्रा को लेकर पहिले कोई विवाद नहीं हुआ। भगवान भोलेनाथ की कावड़ यात्रा में वह वर्ग शामिल होता है। जिन्हें आसानी से मंदिरों में प्रवेश नहीं मिलता है। भोलेनाथ के भक्त अपनी आस्था के अनुसार जल, पत्ते, फूल, धतूरा भक्ति भाव से भोलेनाथ को अर्पित कर आस्था प्रकट करते है। भगवान भोलेनाथ के बारे में कहा जाता है, वह एक ऐसे भगवान है, जिनकी पूजा और भक्ति का कोई विधान नहीं है। अघोरी संप्रदाय अपना ज्यादा समय श्मशान में बिताते हैं। उज्जैन के मंदिर में रोजाना शमशान से मानव शव की ताजी भस्म लाकर पुजारी द्वारा भोलेनाथ को भस्म आरती की जाती है। सही मायनो में कहा जाए, भगवान भोलेनाथ की पूजा में सनातन धर्म के विधि विधान नहीं अपनाये जाते हैं। भगवान भोलेनाथ की पूजा कोई भी कर सकता है। ऐसी मान्यता प्रचलित है भगवान भोलेनाथ के भक्तों में सबसे ज्यादा वह लोग होते हैं। जिन्हें पूजा पाठ और विधान का कोई ज्ञान नहीं होता है। कांवड़ यात्रा 2014 के बाद से चर्चाओं में आ गई है। गंगा नदी का जल सभी जाति धर्म के मानवों के साथ-साथ प्रकृति में जितने भी जीव हैं। वह सब गंगाजल के सहारे अपना जीवन जीते हैं। गंगा मैया कोई भेदभाव नहीं करती है। कावड़ यात्री पवित्र घाट के जल से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करने कई किलोमीटर की यात्रा करते हैं। कावड़ में जल लेकर पैदल चलते हुए शिवलिंग में जल अर्पित करते हैं। भोलेनाथ के भक्तों में खाने-पीने तथा नशा इत्यादि का कोई परहेज नहीं होता है। यात्रा के दौरान गांजा भी पीते हैं, नशा भी करते हैं, मांस-मटन भी खाते हैं। आस्था और भक्ति भाव के साथ करके सेकडों किलोमीटर चलकर पवित्र नदियों जल से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक कर संकल्प पूरा करते है। कावड़ यात्री अब राजनीति के शिकार हो गई हैं। काँवड यात्रा में जाने वाले अधिकांश गरीब होते हैं। तीर्थ यात्री के रूप में जिस मार्ग से वह गुजरते है। भोलेनाथ के भक्त उनके खाने-पीने की व्यवस्था के लिए पेयजल, भोजन के लिए लंगर या स्टाल लगाकर, रात्रि में सोने के लिए उनकी व्यवस्था कर देते थे। कावड यात्रियों के खाने-पीने का इंतजाम, रुकने की व्यवस्था का जो कार्य आम नागरिक करते थे। वही कार्य राजनीतिक दल से जुड़े हुए संगठन करने लगे। पिछले 10 सालों में कावड़ यात्रा का जो स्वरूप देखने को मिल रहा है। उसके कारण ही कावड़ यात्रा विवादों में आ गई है। कावड़ यात्रा को धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर बांटा जा रहा है। भोलेनाथ के भक्तों को सनातन भक्त की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। सनातनी उनसे अपेक्षा करते है, कि वह सावन के महीने में मांसाहार, प्याज, लहसुन और अन्य पदार्थों का उपयोग न करें। कावड़ यात्रियों को भोजन की आवश्यकता होती है। मार्ग में उन्हें जो भी भोजन उपलब्ध होता है। वह अपनी सुविधा और मान्यताओं के अनुसार ग्रहण करते थे। पिछले कुछ वर्षों से कुछ धार्मिक संगठनो तथा भाजपा शासित सरकारों द्वारा कावड़ यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था उनके खाने-पीने ठहरने इत्यादि की व्यवस्था की जा रही है। उसके बाद से कावड़ यात्रा राजनीति के रंग में रंग गई है। भगवान भोलेनाथ के भक्तों को सनातनी के रूप में पेश किया जा रहा है। सनातनी पूजा पाठ का अलग विधि विधान है। भगवान भोलेनाथ की पूजा का अलग विधि विधान है। कावड यात्रा को लेकर जिस तरह की धारणा बनाई जा रही है। धार्मिक ध्रुवीकरण और धार्मिक उन्माद पैदा किया जा रहा है। कावड यात्रियों की आस्था को धार्मिक सनातनी स्वरूप देने की कोशिश हो रही है। आगे चलकर हिंदुओं के बीच विघटन करने का कारण बन सकती है। इस बात को समझना होगा, भगवान भोलेनाथ के भक्त भोले होते हैं, उनके भगवान भी भोले हैं। भोले अपनी आस्था और विश्वास को बिना किसी आडंबर के भगवान का अभिषेक कर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। भगवान भोलेनाथ की पूजा अघोर पद्धति से सबसे ज्यादा की जाती है। भोलेनाथ के भक्तों का जो नया सनातनी स्वरूप तैयार किया जा रहा है। आगे चलकर सनातनी परम्परा को परेशानियों का सामना करना होगा। भारत में जो सनातनी मंदिर हैं। सनातनियों की अपनी पूजा पद्धति है। हर मंदिर के अपने अलग-अलग नियम हैं। भोले के भक्त उन नियमों से परिचित नहीं होते हैं। वह भगवान पर अपना अधिकार जताते हैं। सरल सहज ढंग से भोले की पूजा अर्चना और अभिषेक करते हैं, वह शिवलिंग को छूते हैं। राजनीतिक लाभ के लिए जिस तरह से शिव भक्तों को सनातनी स्वरूप में पेश किया जा रहा है। वह आगे चलकर हिंदुओं के बीच बेमन्सय बढ़ा सकता है। भगवान भोलेनाथ की पूजा सारे देश में एक ही तरीके से होती है। वैदिक एवं सनातन धर्म संस्कृति में हर किसी की पूजा पद्धति अलग-अलग है। पुराणों के अनुसार शिव और विष्णु भक्तों के बीच में लड़ाई होती रहती थी। भगवान भोले के भक्त शमशान में भी रहते हैं। भूत-प्रेत और किन्नर भी होते हैं। जो किसी विधि विधान को नहीं मानते हैं। भक्ति भाव से भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं। उन्हें किसी बंधन में नहीं बांधा जा सकता है। इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए। राजनीति एवं सत्ता के लाभ के लिए काँवड़ यात्रा को जो रंग दिया जा रहा है। उसके कारण हिंदुओं के बीच में बड़ा विघटन भविष्य में पैदा हो सकता है। इस पर ध्यान रखने की जरूरत है। ईएमएस / 18 जुलाई 25