अंतर्राष्ट्रीय
29-Jul-2025
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जिनेवा (ईएमएस)। यूके में 2024 की शुरुआत में भारी बारिश के कारण आलू की कीमतें 22प्रतिशत तक बढ़ गईं। यह बारिश सामान्य से 20प्रतिशत अधिक थी और वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएं अब 10 गुना अधिक संभावित हो गई हैं। अमेरिका में 2022 के सूखे के बाद सब्ज़ियों की कीमतों में 80प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इथियोपिया में 2023 में खाद्य कीमतें 40प्रतिशत बढ़ीं, जो 2022 के भयानक सूखे का असर था ऐसा सूखा जो 40 सालों में नहीं देखा गया था और जिसे जलवायु परिवर्तन ने 100 गुना अधिक संभावित बना दिया। इसी तरह, यूरोप के जैतून तेल उत्पादक देशों स्पेन और इटली में कीमतें 50प्रतिशत तक बढ़ीं। आइवरी कोस्ट और घाना में हीटवेव के कारण 2024 में कोको की वैश्विक कीमतों में 280प्रतिशत की वृद्धि हुई। ब्राज़ील और वियतनाम में सूखा और हीटवेव ने कॉफी की कीमतें 55प्रतिशत और 100प्रतिशत तक पहुंचा दीं। जापान में अगस्त 2024 की हीटवेव के बाद चावल की कीमतों में 48प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में गोभी की कीमतों में 70प्रतिशत तक उछाल आया। पाकिस्तान में 2022 की बाढ़ ने ग्रामीण खाद्य वस्तुओं की कीमतों को 50 प्रतिशत तक बढ़ाया, जबकि ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ के बाद लेट्यूस 300 प्रतिशत तक महंगा हो गया जो देश की सबसे बड़ी बीमा आपदा बनी। इन सबका सबसे बड़ा असर गरीबों पर पड़ता है। फूड फाउंडेशन के मुताबिक, पौष्टिक खाना पहले से ही सस्ते लेकिन कम पोषण वाले विकल्पों के मुकाबले दोगुना महंगा है। जब खाद्य महंगाई बढ़ती है, तो कम आय वाले लोग फल-सब्ज़ियां छोड़कर सस्ते परंतु अस्वस्थ खाद्य विकल्प चुनते हैं, जिससे बच्चों में कुपोषण और बड़ों में गंभीर बीमारियां बढ़ती हैं। भारत जैसी आबादी-प्रधान और असमानता से जूझती अर्थव्यवस्था के लिए यह दोहरी मार है एक तरफ जलवायु संकट, दूसरी तरफ स्वास्थ्य संकट। यह रिपोर्ट यूएन फूड सिस्टम समिट से पहले आई है, जो दुनिया भर के नेताओं के लिए एक चेतावनी है कि अब खाद्य प्रणाली को जलवायु अनुकूल बनाना जरूरी है, नहीं तो अगली आपदा सीधे रसोई तक पहुंचेगी। बता दें कि जलवायु परिवर्तन अब केवल पर्यावरण का संकट नहीं, बल्कि सीधा खाद्य सुरक्षा से जुड़ गया है। दुनियाभर में चरम मौसम की घटनाओं ने खाद्य कीमतों में भारी उछाल ला दिया है। सुदामा/ईएमएस 29 जुलाई 2025