लेख
30-Jul-2025
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तुलसीदास जयंती (31 जुलाई) पर विशेष) भारतीय साहित्य, भक्ति आंदोलन और आध्यात्मिक चेतना के आकाश में गोस्वामी तुलसीदास एक ऐसे नक्षत्र हैं, जिनकी चमक न केवल हिंदी साहित्य को आलोकित करती है बल्कि करोड़ों जनमानस के हृदय को भी आज तक प्रकाशित करती रही है। गोस्वामी तुलसीदास का जीवन, उनकी साधना, उनका साहित्य और उनका भक्ति भाव भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। तुलसीदास जी ने रामभक्ति को केवल एक धार्मिक भावना के रूप में नहीं बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय सरोकारों से जोड़ते हुए जन-जन तक पहुंचाया। उनकी रचनाएं आज भी गूढ़ तत्वज्ञान और सरल भाषा का अद्भुत संगम मानी जाती हैं। गोस्वामी तुलसीदास का जन्म श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था, जो वर्ष 2025 में 31 जुलाई को पड़ रही है। जन्मस्थान के विषय में विभिन्न मत हैं परंतु अधिकांश विद्वान मानते हैं कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश के राजापुर नामक स्थान पर हुआ था। उनकी माता का नाम हुलसी और पिता का नाम आत्माराम दुबे था। बाल्यावस्था में ही माता-पिता का साया उठ जाने के कारण तुलसीदास का जीवन प्रारंभ से ही संघर्षपूर्ण रहा किन्तु वे आध्यात्मिक रूप से अत्यंत समृद्ध और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित थे। उनका बाल्य नाम रामबोला था और उन्हें राम नाम लेते ही जन्म से आठों दांत मिल गए थे, जिसे लोग चमत्कार मानते थे। तुलसीदास का जीवन भक्ति और सेवा की मिसाल है। उन्होंने गृहस्थ जीवन भी अपनाया था किन्तु एक प्रसंग के अनुसार, पत्नी की एक तीखी टिप्पणी ने उनके हृदय को ऐसा झकझोर दिया कि वे सांसारिक जीवन त्याग कर ईश्वर की भक्ति में लीन हो गए। वह प्रसंग आज भी स्मृति में गूंजता है, जब पत्नी रत्नावली ने उन्हें फटकारते हुए कहा था कि यदि आप भगवान राम में इतनी ही आसक्ति रखते, जितनी मुझमें है तो आपका उद्धार हो गया होता। इस वाक्य ने तुलसीदास को आत्मचिंतन के लिए बाध्य किया और वहीं से उनकी रामभक्ति की अमर यात्रा का आरंभ हुआ। गोस्वामी तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘रामचरितमानस’ है, जो वाल्मीकि रामायण के आधार पर अवधी भाषा में लिखी गई। यह केवल एक महाकाव्य नहीं बल्कि भारतीय जनमानस की भावनाओं का प्रतिबिंब है। यह ग्रंथ एक ऐसी लोकगाथा बन गया है, जो मंदिरों से लेकर ग्रामीण चौपालों तक में सुनी और सुनाई जाती है। तुलसीदास जी ने भाषा को जन-जन से जोड़ा, पंडितों की सीमित संस्कृत को आम जनता की बोली में ढ़ालकर रामकथा को एक व्यापक जनांदोलन का रूप दिया। उनकी भाषा अवधी होते हुए भी अत्यंत शुद्ध, सरल और भावगर्भित है, जो सामान्य व्यक्ति को भी गहरे आध्यात्मिक भाव में डुबो देती है। ‘रामचरितमानस’ सात कांडों में विभाजित है, बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड। प्रत्येक कांड में भगवान श्रीराम के जीवन के विभिन्न चरणों को अत्यंत सरस, मार्मिक और भावपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया गया है। राम को तुलसीदास ने केवल एक राजा या योद्धा नहीं बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम, आदर्श पुत्र, आदर्श पति और आदर्श शासक के रूप में चित्रित किया है। राम के चरित्र के माध्यम से उन्होंने नीति, धर्म, करुणा, न्याय और सच्चाई के आदर्श प्रस्तुत किए हैं, जो आज भी मानवता के लिए प्रकाश स्तंभ हैं। तुलसीदास की एक और कालजयी रचना ‘हनुमान चालीसा’ है, जिसकी लोकप्रियता भारत के कोने-कोने में दिखाई देती है। हनुमान चालीसा केवल स्तोत्र नहीं अपितु विश्वास, शक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इसमें भक्त के विश्वास और प्रभु की कृपा के बीच का जो गूढ़ संबंध उभरता है, वह भक्तिरस की पराकाष्ठा को दर्शाता है। इसकी हर चौपाई आज भी करोड़ों लोगों की दिनचर्या का हिस्सा है, जिससे न केवल मानसिक शक्ति का संचार होता है बल्कि आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है। तुलसीदास का जीवनकाल मुगलों के शासनकाल में था, जब देश सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक अस्मिता के संकट से जूझ रहा था। ऐसे समय में तुलसीदास की रचनाएं भारतीय समाज में आत्मबल, सांस्कृतिक चेतना और धार्मिक एकता का संचार करने वाली साबित हुईं। उन्होंने धर्म और संस्कृति को लोकभाषा के माध्यम से इस तरह जनमानस में प्रवाहित किया कि वह सामाजिक क्रांति का माध्यम बन गई। उनके समय में जब ब्राह्मणवादी संस्कृत को ही धर्म और विद्या का माध्यम माना जाता था, तुलसीदास ने लोकभाषा अवधी को माध्यम बनाकर जनसामान्य को आध्यात्मिकता से जोड़ा और भक्ति को जन आंदोलन बनाया। तुलसीदास के साहित्य का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि विश्वभर में रामकथा और तुलसी साहित्य का अनुकरण किया जाता है। दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में रामचरितमानस का पाठ, रामलीलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ श्रद्धा और भक्ति से किया जाता है। तुलसीदास के राम न केवल हिन्दुओं के आराध्य हैं बल्कि वे न्याय, धर्म, करुणा और विवेक के वैश्विक प्रतीक बन चुके हैं। तुलसीदास का जीवन इस बात का साक्ष्य है कि एक संत, एक कवि और एक साधक किस प्रकार से साहित्य और भक्ति के माध्यम से जनचेतना को जागृत कर सकता है। वे केवल एक कवि नहीं थे बल्कि समाज-सुधारक, अध्यात्म-प्रणेता और सांस्कृतिक योद्धा भी थे। उन्होंने शब्दों की शक्ति से एक ऐसे भारत की रचना की, जिसकी आत्मा आज भी रामभक्ति में रमी हुई है। उनका साहित्य न केवल भक्ति का मार्ग दिखाता है बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मर्यादा, आदर्श और अनुशासन का संदेश भी देता है। तुलसीदास की जयंती केवल उनके जन्म का उत्सव नहीं है, यह उस कालजयी चेतना का उत्सव है जिसने हिंदी साहित्य को उसका गौरव दिलाया, जिसने समाज को भक्ति और नीति का आधार प्रदान किया और जिसने एक ऐसे राम को जनमानस में प्रतिष्ठित किया, जो केवल मंदिरों में नहीं बल्कि प्रत्येक हृदय में बसे हैं। इस अवसर पर हमें यह स्मरण करना चाहिए कि तुलसीदास का जीवन और साहित्य केवल भूतकाल की विरासत नहीं अपितु वर्तमान और भविष्य के लिए दिशा-निर्देश हैं। उनकी रचनाओं में वह शक्ति है, जो मानव को आत्म-चिंतन, आत्म-निर्माण और आत्म-समर्पण की ओर प्रेरित करती है। यही कारण है कि युग बदलते गए पर तुलसीदास की काव्यधारा अविरल बहती रही और आगे भी बहती रहेगी। उनके शब्दों में राम के आदर्श हैं, जीवन का सत्य है और भक्ति का वह अमृत है, जो युगों तक अमर रहेगा। (लेखिका डेढ़ दशक से शिक्षण क्षेत्र से संबद्ध हैं) (यह ले‎खिका के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 30 जुलाई /2025